बच्चों में Sensory Seeking के लक्षण, जानें इसके बारे में

What is Sensory Seeking Signs: उम्र के साथ बढ़ने पर बच्चे गंध, स्वाद, ध्वनि, दृष्टि और स्पर्श जैसी चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं।
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बच्चों में Sensory Seeking के लक्षण, जानें इसके बारे में


What is Sensory Seeking Signs: बच्चों का चुलबुला और नटखट व्यवहार सको पसंद आता है। बच्चों के शरीर में उम्र बढ़ने के साथ ही कई तरह के मानसिक और शारीरिक विकास भी होते रहते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी इंद्रियों का क्षमता भी विकसित होने लगती है। बचपन में बच्चे जब इंद्रियों में संवेदी अनुभव की तलाश करना शुरू करते हैं, तो वह हर चीज के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। सभी बच्चों में यह गतिविधि एक जैसी नहीं होती है। इस स्थिति को बच्चों की सेंसरी सीकिंग (Sensory Seeking) कहते हैं। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं बच्चों में सेंसरी सीकिंग के बारे में।

बच्चों में Sensory Seeking के लक्षण- What is Sensory Seeking Signs in Hindi

उम्र के साथ बढ़ने पर बच्चे गंध, स्वाद, ध्वनि, दृष्टि और स्पर्श जैसी चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं। बच्चे धीरे-धीरे इन चीजों को सीखते हैं। लेकिन सभी बच्चों में यह स्थिति एक जैसी नहीं होती है। कुछ बच्चे खेलकूद के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं। वहीं कुछ बच्चों का आकर्षण किसी खास तरह की म्यूजिक में होता है, तो कुछ बच्चे स्वाद यानी खाने-पीने की चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं। इसी स्थिति को सेंसरी सीकिंग कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ बच्चों में सेंसरी सीकिंग से जुड़ी परेशानियां भी होती हैं।

What is Sensory Seeking Signs

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बच्चों में सेंसरी सीकिंग से जुड़ी परेशानी होने पर ये लक्षण दिखाई देते हैं-

  • बार-बार चीजों को मुंह में डालना
  • किसी की गोद में न जाना
  • गले लगने में हिचकिचाना
  • हाइपर एक्टिव होना
  • ऊँचे स्थानों से कूदना
  • वस्तुओं को छूना या सहलाना
  • स्थिर बैठने में परेशानी होना

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बच्चों में सेंसरी सीकिंग के लक्षण दिखने पर उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस स्थिति को नजरअंदाज करने से आगे चलकर बच्चों में कई तरह की परेशानियों का खतरा रहता है। सेंसरी सीकिंग से जुड़ी स्थितियां इंद्रियों को ट्रिगर कर सकती हैं। इससे बच्चों में लाइट, साउंड, स्पर्श और गंध आदि से जुड़ी परेशानियों का खतरा रहता है।

बच्चे की किसी भी बात के लिए रोकटोक न करना आगे चलकर उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है। आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों की हर बात के लिए ना कहना भी खतरनाक होता है लेकिन उनकी हर बात मान लेना भी उनके ऊपर नकारात्मक असर डाल सकता है। पेरेंट्स को बच्चो को हां या ना बोलने की लिमिट जरूर सेट करनी चाहिए। किसी भी तरह के असामान्य लक्षण दिखने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

(Image Courtesy: Freepik.com)

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