महिलाओं से जुड़ी तमाम समस्याओं में से एक यूटेरस का फाइब्रॉइड भी है। इसे हिंदी में गर्भाशय की रसोली या बच्चेदानी की गांठ कहते हैं। इस बीमारी के कारण महिलाओं में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें से सबसे बड़ी समस्या है बांझपन। दरअसल फाइब्रॉइड गांठ को कहते हैं। कई बार महिलाओं के गर्भाशय की दीवार पर गांठ बन जाती है। ये गांठ गर्भाशय की ही कुछ सेल्स और टिशूज से मिलकर बनी होती हैं। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर की 35 प्रतिशत महिलाओं में ये समस्या होती है मगर बहुत से लोगों में ये गांठ इतनी छोटी होती है कि इससे कोई शारीरिक परेशानी नहीं होती है, वहीं कुछ लोगों में इसकी वजह से गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
क्या है फाइब्रॉइड
दरअसल जब यूटरस की मांसपेशियों का असामान्य रूप से अतिरिक्त विकास होने लगता है तो उसे फाइब्रॉयड कहा जाता है। यह एक प्रकार का ट्यूमर होता है जो कैंसर के लिए जिम्मेदार नहीं है। जब ये गांठ बननी शुरू होती है तब इसका आकार बेहद छोटा होता है जैसे गेहूं के दाने के बराबर या उससे भी छोटी। मगर आकार बढ़ते-बढ़ते ये गांठ अंगूर के बराबर या फिर छोटी गेंद के बराबर भी हो सकती है। महिलाओं के शरीर में परेशानी तभी शुरू होती है जब ये गांठें आकार में थोड़ी बड़ी हो जाती हैं। कई बार एक ही बड़ी गांठ होती है और कई बार छोटी-छोटी कई गांठें हो सकती हैं।
जब यह गर्भाशय की मांसपेशियों के बाहरी हिस्से में होता है तो ऐसे फाइब्रॉइड को सबसीरस कहा जाता है और अगर यह यूटरस के भीतरी हिस्से में भी होता है तो ऐसे फाइब्रॉइड को सबम्यूकस कहा जाता है। अगर फाइब्रॉयड का आकार छोटा हो और इसकी वजह से मरीज को कोई तकलीफ न हो या उसे गभर्धारण करने की जरूरत न हो तो उसके लिए उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती। आनुवंशिकता, मोटापा, शरीर में एस्ट्रोजेन हार्मोन की मात्रा का बढ़ना और लंबे समय तक संतान न होना इसके प्रमुख कारण हैं।
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क्यों होता है फाइब्रॉइड बांझपन का कारण
फाइब्राइड की समस्या होने पर बांझपन की स्थिति हो सकती है। दरअसल फाइब्राइड में मासिक धर्म के दौरान सामान्य से अधिक रक्तस्राव, यौन संबंध बनाते वक्त बहुत दर्द होना, यौन संबंध के समय योनि से रक्तस्राव होना, मासिक धर्म के बाद भी रक्तस्राव होने जैसी समस्या होती है। इन समस्याओं के कारण अंडाणु और शुक्राणु आपस में मिल नहीं पाते हैं जिसका परिणाम बांझपन होता है। तो काफी हद तक फाइब्राइड बांझपन के लिए भी जिम्मेदार है।
किन्हें होता है खतरा
- मेनोपॉज के बाद महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है क्योंकि उनमें एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ जाता है और ये बढ़ा हुआ एस्ट्रोजन फाइब्रॉइड को जन्म दे सकता है। महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर प्रेगनेंसी के समय भी बढ़ता है। इसलिए कई बार इस दौरान भी गांठ की शुरुआत हो सकती है।
- इसका खतरा उन महिलाओं को भी बहुत ज्यादा होता है जिनका वजन ज्यादा है और जिन्हें मोटापे की समस्या है।
- धूम्रपान और शराब के सेवन से भी इस तरह के फाइब्रॉइड का खतरा बढ़ जाता है।
- गर्भनिरोधक दवाओं के अधिक इस्तेमाल से भी ये समस्या हो सकती है।
- अनुवांशिक कारणों से भी ये रोग हो सकता है। इसलिए अगर आपके परिवार में पहले से किसी को ये समस्या जैसे मां, नानी, बहन आदि को रही है, तो आपको ये समस्या हो सकती है।
- मांसाहार करने वाली महिलाओं में भी इस फाइब्रॉइड का खतरा ज्यादा होता है।
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क्या है इसका उपचार
फाइब्रॉइड के संबंध में सबसे अच्छी बात ये है कि इसकी गांठें कैंसर रहित होती हैं। इसलिए इनका आसानी से उपचार संभव है। पहले ओपन सर्जरी द्वारा इसका उपचार होता था, जिससे मरीज को स्वस्थ होने में लगभग एक महीने का समय लगता था। लेकिन अब लेप्रोस्कोपी की नई तकनीक के जरिये इस बीमारी का कारगर उपचार संभव है। इसमें बड़ा चीरा लगाने के बजाय सिर्फ आधे से एक सेंटीमीटर का सुराख बनाकर दूरबीन के जरिये मॉरसिलेटर नामक यंत्र का उपयोग कर फाइब्रॉयड के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े करके उसे बाहर निकाल दिया जाता है। इस तरीके से इलाज के दौरान मरीज को ज्यादा तकलीफ नहीं होती, खून भी ज्यादा नहीं निकलता और सर्जरी के 24 घंटे बाद महिला आसानी से घर जा सकती है।
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