ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। यह बीमारी साढ़े तीन हजार लड़कों में से किसी एक को होती है। वैसे तो यह बीमारी बहुत घातक है और इससे भी दुखद यह है कि इस बीमारी का अब तक कोई इलाज मौजूद नहीं है। यह आनुवंशिक बीमारी है, जिस पर अब तक रिसर्च हो रहे हैं। माना जा रहा है कि भारत में ही अकेले पांच लाख से ज्यादा मरीज मौजूद हैं। मरीजों की संख्या को देखते हुए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इसके इलाज का होना बहुत जरूरी है ताकि कोई भी इसकी चपेट में न आए। यहां हम आपको इस बीमारी से जुड़ी विशेष जानकारियां दे रहे हैं।
ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने पर मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और यही इसका सबसे पहला और सामान्य लक्षण है। धीरे-धीरे मांसपेशियां टिश्यूज को नुकसान पहुंचाने लगती हैं। और एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति का निचला हिस्सा काम करना बंद कर देता है। जो बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं, वे किसी भी तरह की फिजीकल एक्टिवटी नहीं कर पाते हैं फिर इसमें बहुत कमजोर होते हैं। इन्हें चलने-फिरने में भी तकलीफ होती है। यह बीमारी एक समय बाद पूरे शरीर को प्रभावित करने लगती है। जिसमें दिल और रेस्पिरेटरी सिस्टम से जुड़ी प्रॉब्लम भी है। वैसे तो यह आनुवंशिक बीमारी है। लेकिन यह इतनी घातक है कि अगर बच्चे को यह बीमारी हो जाए तो उसके लिए चलना-फिरना तक संभव नहीं होता है। और 20 की उम्र तक आते-आते मरीज सपोर्ट वेंटिलेशन पर डिपेंड रहने लगता है।
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क्यों होता है पुरुषों को अधिक खतरा
ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने के मुख्य रूप से दो कारण देखे गए हैं। एक है प्रोटीन की कमी। डिस्ट्रोफिन नाम का एक प्रोटीन मुख्य रूप से मांसपेशियों में पाई जाती है। इसमें कमी होने के कारण ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नाम की बीमारी होती है। इसके अलावा यह बीमारी आनुवांशिक होती है, जैसा कि पहले भी कई बार जिक्र किया गया है। लगभग पचास फीसदी मामले ऐसे देखे गए हैं, जिसमें मरीज के घर में इस बीमारी का इतिहास मिलता है। यह बीमारी दो से तीन साल के बच्चों में देखने को मिलने लगती है। जबकि महिलाओं के मुकाबले पुरुष इस बीमारी के ज्यादा शिकार होते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा इसलिए है क्योंकि डायस्ट्रोफिन जीन एक्स क्रोमोसोम पर होता है और पुरुषों के पास एक एक्स क्रोमोसोम होता है और महिलाओं के पास दो क्रोमोसोम। इसलिए महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक डायस्ट्रोफिन का उत्पादन करती हैं। यही कारण है कि महिलाओं को डीएमडी होने का खतरा कम होता है।
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ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज
इस बीमारी का अब तक कोई इलाज नहीं है। हां, समय रहते इस बीमारी के पता चल जाए, तो बीमारी की गति को धीमा किया जा सकता है और मरीज की स्थिति में कुछ समय के लिए सुधार किया जा सकता है। आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण दिखने और बीमारी का पता चलते-चलते काफी देर हो जाती है। बीमारी के पहले लक्षण पांच की उम्र में दिखाई देते हैं। स्पष्ट तौर पर स्थिति को समझते-समझते आठ से दस साल का समय लग जाता है। इस बीमारी का निदान चाहिए, तो इसके लिए जरूरी है कि इस पर भरपूर शोध और रिसर्च किए जाए।
शोध क्या कहते हैं
एक न्यूज एजेंसी की मानें तो अब तक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं आया है। जो इलाज मौजूद हैं, वह इतने सटीक नहीं हैं, जिससे मरीज को विशेष लाभ मिल सके। इसके अलावा इस बीमारी के लिए जो इलाज मौजूद भी हैं, वह बहुत महंगे हैं,जिसे हर कोई वहन नहीं कर सकता। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जोधपुर ने 'डिस्ट्रोफी एनीहिलेशन रिसर्च ट्रस्ट' बेंगलुरु और ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस जोधपुर के सपोर्ट से डीएमडी के लिए एक रिसर्च सेंटर स्थापित किया गया है। इस सेंटर का लक्ष्य इस दुर्लभ और लाइलाज बीमारी का इलाज तलाशना है।
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