अक्सर लोग सोचते हैं कि जरूरत से ज्यादा काबिलियत वाले लोग, कई बार दिमागी रूप से बीमार होते हैं! तो क्या ये लोगों का बस एक भ्रम है या दिमागी गड़बड़ी और क्रिएटिविटी में वाकई कोई संबंध है? इस संबंध में कई शोध हुए हैं, लेकिन ये शोध किसी बुनियाद नतीजे पर पहुंचने के लिये काफी नहीं है।
क्रिएटिविटी और दिमागी बीमारी में बीच के सीधे रिश्ते को बताने के लिए 1987 में अमरीकी मनोवैज्ञानिक नैन्सी एंड्रिएसेन के रिसर्च का हवाला दिया जाता है। इस शोध में उन्होंने 30 लेखकों और 30 सामान्य लोगों का इंटरव्यू किया था। इस शोध में दावा किया गया कि लेखकों के दिमागी रूप से बीमार होने की आशंका अधिक थी। लेकिन केवल 30 लोगों के इंटरव्यू के आधार पर ये दावा मानने योग्य नहीं। इससे ये भी साफ नहीं हो पाया कि इन लोगों को कर की वजह से दिमागी बीमारी हुई या फिर दिमागी बीमारी की वजह से उनमें गैरमामूली कीबिलियत पैदा हुई। इस बारे में दो और शोध का भी हवाला दिया जाता है। अमेरिकी डॉक्टर रेडफ़ील्ड जैमिसन ने दिमागी बीमारी और रचनात्मकता के बीच संबंध ढूंढने के लिए 47 लोगों से बात की, जिनमें लेखक, कलाकार तथा उपन्यासकार शामिल थे। जैमिसन ने देखा कि आधे से ज़्यादा कवियों को कभी न कभी दिमागी खलल का उपचार कराना पड़ा था।
लेकिन, जैमिसन ने कुल नौ कवियों का इंटरव्यू किया और उनमें से आधे को अगर ये समस्या थी भी तो ये सैंपल किसी नतीजे पर पहुंचने योग्य नहीं थे। इसी तरह अमरीकी वैज्ञानिक आर्नॉल्ड लुडविग ने एक हज़ार मशहूर लोगों की जीवनी पढ़ी और उसके आधार पर एक रिसर्च पेपर लिखा। जिसमें चर्चिल और कमाल अतातुर्क जैसे नेता भी शामिल थे। लेकिन खुद लुडविग ने लिखा था कि वो इस शोध के आधार पर ये नहीं कह सकते कि गैरमामूली काबिलियत का दिमागी बीमारी से कोई संबंध है।
अगर तथ्यों के आधार पर बात की जाए तो असल में क्रिएटिविटी और दिमागी बीमारी में कोई संबंध नहीं। ऐसा मानना शायद दिमाग की ही एक उपज है।
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