Mononucleosis: बच्चों में ये 6 लक्षण हो सकते हैं इस बीमारी के संकेत, जानें क्या है ये और इसका इलाज

हो सकता है आपके लिए यह नाम नया हो, लेकिन यह एक आम बीमारी है और किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। लेकिन यह बच्चों में ज्यादा असर करती है 
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Mononucleosis: बच्चों में ये 6 लक्षण हो सकते हैं इस बीमारी के संकेत, जानें क्या है ये और इसका इलाज


मोनोन्यूक्लिओसिस एक प्रकार का बच्चों व टीनेजर में होने वाला कॉमन वायरल इंफेक्शन है जोकि एपस्टिन-बार-वायरस के द्वारा होता है। लगभग 85-90% एडल्ट्स में 40 वर्ष के होने तक इस वायरल से बचने की एंटी बॉडीज डेवलप हो जाती हैं। यह वैसे तो ज्यादातर जवान बच्चों में देखने को मिलता है लेकिन कभी कभार यह छोटे बच्चों में भी देखने को मिल सकता है। इसे एक प्रकार की किसिंग डिजीज (Kissing Disease) भी कह सकते हैं क्योंकि यह किसी संक्रमित व्यक्ति की लार (saliva) के सम्पर्क में आने से फैलता है। हालांकि यह वायरस केवल किस करने से ही नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत चीजों को साझा करने से भी फैल सकता है जैसे यदि आप एक ही गिलास या बर्तन में पानी पीते हैं या खाना खाते है तो भी यह बीमारी फैल सकती है। यह खांसी या छींकने (Sneezing) से भी फैल सकती है। यह ज्यादातर स्कूली बच्चों के माध्यम से भी फैल सकती है।

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कैसे जानें कि आपका बच्चा मोनो संक्रमित है? (Symptoms of Mononucleosis)

मोनो होने के लगभग 4-6 हफ्ते के बाद आपके बच्चे में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। यदि आपके बच्चे को मोनो होगा तो उसमें निम्न लक्षण देखने को मिल सकते हैं। 

1. बहुत ज्यादा थका हुआ महसूस करना। 

2. बुखार होना।

3. गले में दर्द होना। 

4. बढ़े हुए लिम्फ नोड्स

5. मसल्स में दर्द होना।

6. पेट के उपरी व बायीं हिस्से में दर्द होना। 

जो बच्चे हाल ही में एंटी बायोटिक्स द्वारा ठीक किए गए हैं उन्हें उनके शरीर पर पिंक कलर के रैश(Rashes) देखने को मिल सकते हैं। कुछ लोगों को मोनो होने के बाद भी यह पता नहीं चलता है कि उन्हें मोनो है। कई बार बच्चों में केवल बुखार या इंफेक्शन जैसी लक्षण देखने को मिलते हैं जो उनके माता पिता ज्यादातर इग्नोर कर देते हैं। 

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आप मोनो को कैसे पहचान सकते हैं (How to Diagnose)

वैसे तो यह पता लगा पाना बहुत मुश्किल होता है कि आपको मोनो है या नहीं क्योंकि इसके (Symptoms of mono) लक्षण बुखार व अन्य प्रकार के लक्षणों से काफी मिलते जुलते होते हैं लेकिन यदि आप अपने बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं तो डॉक्टर इसके बारे में पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट कराते हैं, जिसे मोनोस्पोट टेस्ट (Monospot test)कहा जाता है। इसके लिए वैसे तो कोई टेस्टिंग जरूरी नहीं है क्योंकि यह  आसानी से ठीक हो जाता है। 

मोनोस्पोट टेस्ट इंफेक्शन होने के पहले ही हफ्ते में किया जाता है और यह गलत भी साबित हो सकता है। यदि टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आती है और आपके बच्चे को इसके लक्षण महसूस हो रहे हैं तो इस टेस्ट को दोबारा भी किया जा सकता है परंतु इसके लिए एक हफ्ते का इंतजार करना होता है। इसके लिए कुछ अन्य टेस्ट जैसे कंप्लीट ब्लड टेस्ट आदि भी किए जा सकते है। जिन लोगों को मोनो होता है उनके ब्लड में ज्यादा लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) पाए जाते हैं। 

इसका क्या इलाज होता है (Treatment)

  • -अपने बच्चों को आराम करने दें (Rest): सबसे पहले यह ध्यान करें कि आपका बच्चा पूरी तरह ठीक होने तक आराम कर रहा हो। यदि वह आराम नहीं करेगा तो उसको और ज्यादा थकान महसूस होगी। 
  • -उसे हाइड्रेटेड रखें (Hydration): यदि आपके बच्चे पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पिएंगा तो उन्हें शरीर में और ज्यादा दर्द होगा इसलिए उन्हें खूब सारा पानी पिलाएं। 
  • -कोई पेन रिलीवर दें (Pain Reliever): यदि आपके बच्चों के शरीर में ज्यादा दर्द हो रहा है तो आप उन्हें इबूप्रोफेन जैसी दवाई दे सकते है।  
  • -उन्हें कुछ ठंडी ड्रिंक्स दें (Cold Drink): यदि बच्चों के गले में ज्यादा दर्द हो रहा है तो आप खाने या पीने के लिए कुछ ठंडी चीजें दें या  नमक के पानी के गरारे भी फायदा करेंगे।
  • -आपके बच्चों को ठीक होने में कितना समय लग सकता है (Time For Recovery)

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वैसे तो मोनो होने के लगभग एक या दो हफ्तों में ही आपके बच्चे ठीक हो सकते हैं लेकिन कई बार थकान और शरीर में दर्द एक महीने तक भी रह सकता है। जब आपके बच्चे इससे ठीक हो रहे हो तो यह ध्यान रखें कि वह ज्यादातर खेलों में भाग न लें अन्यथा उनका शरीर का दर्द और भी बढ़ सकता है। आप अपने डॉक्टर से यह सलाह ले सकते हैं कि कब आपका बच्चा खेलों में दोबारा से भाग ले सकता है। हालांकि इस दौरान आप उन्हें स्कूल भेज सकते हैं।

इस बीमारी से बचाव के लिए फिलहाल कोई टीका नहीं है। लेकिन इसका एक ही बेहतर उपाय है कि किसी भी चीज को साझा करने से बचें और बच्चे को इसके विषय में बताएं। वैसे भी बचपन में एक बार इस वायरस से संक्रमित होने पर बाकी जीवन में यह वायरस शरीर के अंदर निष्क्रिय रहता है व इसके दोबारा होने की संभावना बहुत ही कम है।

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