3डी प्रिंटिंग तकनीक से होगा डायबिटीज का इलाज

लंदन के शोधकर्ताओं ने एक नये शोध में 3डी प्रिंटिंग तकनीक से टाइप1 डायबिटीज का उपचार ढूंढ लिया है, यानी डायबिटीज अब लाइलाज नहीं है।
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3डी प्रिंटिंग तकनीक से होगा डायबिटीज का इलाज


डायबिटीज को लाइलाज बीमारी माना जाता है, क्‍योंकि यह जीवन पर्यंत रहता है। लेकिन डायबिटीज रोगियों के लिए यह नई खोज एक आशा के किरण की तरह है जिसमें मधुमेह का इलाज संभव है।

Diabetes Can Be Treat in Hindiलंदन के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि टाइप1 डायबिटीज के इलाज में 3डी प्रिंटिंग कैसे सहायक हो सकता है। 3डी प्रिंटिंग तकनीक को बायोप्लॉटिंग के नाम से भी जाना जाता है।

3डी प्रिंटिंग की सहायता से शोधकर्ता अब अपने उस प्रयास में एक पायदान ऊपर पहुंच गए हैं, जहां वे मधुमेह के मरीजों को हाइपोग्लैकेमिक परिस्थिति (रक्त में शर्करा की मात्रा का स्तर कम होना) का अनुभव दे सकते हैं।

इस शोध में यह बताया गया है कि कैसे पैंक्रियाज में बनने वाले इंसुलिन और ग्लुकैगोन के निर्माण के लिए उत्तरदायी विशेष कोशिका क्लस्टर्स को 3डी प्रिंटिंग की सहायता से सफलतापूर्वक स्कैफोल्ड में बदला जा सकता है।

इस शोध के बाद आशा है कि टाइप1 डायबिटीज के मरीजों के शरीर में स्कैफोल्ड को प्रत्यारोपित किया जा सकता है, जिससे उनके शरीर में रक्त में शर्करा का स्तर संतुलित रहे।

आइसलेट कोशिकाएं, जिन्हें आइसलेट ऑफ लैंगरहांस भी कहते हैं, वे पैनक्रियाज कोशिकाओं की क्लस्टर्स होती हैं, जो शरीर के अंदर रक्त में शर्करा की मात्रा के स्तर को भांपकर इसे संतुलित करने के लिए इंसुलिन प्रवाहित करती हैं।

नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटि के प्रोफेसर वैन एपेलडूर्न ने बताया, 'हमने शोध में पाया कि जब आइसलेट कोशिकाएं एक बार 3डी स्कैफोल्ड में संशोधित होकर वापस आती हैं, तो उसके बाद उनमें इंसुलिन प्रवाहित करने और ग्लूकोज के स्तर के अनुसार प्रतिक्रिया देने की क्षमता आ जाती है।'

स्कैफोल्ड मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित होने के बाद यह भी सुनिश्चित करता है कि आइसलेट कोशिकाएं शरीर में अनियंत्रित तरीके से पलायित न हों। यह शोध जर्नल बायोफेब्रिकेशन में प्रकाशित हुआ।

 

IMage Source - Getty

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