कुछ सजगताएं बरतकर डायबिटीज के साथ जिंदगी जी रही महिलाएं भी सेहतमंद बच्चे की मां बन सकती हैं। खान-पान और जीवन-शैली में अस्वास्थ्यकर बदलाव मौजूदा दौर की एक प्रमुख समस्या है। यही कारण है कि गलत वन-शैली के कारण मधुमेह (डायबिटीज) की समस्या बढ़ती जा रही है। डायबिटीज की चपेट में पुरुषों की तरह महिलाएं भी हैं। महिलाओं के साथ समस्या तब और बढ़ जाती है, जब वे डायबिटीज से पीडि़त हों और वे मां बनने का फैसला ले चुकी हों। कहते हैं कि अगर समस्या है, तो समाधान भी है। यह बात मौजूदा संदर्भ में भी लागू होती है।
गलत धारणाओं से रहें दूर
डायबिटीज के बारे में पुरुषों के अलावा महिलाओं में भी यह गलत धारणा व्याप्त है कि इस बीमारी से पीडि़त महिलाएं स्वस्थ बच्चों को जन्म नहीं दे सकतीं। इसके विपरीत सच्चाई यह है कि डायबिटीज पीडि़त महिलाएं भी मां बन सकती हैं और स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। हां,इसके लिए उनके ब्लड शुगर का बेहतर नियंत्रण जरूरी है।
गर्भ धारण करने से पहले और गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर ब्लड ग्लूकोज की निगरानी करके, उचित दवा का सेवन करके, संतुलित आहार लेकर और व्यायाम कर शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है और स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है।
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ध्यान दें ये बातें
टाइप-2 डायबिटीज में प्रारंभ में कुछ बीटा सेल्स जीवित होती हैं और उन्हें सक्रिय (एक्टिवेट) करने के लिए दवाओं की जरूरत होती है, जिससे शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा नियंत्रित रहे। वहीं टाइप-1 डायबिटीज पीडि़तों में सभी बीटा सेल्स मृत हो चुकी होती हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें इंसुलिन की जरूरत पड़ती है। डायबिटीज पीडि़तों के इलाज के दौरान डॉक्टरों का मुख्य उद्देश्य उनके ब्लड शुगर को निर्धारित सीमा में रखना होता है ताकि इस बीमारी के कारण कोई अन्य समस्या न आ सके। इस संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि कुछ बच्चे जन्म से ही टाइप-1 मधुमेह से पीडि़त होते हैं। उन्हें जन्म के समय से ही इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है।
पैरों की अनदेखी ठीक नहीं
डायबिटीज वालों को ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने के अलावा उन्हें अपने पैरों का विशेष ख्याल भी रखना चाहिए। डायबिटीज पीडि़तों में पैरों में संक्रमण आम बात होती है, जिसका यदि समय पर निदान और इलाज नहीं हुआ तो पैर काटने की नौबत भी आ जाती है। इसके लिए जरूरी है कि डायबिटीज पीडि़त अपने पैरों की सफाई नियमित रूप से करें, पैरों में चोट लगने, किसी प्रकार का घाव होने और इसके परिणामस्वरूप संक्रमण की स्थिति से बचें। नुकीले शेप वाले जूते व चप्पल पहनने से परहेज करें।
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खाली पैर न रहें
पैरों में रक्त संचार (ब्लड सर्कुलेशन) और संवेदनशीलता की सही जानकारी के लिए पैरों को साल में एक बार डॉक्टर से अवश्य चेक अप कराएं।
जांचें करवाती रहें
डॉक्टर की सलाह पर समय-समय पर किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, आंखों की रेटिना की जांच, लिपिड प्रोफाइल, एचबीए1सी आदि जांच कराते रहने से डॉक्टरों से सही इलाज हासिल करने में मदद मिलती है। डायबिटीज होने पर घबराएं नहीं। अपनी जीवन-शैली में सकरात्मक बदलाव करके इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।
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