क्यों होती हैं कुछ शिशुओं की आंखें तिरछी और क्या है इस समस्या का उपचार

कई शिशुओं में जन्म के कुछ महीनों बाद तक आंखें तिरछी दिखाई देती हैं। मगर तीन-चार महीनों बाद ये सामान्य हो जाती हैं क्योंकि इतने समय में शिशु आंखों को एक ही दिशा में केंद्रित करना सीख जाता है।
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क्यों होती हैं कुछ शिशुओं की आंखें तिरछी और क्या है इस समस्या का उपचार

शिशुओं के अंग बहुत नाजुक होते हैं इसलिए आपकी छोटी सी भी गलती उनके अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है। आंखें मनुष्य के शरीर की सबसे नाजुक अंग हैं। ऐसे में शिशुओं की आंखों की नाजुकता को आप समझ सकते हैं। कई शिशुओं में जन्म के कुछ महीनों बाद तक आंखें तिरछी दिखाई देती हैं। मगर तीन-चार महीनों बाद ये सामान्य हो जाती हैं क्योंकि इतने समय में शिशु आंखों को एक ही दिशा में केंद्रित करना सीख जाता है। अगर ये समस्या जन्म के तीन-चार महीने बाद भी होती है तो इसका मतलब है कि शिशु को आंखों संबंधी कोई परेशानी है। ये परेशानियां क्या हो सकती हैं, आइये आपको बताते हैं।

भैंगापन या तिरछी आंखें

सामान्य मनुष्य एक समय में अपनी दोनों आंखों से एक ही चीज देखता है और उसकी आंखें एक ही दिशा में होती हैं। भैंगापन आंखों की उस स्थिति को कहते हैं जब किसी मनुष्य की दोनों आंखें दो अलग-अलग दिशा में देख रही हों और इस स्थिति की वजह से व्यक्ति किसी एक चीज पर ध्यान न केंद्रित कर पा रहा हो। कुछ मामलों में भैंगापन पूरे समय होता है और कुछ मामलों में शिशुओं की आंखें कुछ समय के लिए भैंगी लग सकती हैं। आमतौर पर भैंगापन मां के गर्भ में बच्चे को किसी तरह की हानि से होता है या ये वंशानुगत भी हो सकता है।

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एम्ब्लीओपिया

कई बार इस तरह के भैंगेपन का कारण एम्ब्लीओपिया भी हो सकता है। इस रोग को लेज़ी आइज़ भी कहते हैं। कई बार ऐसा होता है कि शिशु की आंखों का विकास ही एक सीध में नहीं हुआ होता है इसलिए उसकी आंखें तिरछी नजर आती हैं। कई बार होता है कि शिशु की एक आंख की दृष्टि स्पष्ट नहीं होती है, तब भी शिशु की आंखें अलग दिशा में देखती हुई दिखाई देती हैं। एम्ब्लीओपिया पर अगर समय से ध्यान न दिया जाए, तो इसकी वजह से शिशु की आंखें अंधी हो सकती हैं।

कैसे करेंगे जांच

अगर शिशु की आंखें आपको तिरछी लग रही हैं मगर आप समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या उसे आंखों की कोई बीमारी है, तो इसके लिए उसके आंखों का एक छोटा सा टेस्ट आप घर पर ही कर सकते हैं। इसके लिए शिशु को किसी समतल जगह पर लिटा दें और अब उसके चेहरे पर दूर से हल्का प्रकाश डालें। शिशु की आंखें अगर प्रकाश के प्रति संवेदनशील हैं तो वो आंखों को बंद करेगा। अब शिशु की आंखों के आगे प्रकाश वाली किसी वस्तु को इधर-उधर घुमाएं और उसकी आंखों की गति पर ध्यान दें। अगर शिशु एक दिशा में नहीं देख पा रहा है या एक आंख की पुतलियों में परिवर्तन नहीं हो रहा है, तो शिशु को किसी नेत्र चिकित्सक को दिखाएं क्योंकि ये लक्षण एम्बलीओपिया के हो सकते हैं।

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बरतें ये सावधानियां

  • शिशु को उठाते समय कभी भी झटके से न उठाएं क्योंकि इससे उसके शरीर की नसों में खिंचाव हो सकता है।
  • शिशु को कभी भी उसका एक हाथ पकड़कर या अपने एक हाथ से न उठाएं। इससे शिशु की मांसपेशियां खिंच सकती हैं और उसके अंगों को आंतरिक नुकसान पहुंच सकता है।
  • शिशु की आंखों में कभी भी लेजर लाइट या तेज रौशनी न पड़ने दें। उनकी आंखों की रेटिना बहुत ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
  • शिशु के आसपास कोई नुकीली चीज या नुकीला और धारदार खिलौना न रखें जिससे वो अपनी आंखें या शरीर को घायल कर सके।
  • किसी भी तरह की परेशानी दिखने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।

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