पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक प्रकार की मनोदशा या मनोरोग है, जो शिशु के जन्म के बाद महिलाओं को हो सकता है। बच्चे के जन्म के तीन से चार दिन बाद तक महिला उदासी से ग्रस्त रहती है। इस स्थिति को पोस्टपार्टम ब्लूज भी कहा जाता है।जब इस प्रकार की स्थिति तीन-चार दिन से बढ़कर हफ्तों या महीनों में पहुंच जाती है, तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन में ध्यान रखने वाली बातों के बारे में।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण और जोखिम
पोस्टपार्टम डिप्रेशन महिलाओं के शरीर में गर्भधारण और प्रसव के कारण हुए शारीरिक, मानसिक व हार्मोनल बदलावों के कारण होता है। इस स्थिति में बच्चे को जन्म देने वाली मां खुद और शिशु दोनों से घृणा करने लगती है। कुछ मामलों में आत्महत्या व बच्चे की हत्या जैसा दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं को पोस्टपार्टम ब्लूज से गुजरना पड़ता है, जबकि 15 से 20 फीसदी महिलाएं ही पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती हैं।
आमतौर पर प्रसव के बाद महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने पर दुखी व उदास रहना, किसी भी बात पर अचानक रोने लगना, अशांत रहना, खुद की और अपने बच्चे की देखभाल न करना, सिर दर्द होना, सीने में दर्द होना, दिल की धड़कन तेज होना, अस्थिरता या चक्कर आना और सांस की तकलीफ होने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
इसके अलावा कई महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन की स्थिति में बच्चे को फीडिंग नहीं करवाती हैं, जिससे बच्चे का स्वास्थ्य गंभीर और चिंताजनक होना लगता है। साथ ही इस स्थिति में चिड़चिड़ापन, बिना खाए-पिए रहना, नहाए बिना एक ही जगह पर बैठे रहना और किसी से बात न करना। जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं। जब यह स्थिति साइकोटिक डिप्रेशन में बदल जाती है तब ऐसी महिलाएं आत्महत्या करने या फिर अपने बच्चे को भी मारने की कोशिश भी करती हैं।
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन में ध्यान रखने वाली बातें
आराम करें
गर्भावस्था के बाद पोस्टपार्टम ब्लूज या पोस्टपार्टम डिप्रेशन की स्थिति से बचने के लिए ज्यादा काम करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। एक समय पर एक ही काम करें, जो ज्यादा जरूरी है और बाकी कामों को आगे के लिए रहने दें। अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों से मदद लें, खासकर के यदि आपका कोई बड़ा बच्चा हो। अपने पति से बच्चे की देखभाल में मदद लें। जब आपका बच्चा सो जाए तो खुद भी सोने की कोशिश करें।
भावनात्मक समर्थन लें
प्रसव के बाद भावनात्मक रूप से मजबूत रहना बेहद जरूरी होता है। इसलिए अपनी भावनाओं को दबा कर न रखें, अपने पति, दोस्त या किसी अन्य के साथ अपनी भावनाओं को बांटें। भावनात्मक समर्थन मिलने से आपका आत्म विश्वास बढ़ता है।
अपना ख्याल रखें
प्रतिदिन स्नान करें और कपड़े बदलें। भोजन करने में लापरवाही न करे। हर दिन थोड़ी देर के लिए घर से बाहर निकलने की कोशिश करें। आप किसी पार्क आदि में भी टहलने जा सकती हैं। नियमित हल्की एक्सरसाइज करें। पौष्टिक भोजन करें। शराब से बचें क्योंकि यह भी अवसाद का कारण बन सकती है। आपको प्रतिदिन टहलने जाना चाहिए और दोस्तों के साथ मिलते-जुलते रहना चाहिए। साथ ही प्रत्येक दिन अपने आप के लिए कुछ समय निकालें और ध्यान आदि करें।
देखभालकर्ता की मदद लें
यदि आप अच्छा महसूस नहीं कर रही हैं तो देखभालकर्ता की मदद लें। यदि आपको इस दौरान बेहतर माहौल नहीं मिलता तो आपके साथ ही आपके शिशु के लिए यह खतरनाक हो सकता है।
इस दौरान आपके लिए मनोचिकित्सक तकनीक भी मददगार साबित होगी। यह पूरी तरह से आपके अवसाद के प्रकृति पर निर्भर करती है। ऐसी प्रत्येक महिला जिसको पोस्टपार्टम डिप्रेशन है, उसको मदद के साथ-साथ इस समस्या के बारे में शिक्षित करने की जरुरत होती है। इस रोग के संबंध में मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के विभिन्न प्रकार उपलब्ध है।
अगर कभी भी आपको हिंसक विचार आएं या स्थिति बिगड़ती दिखाई दें तो तत्काल आपतकालीन सहायता लें।
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