क्या कभी आपने सोचा है कि चुंबन से भी बीमारी फैलती है? अगर नहीं तो आज हम आपको उस बीमारी के बारे में बता रहे हैं। चुंबन से फैलने वाली बीमारी को ‘किसिंग डिजीज’ कहा जाता है। आरबीटीबी हॉस्पिटल (Rajan Babu Institute of Pulmonary Medicine and Tuberculosis) में मेडिकल ऑफिसर डॉ. अनुराग शर्मा (MBBS) ने बताया कि किसिंग डिजीज को मेडिकल भाषा में इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लियोसिस(infectious mononucleosis) या ग्लैंड्यूलर फीवर (glandular fever) कहा जाता है। यह बीमारी कई वायरसों से फैल सकती है लेकिन 90 फीसद मामलों में देखा गया है कि यह बीमारी एपस्टीन बार वायरस (EBV) से फैलती है। अमेरिकी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक किसिंग डिजीज को ह्युमन हर्पीज 4 भी कहा जाता है। यह हर्पीज परिवार का वायरस है। डॉ. अनुराग से जानते हैं कि यह बीमारी कैसे फैलती है और इससे बचाव क्या है।
किसिंग डिजीज (इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लियोसिस) क्या है?
डॉ. अनुराग शर्मा ने बताया कि यह बीमारी मनुष्य की लार से फैलती है। जब चुंबन (Kiss) के समय एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से संपर्क होता है, तब यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में चला जाता है। फिर यह पूरे शरीर में फैल जाता है। ईबीवी संक्रमण युवाओं में अधिक फैलता है। लेकिन इसके अलावा यह वायरस किसी भी बॉडी फ्लुड से फैल सकता है। ईबीवी वायरस खांसने, छींकने, ब्लड ट्रांसमीशन, सैक्शुअल कॉन्टैक्ट से भी एक इंसान से दूसरे इंसान में जा सकता है। एपस्टीन बार वायरस आमतौर पर युवाओं और किशोंरों को प्रभावित करता है। बच्चे अगर संक्रमित भी होते हैं तो उनमें लक्षण कम आते हैं। तो वहीं, बुजुर्गों में संक्रमण की संभावना कम होती है।
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इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लियोसिस (किसिंग डिजीज) के लक्षण
- बुखार
- थकान
- सिर में दर्द
- शरीर में दर्द
- गर्दन में सूजन आना
- टॉन्सिल्स में सूजन आना
- लिवर का बढ़ना
- स्पीन को बढ़ाना
- चकत्ते
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किसिंग डिजीज का निदान (Diagnose) कैसे होता है?
डॉ. अनुराग ने बतााय कि जब कोई मरीज एपस्टीन बार वायरस के लक्षणों को लेकर आता है तो सबसे पहले पेशेंट की हिस्ट्री ली जाती है। पेशेंट के लक्षणों को देखकर पता लगाया जाता है कि यह मोनोन्युक्लीयोसिस का मामला है। इसके अलावा टॉन्सिल्स का परीक्षण किया जाता है। गर्दन में कोई सूजन तो नहीं है या लिंफनोड्स (lymphnodes) बढ़े हुए तो नहीं हैं। कभी-कभी गर्दन के अलावा बगल के लिंफनोड्स भी बढ़ जाते हैं। इसका पता लगाने के लिए कुछ एंटीबॉडी टेस्ट किए जाते हैं। जिससे एपस्टीन बार वायरस का पता लगाया जाता है।
किसिंग डिजीज का इलाज
डॉ. अनुराग ने बताया कि किसिंग डिजीज का कोई विशेष इलाज नहीं है। वायरल डिजीज है इसलिए एंटीबायोटिक काम नहीं करती है। इसलिए बीमारी का इलाज सप्रोर्टिव ट्रीटमेंट होता है। सपोर्टिव ट्रीटमेंट में डॉ. अनुराग ने निम्न उपाय बताए-
आराम करें
डॉ. अनुराग का कहना है कि एपस्टीन बार वायरस से पीड़ित व्यक्ति जितना आराम करेगा उसे उतना आराम मिलेगा। थकान कम होगी। शरीर की वायरस से लड़ने की क्षमता बनी रहेगी।
