मन को शांत कर तनाव और अवसाद दूर करने में बहुत फायदेमंद आसन है भ्रामरी प्राणायाम। भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर अर्थात भंवरे जैसी गुंजन होती है, इसी कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम से जहां मन शांत होता है वहीं इसके नियमित अभ्यास से और भी बहुत से लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। इसे सही तरीके से करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के बारे में हम आपको इस लेख में बताते हैं।
कैसे करें यह आसन
भ्रामरी प्राणायाम करने के लिए सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर सबसे पहले दोनों होथों की अंगुलियों में से अनामिका अंगुली से नाक के दोनों छिद्रों को हल्का सा दबाकर रखें। फिर तर्जनी को पाल पर, मध्यमा को आंखों पर, सबसे छोटी अंगुली को होठ पर और अंगुठे से दोनों कानों के छिद्रों का बंद कर दीजिए।
फिर सांस को धीमी गति से गहरा खींचकर अंदर कुछ देर रोककर रखें और फिर उसे धीरे-धीरे आवाज करते हुए नाक के दोनों छिद्रों से निकालें। सांस छोड़ते वक्त अनामिका अंगुली से नाक के छिद्रों को हल्का सा दबाएं जिससे कंपन उत्पन्न होगा। जोर से पूरक करते समय भंवरी जैसी आवाज और फिर रेचक करते समय भी भंवरी जैसी आवाज उत्पन्न होनी चाहिए। पूरक का अर्थ सांस अंदर लेना और रेचक का अर्थ सांस बाहर छोड़ना।
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इस आसन के फायदे
भ्रामरी प्राणायाम करने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्तिष्क के अन्य रोगों में भी लाभदायक है। इसके अलावा यदि किसी योग शिक्षक से इसकी प्रक्रिया ठीक से सीखकर करते हैं तो इससे हृदय और फेफड़े मजबूत बनते हैं। उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। इससे पर्किन्सन, लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।
बरतें थोड़ी सावधानी
भ्रामरी प्राणायाम को लेटकर नहीं किया जाता है। नाक या कानों में किसी प्रकार का संक्रमण होने कि स्थिति में यह अभ्यास ना करें। नहीं तो संक्रमण बढ़ सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम को शांत माहौल में ही करें, ताकि आप निकलने वाली आवाज हो आसानी से महसूस कर सकें।
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