जानें कैसे होती है एंजियोप्लास्टी सर्जरी

बाईपास सर्जरी की ही तरह एंजियोप्‍लास्‍टी सर्जरी में भी धमनियों की ब्‍लॉकेज का उपचार किया जाता है। धमनियों के ब्‍लॉकेज का उपचार करने के लिए एंजियोप्‍लास्‍टी सर्जरी बाईपास सर्जरी से ज्‍यादा सुरक्षित है। इस लेख को पढि़ए और जानिए एंजियोप्‍लास्‍टी की प्रक्रिया के बारे में।
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जानें कैसे होती है एंजियोप्लास्टी सर्जरी

बाईपास सर्जरी की ही तरह एंजियोप्‍लास्‍टी सर्जरी में भी धमनियों की ब्‍लॉकेज का उपचार किया जाता है। यह बाईपास सर्जरी के मुकाबले ज्‍यादा सुरक्षित है। एंजियोप्‍लास्‍टी सर्जरी की प्रक्रिया जानने से पहले जरूरी है कि यह क्‍या है इस बारे में आपको जानकारी हो। दरअसल एंजियोप्‍लास्‍टी सर्जरी में मरीज जल्‍द ऑपरेशन थियेटर से बाहर आ जाता है और सामान्‍य रहता है। इसमें उसे बेड रेस्‍ट की भी जरूरत कम होती है। हालांकि कुछ समय के लिए एनेस्‍थेसिया की बेहोशी बनी रहती है, इसका नशा कम होने के बाद मरीज आसानी से चल-‍फिर सकता है। यह प्रक्रिया कार्डियक और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान की तरह है। इस प्रक्रिया में समस्‍या कम और सहूलियतें ज्यादा हैं।


ब्‍लॉकेज खत्‍म करने के लिए पुरानी प्रक्रिया में ज्यादा खून बह जाने का डर रहता था। अब नई प्रक्रिया यानी एंजियोप्लास्टी के जरिये ये तमाम परेशानी कम हो गई हैं। पुरानी प्रक्रिया में कैथेटर को अंदर पहुंचाने के बाद मरीज कुछ खा नहीं सकता था। उसे कम से कम 12 घंटे के बाद निकाला जाता था। इस परिस्थिति में मरीजों के लिए समस्या बढ़ जाती थी।

 


एंजियोप्लास्टी सर्जरी की जरूरत

रक्‍त धमनियों के संकरा होने के कारण सीने में दर्द या हृदय आघात हो सकता है। धमनियों में रक्‍त सुचारू करने के लिए एंजियोप्लास्टी सर्जरी की जरूरत पड़ती है। यदि आपके हृदय की रक्‍त धमनियां संकरी हो गई हैं या फिर बाधित हो गई हैं तो हृदय एंजियोप्लास्टी कराई जा सकती है। एंजियोप्लास्टी को पीटीसीए (परकुटेनियस ट्रांसलुमिनल कोरोनरी एंजियोप्लास्टी) या बैलून एंजियोप्लास्टी भी कहते है। इसमें डॉक्‍टर आमतौर पर उरूसंधि से (पेट और जांघ के बीच का हिस्सा) कैथेटर को हृदय तक पहुंचाता है ताकि धमनियों के ब्लॉकेज को तोड़ा जा सके।


एंजियोप्लास्टी सर्जरी की प्रक्रिया

एंजियोप्लास्टी सर्जरी की डिमांड लोगों में तेजी के साथ बढ़ रही है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि इसमें रोगी को ज्‍यादा समस्‍या का सामना नहीं करना पड़ता और वह जल्‍दी ही स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह प्रक्रिया मोटे और पीठ दर्द के शिकार लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है। एंजियोप्लास्टी में रक्‍त प्रवाह बेहतर बनाने के लिए कैथेटर में लगे बैलून का इस्‍तेमाल रक्‍त धमनी को खोलने में किया जाता है। इसमें रक्‍त धमनी को खुला रखने के लिए एक स्टेंट लगाया जाता है। स्टेंट तार की नली जैसा छोटा उपकरण होता है। इस तकनीक में एक गाइड वायर के सिरे पर रखकर खाली और पिचके हुए बैलून कैथेटर को संकुचित स्थान में प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद सामान्य रक्‍तचाप (6 से 20 वायुमण्डल) से 75-500 गुना अधिक जल दवाब का उपयोग करते हुए उसे एक निश्चित आकार में फुलाया जाता है।

बैलून धमनी या शिरा के अन्दर जमी हुई वसा को खत्‍म कर देता है और रक्‍त धमनी को बेहतर प्रवाह के लिए खोल देता है। इसके बाद गुब्बारे को पिचका कर कैथेटर के द्वारा वापस बाहर खींच लिया जाता है। एंजियोप्लास्टी सर्जरी कितनी कामयाब साबित होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि ब्लॉकेज कितनी मात्रा में है और किस आर्टरी में है। पैरीफेरल आर्टरी में एंजियोप्लास्टी 98 फीसदी तक सफल रहती है। एंजियोप्लास्टी कराने वाले महज 10 प्रतिशत रोगियों की आर्टरी की फिर से ब्लॉकेज होने की शिकायत मिलती है।


एंजियोप्लास्टी और बाईपास में अंतर

एंजियोप्लास्टी में हाथ या जांघ से ब्लॉकेज की जगह एक पतली पाइप के जरिए बैलून ले जाकर खोल देते हैं। इससे ब्लॉकेज खुल जाता है और ब्लड वैसल की रुकावट खत्म हो जाती है। वैसल्स की दीवारों में चिपका थक्का फिर से रुकावट न पैदा करें इसके लिए वहां स्टेंट लगाया जाता है। वहीं बाईपास सर्जरी में चिकित्सक हृदय तक पहुंचने के लिए सीने की हड्डी में चीरा लगाते हैं।

 

 

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Image Source - Getty Images

 

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