
साइटिका स्किएटिक नसों से संबंधित दर्द होता है। यह दर्द रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर टांगों के निचले हिस्से तक जाता है । यह बीमारी 30-50 आयु वर्ग के युवाओं को खासतौर पर परेशान करने लगी है। निष्क्रिय जीवनशैली और मोटापे के कारण बड़ी संख्या में युवा इसका शिकार बन रहे हैं। इस बीमारी का सबसे सामान्य कारण स्पिक डिस्क है। इसे चिकित्सीय भाषा में प्रोलेप्सड डिस्क भी कहा जाता है। लगातार झुकना और मुड़ने वाला काम करने वाले लोगों की डिस्क उभर सकती है। इसके साथ ही जो लोग घंटों बैठकर काम करते हैं या फिर काम के दौरान भारी वजन उठाते हैं उन्हें भी स्लिप डिस्क की शिकायत हो सकती है। लगातार बैठे रहने से रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। यह दबाव सोने या खड़े होने के मुकाबले ज्यादा होता है। इसी तरह मोटापा भी आपकी कमर पर अतिरिक्त दबाव डालता है। इससे भी स्किएटिका हो सकता है।
सामान्य लक्षण
लोअर बैक में दर्द होना सामान्य बात है। 80 से 90 फीसदी लोगों को अपने जीवन में कभी न कभी इस बीमारी से ग्रस्त होना पड़ता है। लेकिन इनमें से केवल पांच फीसदी मामले ही वास्तव में साइटिक के होते हैं। साइटिक नस शरीर की सबसे लंबी नस होती है। यह श्रोणि से शुरू होकर, नितंबों और टांगों से होती हुर्इ पैरों तक जाती है। साइटिका सामान्य कमर दर्द से अलग होता है। साइटिक दर्द कई बार सामान्य होता है, लेकिन कई बार यह दर्द बहुत तेज भी हो सकता है। साइटिक और सामान्य कमर दर्द में यही अंतर होता है कि यह लोअर बैक से शुरू होकर पिंडलियों तक जाता है। कुछ मरीजों को छींकते, खांसते और हंसते समय दर्द होता है। वहीं कुछ लोगों को लगातार खड़े होने या बैठे रहने में भी दर्द होता है। कुछ मरीज पीछे झुकते समय दर्द का आभास करते हैं। वे मरीज जिन्हें लंबे समय तक कमर, लोअर बैक या टांगों के अकड़ने की शिकायत हो या फिर मूत्र अथवा शौच असयंम हो उन्हें फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिये। इसके साथ ही टांगों और पैरों में कमजोरी महसूस करने वाले मरीजों को भी चिकित्सीय सहायता लेनी चाहिये।
जरूरी सावधानी
हालांकि हर बार इस बीमारी को रोक पाना संभव नहीं होता, लेकिन फिर भी ऐसे कई उपाय हैं जिन्हें अपनाकर आप स्लिप डिस्क या कमर की चोट से बचे रह सकते हैं। कमर या पीठ में चोट भी कई बार साइटिका का कारण हो सकती है।
- काम करते हुए सही पॉश्चर में रहें।
- लगातार ज्यादा देर तक बैठे रहने से बचें।
- किसी चीज को उइाते समय जरूरी सावधानी बरतें
- किसी भी चीज को सही पॉश्चर से उठायें
- व्यायाम के बाद और पहले स्ट्रेचिंग करना जरूरी है।
- सामान्य और नियमित व्यायाम से शक्ति और लचीलापन बढ़ता है।
कई तरीके हैं इस बीमारी से बचने के
साइटिका के मुख्य कारणों में डिस्क खिसकना, डिस्क हर्नियेशन, पिरिफॉरमिस सिंड्रोम और मांसपेशियों की कमजोरी शामिल हैं। ऐसे मरीज जिन्हें टांगों में अकड़न या कमजोरी की शिकायत होती है उन्हें डॉक्टर से फौरन संपर्क करना चाहिये। इसके साथ ही मूत्र और शौच असंयम से परेशान लोगों को भी बिना देर किये डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिये। आपकी परिस्थिति को देखते हुए डॉक्टर आपकी रक्तजांच की सलाह दे सकता है। इस जांच के परिणाम के बाद उसे यह पता लगाने में आसानी होगी कि कहीं आपको किसी प्रकार का रक्त संक्रमण तो नहीं। इसके साथ ही डॉक्टर एक्स-रे या सीटी स्कैन या एमआरआई करवाने की सलाह दे सकता है।
इलाज
इस बीमारी के इलाज के लिए स्व-सहायता और चिकित्सीय मदद दोनों की जरूरत होती है। इसके इलाज के लिए दर्द निवारक दवाओं के साथ-साथ इंजेक्शन के जरिये भी दवायें दी जाती हैं। साइकोथेरेपी की मदद से भी साइटिका का इलाज किया जाता है। वहीं नियमित व्यायाम से कमर की मांसपेशियों को मजबूत बनाया जाता है। व्यायाम से एंडोरफिन का स्राव भी अधिक होता है। एंडोरफिन कुदरती दर्दनिवारक है। कई बार डिस्क को इतना नुकसान पहुंच चुका होता है कि दवाओं के जरिये उसे ठीक कर पाना आसान नहीं होता। ऐसे में सर्जरी का सहारा लिया जाता है। स्लिप या डर्नियेटेड डिस्क के लक्षण यदि लगातार बिगड़ रहे हों, तो चिकित्सक सर्जरी का सहारा लेता है।
डिस्केक्टॉमी या फ्यूजन सर्जरी या लेमिनेक्टॉमी अथवा इन दोनों के मेल का सहारा लिया जाता है। स्पाइनल सर्जरी करने से पहले ऑर्थोपेडिक सर्जन मरीज और उसके परिजन को इसके संभावित खतरों के बारे में जरूर आगाह कर देगा।
इस बीमारी का इलाज अब आधुनिक चिकित्सा पद्धति डिजिटल स्पाइन एनालिसिस (डीएसए) टेस्ट और ट्रीटमेंट प्रोग्राम के जरिये किया जाता है। डीएसए टेस्ट में कमर की मांसलता की जांच की जाती है। इसमें मांसपेशियों को मजबूती, लचीलापन और संतुलन देने का काम किया जाता है। इसमें 21 अलग-अलग मापदंडों को आलेखित किया जाता है, जिससे विशेषज्ञों को समस्या का मूल कारण समझने में आसानी होती है।
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