अति व्यस्तता की वजह से आजकल ज्य़ादातर स्त्रियां सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही है। इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यूटरिन फाइब्रॉयड भी एक ऐसी ही स्वास्थ्य समस्या है, जिससे बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत ज़रूरी है। घर-बाहर की दोहरी जि़म्मेदारियां निभाते हुए स्त्रियां सभी कार्य व्यवस्थित ढंग से करना चाहती हैं, लेकिन जीवन की इस भाग-दौड़ में वे अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतने लगती हैं। उनकी यही आदत कई बीमारियों की वजह बन जाती है। यूटेरिन फाइब्रॉयड भी ऐसी ही समस्याओं में से एक है।
क्या है मर्ज
जब यूट्रस की मांसपेशियों का असामान्य रूप से अतिरिक्त विकास होने लगता है तो उसे फाइब्रॉयड कहा जाता है। इसका आकार मटर के दाने से लेकर क्रिकेट की बॉल से भी बड़ा हो सकता है। जब यह गर्भाशय की मांसपेशियों के बाहरी हिस्से में होता है तो इसे सबसेरस कहा जाता है और अगर यह यूट्रस के भीतरी हिस्से में भी होता है तो ऐसे फाइब्रॉयड को सबम्यूकस कहा जाता है। अगर फाइब्रॉयड का आकार छोटा हो और उसकी वजह से मरीज़ को कोई तकली$फ न हो या उसे गर्भधारण करने की ज़रूरत न हो तो उसके लिए उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती। आनुवंशिकता, मोटापा, एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का बढऩा और लंबे समय तक संतान न होना आदि इसके प्रमुख कारण हैं।
इसे भी पढ़ें : अपनी स्किन के हिसाब से चुने सैनेट्री पैड, कभी नहीं होंगे रैशेज
क्या हैं इसके लक्षण
- विवाह के कुछ वर्षों के बाद तक कंसीव न कर पाना
- पीरियड्स के दौरान दर्द के साथ ज्य़ादा ब्लीडिंग और मासिक चक्र का अनियमित होना, पेट के निचले हिस्से या कमर में दर्द और भारीपन महसूस होना
- अगर फाइब्रॉयड यूट्रस के अगले हिस्से में हो या उसका आकार ज्य़ादा बड़ा हो तो इससे यूरिन के ब्लैडर पर दबाव पड़ता है और बार-बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत महसूस होती है।
- इस बीमारी में पीरियड्स के दौरान हेवी ब्लीडिंग होने की वजह से कई बार मरीज़ में एनीमिया के भी लक्षण देखने को मिलते हैं।
यूटरिन फाइब्रॉयड से बचाव
- अगर परिवार में इस बीमारी की केस हिस्ट्री रही हो तो हर छह माह के अंतराल पर एक बार पेल्विक अल्ट्रासाउंड ज़रूर कराएं।
- संतुलित खानपान अपनाएं।
- नियमित एक्सरसाइज़ करें और अपना वज़न ज्य़ादा न बढऩे दें, क्योंकि मोटापे की वजह से शरीर में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का सिक्रीशन का$फी बढ़ जाता है, जो कि इस बीमारी की प्रमुख वजह है।
इसे भी पढ़ें : महिलाओं में खतरनाक रोग हैं ओएसए, इन लक्षणों से पहचानें बीमारी
उपचार
पहले ओपन सर्जरी द्वारा इस बीमारी का उपचार होता था, जिससे मरीज़ को पूर्णत: स्वस्थ होने में लगभग एक महीने का समय लग जाता था। अब लेप्रोस्कोपी की नई तकनीक के ज़रिये इस बीमारी का कारगर उपचार संभव है, जिसमें ऑपरेशन के अगले ही दिन स्त्री अपने घर वापस जा सकती है।
सर्जरी के बाद रखें ख्याल
- दवाओं के साइड इफेक्ट से कुछ दिनों तक एसिडिटी की समस्या रहती है। इसलिए अपने भोजन में घी-तेल और मिर्च-मसाले का सीमित मात्रा में इस्तेमाल करें।
- भारी वज़न न उठाएं।
- फाइब्रॉयड निकाले जाने के बाद कम से कम छह सप्ताह तक शारीरिक संबंध से बचें।
- अगर आप सर्जरी के बाद कंसीव करना चाहती हैं तो इसके छह महीने बाद ही प्रेग्नेंसी की शुरुआत होनी चाहिए। इसके लिए किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप
Read More Articles On Woman Health In Hindi