खाने की दुनिया में कई तरह के डायट प्रोग्राम हैं। और इन प्रोग्राम के बारे में तमाम तरह की जानकारियां भी मौजूद हैं। ऐसे में यह तय कर पाना कि कब, क्या, कैसे और कितना खाना है कई बार मुश्किल में डाल सकता है।
पालियो, वीगन, वेजिटेरियन, लो-कॉर्ब, ग्रेन-फ्री, एटकिन्स, आदि, आदि... । ऐसी कई आहार योजनायें हैं, जिनका नाम हम न जाने दिन में कितनी बार सुनते होंगे। ये सब प्रचलित आहार योजनायें स्वाद और सेहत को लेकर हमारे लिए बहुत संकरा रास्ता बनाती हैं।
सबके लिए एक जैसा !
एक बात गांठ बांध लीजिये। आहार योजनायें मनोविज्ञान जैसी होती हैं। हर किसी पर एक ही फॉर्म्यूला फिट नहीं बैठता। हर किसी की अपनी अलग जरूरत होती है। सेहत और स्वाद को लेकर हर व्यक्ति दूसरे से अलग सोचता है। कोई व्यक्ति सेहत के लिए स्वाद से समझौता कर सकता है, वहीं दूसरे की कोशिश सेहत और स्वाद के बीच सही संतुलन बनाने की होगी।
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कई बातों की अनदेखी
मनुष्य विविधता भरा प्राणी है। हर कोई दूसरे से अलग। हर शरीर की जरूरत अलग। हर शरीर की मांग अलग। हर व्यक्ति की पसंद अलग। यानी आप सबको एक ही नियम पर नहीं चला सकते। मेटाबॉलिज्म, हॉर्मोंस, उम्र, लिंग आदि सब अहम पहलुओं का ध्यान रखा जाना चाहिये। लेकिन, अधिकतर डायट प्लान इन चीजों को शायद उतनी तवज्जो नहीं देते, जितनी कि दी जानी चाहिए।
परफेक्ट की तलाश
किसी एक जैसी आहार योजना पर टिके रहने का कई बार नुकसान भी होता है। जैसे वीगन डायट (जिसने पशु उत्पादों, यहां तक कि दूध का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता) का लंबे समय तक सेवन करने से शरीर में प्रोटीन की कमी होने का खतरा जताया जाता है। एक मुश्किल और चुनौतीपूर्ण वक्त के बाद अपनी जीवन गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए आपको एनिमल प्रोटीन खाने की सलाह दी जाती है। वीगन डायट को कई लोग बहुत अच्छा मानते हैं, लेकिन क्या यह पूरी तरह से परफेक्ट है।
क्या है परफेक्ट आहार योजना
असल में यह सवाल जरा मुश्किल है, लेकिन इसका जवाब हमारे करीब ही है। परफेक्ट आहार वही है, जो आपके शरीर के लिए सही है। आपको अपने शरीर की सुननी चाहिए। वह आपको बताता है कि उसे किस चीज की जरूरत है। और कितनी जरूरत है। बस आप उसे वह आहार, उतनी मात्रा में देते जाइए। यही तो परफेक्ट आहार की सही परिभाषा है।
सहज ज्ञान युक्त आहार
अपने अनुभवों से शायद आपको भी इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि किसी खास किस्म की आहार योजना को अपनाने के नफे-नुकसान दोनों हैं। आमतौर पर इन आहार योजनाओं में किसी पोषक तत्व की अधिकता होती है, तो दूसरे को अनदेखा कर दिया जाता है। हमें अपने शरीर की सुननी चाहिए। वह हमें बताता है कि अपनी जरूरत। लेकिन अकसर हम उसे अनसुना कर देते हैं। शरीर की सुनकर उसके अनुसार भोजन करने की कला ही तो 'सहज ज्ञान युक्त आहार' है।
जल्दबाजी का परिणाम
आमतौर पर लोग डायट या वेट लॉस प्रोग्राम इसलिए अपनाते हैं क्योंकि उन्हें किसी की मदद की जरूरत होती है। या वे हर समस्या का समाधान फटाफट चाहते हैं। नये के पीछे आंख मूंदकर चलना आपकी खराब सेहत के रास्ते पर ले जा सकता है। इससे आप लंबे समय तक और स्थायी आहार योजना से डिग जाते हैं। आप नतीजे फटाफट चाहते हैं, इसलिए शॉर्ट-कट अपनाते हैं।
इतना मुश्किल नहीं है
