अगर आप ये सोचती है कि आपने बचपन में हृयूमन पैपीलोमा वायरस (एचपीवी) के टीकाकरण से सर्वाइकल कैंसर का खतरा टल गया है तो ये गलत है। हाल ही में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की एक शोध के अनुसार जिन महिलाओं ने बचपन में एचपीवी का टीकाकरण कराया है उनमें में सर्वाइकल कैंसर का खतरा है। एचपीवी का टीकाकरण महिलाओं के 9 से 16 वर्ष
सर्वाइकल कैंसर का खतरा
सर्वाइकल कैंसर होने का कारण ह्यूंमन पैपीलोमा वाइरस है। शारीरिक संपर्क में आने पर 'एचपीवी' किसी महिला को संक्रमित कर सकता है। जनन अंगों के त्वचा के संपर्क में आने पर भी यह वाइरस संक्रमित कर सकता है। अगर शारीरिक संपर्क न भी किया जाए तो भी प्रजनन अंगों के बाहरी स्पर्श से भी महिलाओं में इस वाइरस का संक्रमण संभव है। हालांकि शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र इस रोग के वाइरस के संक्रमण को बेअसर करने के लिए 6 से 18 महीने तक संघर्ष करता है। बावजूद इसके अगर संक्रमण बरकरार रहता है तो यह कैंसर में तब्दील हो सकता है। एचपीवी संक्रमण के होने और इसके कैंसर में तब्दील होने में सामान्यत: 20 साल या इससे अधिक का वक्त लग जाता है। इसलिए 35 से 50 साल की उम्र वाली महिलाओं में इस कैंसर के होने का जोखिम ज्यादा होता है।
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एचपीवी टीकाकरण सफल नहीं
इंग्लैंड में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 20 से 29 वर्ष की 10 में से एक महिला में एचपीवी संक्रमण है। इन महिलाओं को वैक्सीन का फायदा नहीं होगा क्योंकि संक्रमण हो जाने के बाद वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर से बचने में मदद नहीं करती। इस तरह उनमें इस बीमारी से बचने की झूठी सुरक्षा भावना जागेगी और वे खुद को वैक्सीन से सुरक्षित मान कर सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए होने वाली नियमित पैप-स्मीयर जांच भी नहीं करवाएंगी। नतीजा वैक्सीन के पहले के समय से ज्यादा भयावह होगा। हालांकि सफल वैक्सिनेशन के बाद भी विशेषज्ञ रूटीन जांच के महत्व को कम नहीं आंकते।
कुछ महिलाओं में इंजेक्शन लगाये जाने वाले भाग पर सूजन व दर्द संभव है और वहीं कुछ महिलाओं में बुखार भी आ सकता है। इसके अलावा इस वैक्सीन के कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं।
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