हाइड्रेट रहें
वायरस से लड़ने के शरीर में पानी की मात्रा बढ़ानी है। इससे भी शरीर वायरस से लड़ने की तैयार रहता है। शरीर में पानी कम होने पर अन्य रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है।
गोलियां
डॉ. अनुराग का कहना है कि शरीर को हाइ़ड्रेट रखने के अलावा
और आराम करने के अलावा मरीज गोलियां भी ले सकता है। जैसे अगर मरीज को दर्द हो रहा है तो वह ब्रूफेन या कॉम्बीफ्लेम ले सकते हैं। यह गोलियां भी दर्द में आराम करेंगी।
गरारे करें
इंफेक्शियस मोनोन्युक्लीयोसिस की वजह से गले में जो दर्द होता है उससे बचने के लिए मरीज गरारे कर सकता है। इस दर्द को दूर करने के लिए पानी में नमक डालकर दिन में 4-5 बार गरारे कर सकते हैं। गरारे से गले के दर्द में आराम मिलता है।
ज्यादा बोलें नहीं
डॉ. अनुराग का कहना है कि इंफेक्शियस मोनोन्युक्लीयोसिस से बचने के लिए ज्यादा बातें न करें। कम बोलें। इससे गले को आराम मिलेगा और आपका दर्द होगा। इसमें कोई एंटीवायरस दवा नहीं दी जाती है।
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कितने समय में फैलती है यह बीमारी?
डॉ. अनुराग का कहना है कि आमतौर पर यह बीमारी को ज्यादा प्रभावित करती है। किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के 4 से 6 सप्ताह के बाद यह वायरस गैर संक्रमित व्यक्ति में फैलता है। उदाहरण के लिए आज अगर आपमें वायरस किसी भी वजह से आ गया है तो उसे बढ़ने में 4 से 6 हफ्ते लगेंगे। जब वायरस आता है तब शुरु में 1 हफ्ते तक थकान, शरीर में दर्द होता है उसके बाद बुखार, गले में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह से लगभग 4 हफ्ते तक यह लक्षण रहते हैं। फिर सपोर्टिव ट्रीटमेंट से यह ठीक हो जाते हैं। कुछ लोगों में यह लक्षण लंबे समय तक रह सकते हैं। लेकिन आमतौर पर 1 महीने में इस बीमारी के सभी लक्षण चले जाते हैं।
किसिंग डिजीज (इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लियोसिस) के जोखिम
डॉ. अनुराग ने कहा कि यह बीमारी स्वयं सीमित बीमारी (self limiting disease) है। लेकिन सपोर्टिव ट्रीटमेंट से यह ठीक भी हो जाती है। लेकिन कुछ मामलों में इसके जोखिम भी हो सकते हैं। तो मरीज को जोखिमों को ध्यान रखना है। डॉ. अनुराग ने निम्न जोखिम बताए हैं-
- लिवर का बढ़ना
- हेपेटाइटिस होना
- स्पलीन का साइज बढ़ना
- दिल में सूजन आ जाना
- दिमाग के चारों ओर झिल्लियों में सूजन आना
किसिंग डिजीज से बचें कैसे?
डॉ. अनुराग ने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए कोई वैक्सीन नहीं बनी है। इससे निम्न तरीकों से बचा जा सकता है-
- हाइजीन का ख्याल रखें।
- ओरल हाइजीन रखें।
- किसी दूसरे के बर्तन इस्तेमाल नहीं करना
- दूसरों के साथ खाना और ड्रिंक शेयर नहीं करना
- किसी दूसरे का गिलास इस्तेमाल नहीं करना
इंफेक्शियस मोनोन्युक्लीयोसिस एक संक्रामक रोग है। किसिंग डिजीज के मामले भारत में कम आते हैं। कुछ बचावों को अपनाकर इससे बचा सकता है। यह बीमारी युवाओं में अधिक होती है। साथ ही यह लार से फैलती है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि आप दूसरों के साथ खाना, पानी शेयर न करें। क्योंकि शेयर करने से एक व्यक्ति की लार दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आती है।
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