कई लोग सोचते हैं कि अपने शरीर की सुन-सुनकर ही तो हम मोटे हो गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, हम अपने शरीर की नहीं अपने मन की सुनते हैं। सहज ज्ञान आहार इतना चुनौतीपूर्ण नहीं है। लेकिन, यह एक सप्ताह में तीन किलो वजन घटायें जैसा आसान भी नहीं है। यह एक प्रक्रिया है। इसे समझने में वक्त लगता है। आपको अपने शरीर के संकेतों को समझना पड़ता है। सबसे पहले अपने शरीर से टॉक्सिन को साफ करना होगा। इससे आपको समझने में आसानी होगी कि वास्तव में आपको चाहिए और वास्तव में किन चीजों को अपने आहार से बाहर करना चाहिए। भले ही हम यह सोचते हों कि हमारे आहार में पोषक तत्त्वों की भरमार है, लेकिन हमें समय-समय पर अपने शरीर से टॉक्सिन बाहर करने चाहिए।
संतुलन है जरूरी
यदि आप नियमित रूप से प्रोसेस्ड फूड, चीनी, ट्रांस-फैटी एसिड, सोडियम और कैफीन युक्त उत्पादों का सेवन करते हैं, तो आपके शरीर के असंतुलित होने की आशंका अधिक है। बेशक, आप कुछ जरूरी पोषक तत्त्वों की अनदेखी करते आए हैं। यदि आपको अपनी सेहत की परवाह है। तो सबसे पहले उस आहार को जानना होगा जो आपके शरीर का पोषण करें। यह सेहत की दृष्टि से उठाया गया अहम कदम होगा। इन्ट्यूटिव ईटिंग यानी सहज ज्ञान आहार आपका और आहार का रिश्ता मजबूत करती है। एक बार आप अपने शरीर को डिटॉक्स कर लेते हैं। एक बार उन खाद्य पदार्थों को अपने आहार से बाहर कर देते हैं, जो आपको किसी प्रकार का फायदा नहीं पहुंचा रहे, आपका शरीर सामान्य होना शुरू हो जाता है। आपका मेटाबॉलिज्म सही हो जाएगा। आपकी पाचन क्रिया बेहतर हो जाएगी। आप ज्यादा ऊर्जावान महसूस करेंगे। और आपका शरीर आपको बताएगा कि आखिर उसे क्या चाहिए।
लालसा या तृष्णा नहीं
आप सोच रहे होंगे कि इसमें और तृष्णा में क्या अंतर है। यहां यह समझने की जरूरत है कि हमारे शरीर में भोजन की तृष्णा को रासायनिक अथवा भावनात्मक रूप से बढ़ाया जा रहा है। चीनी का सेवन किसी लत की तरह है। ओर अब तो कई वैज्ञानिक इसे नशा भी मानने लगे हैं। क्या आपको पता है कि 80 फीसदी से ज्यादा प्रोस्सेड फूड में अतिरिक्त शर्करा मिलायी जाती है। प्रयोगशालाओं में तैयार होने वाले भोजन में चीनी, नमक और वसा का ऐसा संयोजन तैयार किया जाता है, जो हमारे मस्तिष्क को प्रसन्न करता है, और वह ऐसे आहार की और मांग करने लगता है।
मर्जी है हमारी
जी हां, हम क्या खाना चाहते हैं यह तय करना हमारा अधिकार है। और हम स्वस्थ आहार के लिए स्वयं को उत्प्रेरित कर सकते हैं। जब हम अपने शरीर का खयाल रखते हैं, और उसे अच्छा, स्वच्छ, साबुत अनाज देते हैं, तो वह भी बदले में हमें ऊर्जा, शक्ति और सेहत से नवाजता है।
चलिये इस सफर पर
सबसे पहले अपने भोजन की रफ्तार को धीमा कीजिये। यूं ही कुछ भी मत खाइये। देखिये, सोचिये और जानिये कि जो आप खा रहे हैं, वह आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है या नहीं। समझिये कि जो आप खा रहे हैं वह वाकई आपके शरीर के लिए अच्छा है या फिर आंख मूंदकर किसी आहार योजना का पालन कर रहे हैं।
सेहतमंद खाओ, तन-मन जगाओ
याद रखिये, जितना स्वस्थ, स्वच्छ आपका आहार होगा, आपके लिए अपने शरीर की आवाज को सुनना उतना आसान होगा। आप उन सहज संकेतों को आसानी से पकड़ पाएंगे। और बदले में आपका शरीर अपनी उच्चतम् क्षमता पर कार्य करेगा। इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है। लेकिन, याद रखिये कि आपको दोबारा किसी डायट प्लान का गुलाम नहीं बनना है।
तो अभी देर नहीं हुई है। आपको गैरजरूरी आहार को अपने खाने से बाहर करना है। लंबा सफर है, इसलिए जरा वक्त तो लगेगा। लेकिन, आखिर वो दिन आना है, जब आप अपने शरीर की सुनेंगे। और आपका शरीर आपको इसका पूरा ईनाम भी देगा।