नवजात शिशुओं को जन्म से ही कुछ रोग होते हैं। इन रोगों में आप ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला को भी शामिल कर सकते हैं। ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला (टीईएप) रोग तब होता है, जब शिशु की श्वासनली (windpipe) और आहार नली या ग्रासनली (गले को पेट से जोड़ने वाली नली) के बीच विकार उत्पन्न होता है। आमतौर पर, आहार नली (esophagus - खोखली नली जो आपके गले को आपके पेट से जोड़ती है) और श्वासनली (श्वसन नली) अलग-अलग होती हैं। ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला (टीईएफ) से पीड़ित बच्चों में यह दोनों नली अलग नहीं हो पाती है। इसके चलते बच्चों के फेफड़ो में भोजन और अन्य तरल जानें की संभावना बढ़ जाती है। ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला की समस्या एसोफैगल एट्रेसिया के साथ होती है। इस लेख में मयूर विहार स्थित ऐंजल मदर एंड चाइल्ड क्लीनिक के पीडियाट्रिक्स सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मनीष गुप्ता से आगे जानेंगे कि शिशुओं को ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला होने के क्या कारण होते हैं और इस समस्या में शिशुओं को क्या लक्षण दिखाई देते हैं।
ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला का क्या कारण है? - What is Tracheoesophageal fistula in Hindi
भ्रूण के विकास के दौरान, ग्रासनली और श्वासनली एक ही ट्यूब के रूप में बनती हैं। लेकिन, गर्भधारण के लगभग चार से आठ सप्ताह बाद, इसके बीच एक दीवार बन जाती है, जिससे यह एक ट्यूब दो अलग-अलग ट्यूब में विभाजित हो जाती है। यदि यह दीवार ठीक से नहीं बनती है, तो इसका परिणाम ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला हो सकता है।
ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला के लक्षण - Symptoms of Tracheoesophageal fistula In hindi
ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला के दौरान दिखाई देने वाले लक्षण आगे बताए गए हैं।
- सांस लेने में परेशानी होना
- शिशु को निगलने में परेशानी होना
- लार व बलगम बनना
- दम घुटना
- मुंह से सफेद झाग निकालना
- शिशु की त्वचा का रंग नीला पड़ना
ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला के प्रकार - Types Of Tracheoesophageal fistula In Hindi
ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला के पांच प्रकार होते हैं। आगे आपको इनके प्रकार के बारे में बताया गया है।
टाइप ए
इसमें, शिशुओं में केवल एसोफेजियल एट्रेसिया (ईए) की समस्या होती है। इसमें ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला नहीं होता है।
टाइप बी
यह एक दुर्लभ मामला है। इसमें शिशु की ग्रासनली का निचला भाग किसी थैली में समाप्त होता है, जबकि ऊपरी भाग एक टीईएफ द्वारा आपके श्वासनली से जुड़ा होता है।
टाइप सी
यह बेहद ही आम प्रकार माना जाता है। इसमें ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला के साथ पैदा हुए शिशुओंं की ग्रासनली का ऊपरी भाग एक थैली में समाप्त होता है, जबकि निचला हिस्सा एक टीईएफ द्वारा श्वासनली से जुड़ा होता है।
टाइप डी
यह एक दुलर्भ समस्या है। इसमें मामले बेहद कम देखने को मिलते हैं। इसमें ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला ग्रासनली के दोनों हिस्सों (ऊपरी और निचले) को श्वासनली से जोड़ता है।
टाइप ई
इसे एच-प्रकार फिस्टुला के रूप में जाना जाता है। इसमें ग्रासनली पेट से जुड़ती है। ठीक इसी तरह जगह पर ट्रेकियोइसोफेगल फिस्टुला ग्रासनली और श्वासनली को भी एक साथ जोड़ता है।
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शिशुओं की इस समस्या के लक्षणों को पहचानकर डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। इस सर्जरी में ग्रासनली से जुड़ी समस्या को दूर करने के प्रयास किया जाता है। यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह एक घातक रोग बन सकता है।