लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन अर्थात बेड कोलेस्ट्रॉल से जुड़े तथ्य

लीवर में पैदा होने वाली एक प्रकार की चर्बी अर्थात कोलेस्ट्रॉल अच्छा और बुरा दोनो ही प्रकार का होता है, लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन अर्थात बेड कोलेस्ट्रॉल स्वास्थ्य के लिए कई गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।
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लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन अर्थात बेड कोलेस्ट्रॉल से जुड़े तथ्य


कोलेस्ट्रॉल लीवर में पैदा होने वाली एक प्रकार की चर्बी होती है। शरीर को अपनी कार्यप्रणाली को सुचारू रखने के लिए इसकी एक नियत मात्रा की जरूरत होती है। लेकिन कोलेस्‍ट्रॉल का स्‍तर अधिक होना हमारे शरीर के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। हर साल लाखों लोगों की ह्रदय रोगों के कारण मौत हो जाती है। जब किसी स्वस्थ शरीर में कोलेस्ट्रोल सामान्य मात्रा में होता है, तो धमनी और शिराओं में खून का बहाव ठीक रहता है। लेकिन जब कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है तो रक्त-शिराओं में थक्के बनाना शुरू हो जाते हैं। इससे बल्ड प्रेशर में इजाफा होता है। और छाती में दर्द, दिल के दौरे और कई दूसरे तरह के ह्रदय रोगों की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि इस समस्या से बचा जा सकता है, बशर्ते हम कोलेस्‍ट्रॉल (खासतौर पर बेड कोलेस्ट्रोल) के बारे में ठीक प्रकार से समझें और इसे संतुलित करने के संभव प्रयास करें।

Facts About LDL in Hindi

 

लो डेन्स्टिी लिपोप्रोटीन या एलडीएल

रक्त में वसा के प्रोटीन कॉम्प्लेक्स को लिपो-प्रोटीन कहा जाता है। लिपो-प्रोटीन पएलडीएल (कम घनत्व लेपोप्रोटीन) और एचडीएल (उच्च घनत्व लेपोप्रोटीन) दो प्रकार का होता है। लो डेन्स्टिी लिपोप्रोटीन या एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल को बुरा कोलेस्ट्रोल कहा जाता है, क्योंकि यह रक्त वाहिनियों की दीवारों में चारों ओर  एक प्लास्टर की तरह चिपक जाता है और इसके कारण हृदय रोग व पक्षाघात की आशंकायें बढ़ जाती हैं। वहीं हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन या एचडीएल कोलेस्‍ट्रॉल अच्छा होता है क्योंकि यह उस प्लास्टर को उतार कर वापस लीवर तक पहुंचाता है और रक्त वाहिनियों को साफ रखने में मदद करता है।


एलडीएल दरअसल कोलेस्‍ट्रॉल नहीं बल्कि उसका वाहक मात्र होता है। एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल को शरीर की कोशिकाओं में ले जाता है और इस काम को ठीक से करने के बजाय कोलेस्‍ट्रॉल चर्बी को रक्तवाहिनियों की दीवारों पर गिराता चलता है जिसकी वजह से रक्त शिराओं में कई जगहों पर कोलेस्ट्रोल के थक्के जमा हो जाते हैं। इससे रक्‍त का प्रवाह बाधित होने लगता है। स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब एलडीएल के नुकसान की भारपाई करने के लिए आने वाली श्‍वेत रक्‍त कोशिकायें उन थक्कों को और बढ़ा देती हैं।

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कोलेस्ट्रॉल का सामान्य स्तर

सामान्‍यतः रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर 3.6 मिलिमोल्स प्रति लिटर से 7.8 मिलिमोल्स प्रति लिटर के बीच होता है। 6 मिलिमोल्स प्रति लिटर कोलेस्ट्रॉल को अधिक होने की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे में धमनियों से जुड़ी बीमारियों का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। 7.8 मिलिमोल्स प्रति लीटर से अधिक कोलेस्ट्रॉल को उच्च कोलेस्ट्रॉल का स्तर माना जाता है। इसका उच्च स्तर हार्ट अटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ा देता है।

कोलेस्‍ट्रॉल की जांच

कोलेस्‍ट्रॉल के स्तर की जांच रक्त परीक्षण से की जाती है। लेकिन कोलेस्ट्रोल की जांच सब कुछ पूरी तरह नहीं बताती। ऐसा इसलिए  क्योंकि यदि एलडीएल का स्तर अधिक हो और एचडीएल कम तो प्लास्टर तो रक्तवाहिनियों में जमा हो ही रहा होता है। ऐसे में यदि  एलडीएल का स्तर रक्त की प्रति डेसिलीटर मात्रा में 130 मिलीग्राम से ज्यादा हो तो हृदय रोग व मधुमेह की संभावना कम हो जाती है। हृदय रोग और मधुमेह से पीड़ित लोगों में यह स्तर 70 या इससे कम होना चाहिये। वहीं महिलाओं में एचडीएल का स्तर 50 या इससे ज्यादा होना चाहिये।



एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने के लिए भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए और सीमित मात्रा में वसा का सेवन करना चाहिये। इसके अलावा नियमित व्यायाम और दिनचर्या में सकारात्मक बदलाव कर लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन अर्थात बेड कोलेस्ट्रॉल से छुटकारा पाया जा सकता है।

 

 

 

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