हर साल 12 जून को मनाया जाने वाला विश्व बालश्रम दिवस उन सैकड़ों बच्चों की दुर्दशा को रेखांकित करने वाला एक महत्वपूर्ण दिन है, जो या तो अपनी मर्जी से काम करते हैं या फिर उनसे जबरन काम कराया जाता है। दोनों ही दशा में इन बच्चों को अपनी जीवनयापन के लिए काम करना पड़ता है। यह विश्व भर में एक तेजी से बढ़ती त्रासदी है, जिसे सही तरीके से हल किए जाने की जरूरत है ताकि बच्चों को मानसिक प्रताड़ना से बचाया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के मुताबिक, करीब 15.2 करोड़ बच्चे बालश्रम में लगे हुए हैं और ये चीज लगभग सभी क्षेत्रों में है चाहे वह व्यवसायिक जगत हो या फिर कृषि क्षेत्र। एक अनुमान के मुताबिक, करीब 7 करोड़ बच्चे खतरनाक उद्योगों में काम पर लगे हुए हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से उनके मानिसक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहे हैं।
डर, हताशा और दुर्व्यवहार
बालश्रम के बच्चों पर गंभीर नकरात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। बालश्रम के कारण बच्चों का शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से स्वास्थ्य प्रभावित होता है। बच्चों पर एक नई सनक सवार है, जहां वह भविष्य में काम की संभावनाओं के लिए 'आवश्यक अनुभव' को जुटाने के लिए काम करना चाहते हैं। हालांकि कार्यस्थल पर ज्यादा देर तक काम करने और मौखिक दुर्व्यवहार से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
बाल श्रम के परिणामस्वरूप बच्चों में निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं।
- अवसाद और अलगाव
- घाव लगने के बाद तनाव विकार (PTSD)
- मनोदैहिक विकार, जिसमें मन और शरीर शामिल हैं।
- एडजस्टमेंट विकार, जिसमें बच्चे के लिए एक नए माहौल में तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
- मादक पादर्थों का सेवन, जिसके भयावह अनुभव से उनमें इच्छा शक्ति का ह्रास होता है।
- चिंता संबंधी विकार, जिसमें बच्चों को नई स्थितियों और परिवेश में तालमेल बिठाने में कई समस्याएं आती है जो कि उनके मिजाज को बदलती है और उनमें चिंता की स्थिति पैदा करती हैं।
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मनोवैज्ञानिक भावना का गिरना है सामान्य
मादक पदार्थों के सेवन के लिए बच्चों द्वारा मजदूरी किए जाने की कहानियां आम है। बाल श्रम के कई मनोवैज्ञानिक प्रभाव हैं। बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सार्वभौमिक प्रासंगिकता के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर वह आत्महत्या तक कर लेते हैं। आक्रामकता, चिंता, मादक पदार्थों का सेवन बच्चों में आमतौर पर पाई जाने वाली मनोवैज्ञानिक समस्याओं में से हैं, जिसके कारण वह बाल मजदूरी के दलदल में धंसते चले जाते हैं।
बच्चों को मनोविकार से बचाने के टिप्स
बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य एक संवेदनशील विषय है और इसे बड़ी ही सावधानी से हल किया जाना चाहिए। जिस भी बच्चे में दुर्व्यवहार और मनोवैज्ञानिक विकारों के लक्षण दिखाई दें उसे बेहतर और स्थिर भविष्य देने के लिए उचित उपचार दिया जाना चाहिए। बचपन की घटनाएं और अनुभव अक्सर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर एक भयानक छाप छोड़ते हैं और इसलिए उनमें मनोविकार के लक्षणों पर अच्छी तरह से ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
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लक्षण दिखाई देने पर आप कुछ इस तरह से बच्चों को स्वस्थ महसूस करा सकते हैं।
- बच्चे को गले लगाकर उसके साथ होने का अहसास दिलाएं।
- बच्चे के साथ समय बिताएं, बातचीत करें और अनुभव साझा करें।
- बच्चे के प्रयासों को पहचानें और जब वे कुछ अच्छा करें तो उनकी प्रशंसा करें।
- मानसिक स्वास्थ्य और दैनिक जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने के तरीकों के बारे में बात करें।
- उन्हें मादक पदार्थों के सेवन और नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव से अवगत कराएं।
- काउंसलिंग के लिए बच्चे को मनोवैज्ञानिक के पास ले जाने में शर्म महसूस न करें।
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