
26 अक्टूबर को अमेरिका देश में स्थित टेनेसी राज्य में एम्ब्रयो फ्रीजिंग तकनीक से एक बच्ची ने जन्म लिया। इस बच्चे का जन्म 27 साल पहले फ्रीज कराए गए एम्ब्रयो से हुआ है। बता दें कि इस तकनीक से जन्म लेने वाली बच्ची का नाम मॉली एवरेट है। वर्ष 1992 में एक महिला ने एम्ब्रयो फ्रीज करवाए थे। जिसे अब 12 फरवरी, 2020 को ट्रांसप्लांट किया गया। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या है यह तकनीक?
बता दें कि ICMR दिशानिर्देशों के अनुसार, एम्ब्रयो फ्रिजिंग का उपयोग 5 साल बाद भी किया जा सकता है। इसके लिए महिलाओं को किसी भी इंजेक्शन या अन्य कोई प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता है। सिर्फ इतना ही नहीं, एम्ब्रयो को पांच साल के भीतर दोबारा परीक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। आइये जानते हैं इसके बारे में डॉ पारुल सिंघल, स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति विशेषज्ञ - एलिक्सर हेल्थकेयर से। पढ़ते हैं आगे...

Embryo cryopreservation एम्ब्रयो क्रायोप्रिजर्वेशन क्या है?
एम्ब्रयो क्रायोप्रिजर्वेशन एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें एम्ब्रियो फ्रीज़ किया जाता है और स्टोर करके रखा जाता है। ये IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) का जरूरी हिस्सा है। बता दें कि IVF/ICSI की प्रक्रिया में स्त्री के एग सेल्स (oocyte) और पुरुष के एग (स्पर्म) को निकालकर लैब में एक खास द्रव्य जिसे कल्चर मीडियम कहते हैं, में रखते हैं। कल्चर मीडियम में बनने वाले नए सेल को एम्ब्रियो कहा जाता है। इसके बाद स्त्रियों के यूट्रेस में इन एम्ब्रियो को डालते हैं। बता दें कि ये एम्ब्रयो यूट्रेस की सतह से खुद को जोड़ लेते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन भी कहते हैं। एम्ब्रियो इम्प्लांटेशन के बाद ये बच्चे के रूप में बढ़ने लगता है।
महिला को IVF प्रक्रिया के दौरान 8 से 10 तक हॉर्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं। जिससे महिला की ओवरी से एग सेल्स आसानी से निकलें। वहीं दूसरी तरफ पुरुषों से वीर्य लिया जाता है। पुरुष के वीर्य में लाखों एग्स होते हैं जिन्हें स्पर्म कहा जाता है। अब फीमेल के एग और स्पर्म को मिलाकर एम्ब्रियोज़ बनाए जाते हैं। ध्यान दें कि IVF प्रक्रिया के जरिये महिला के यूट्रस में कितने एम्ब्रियो को भेजा जाएगा इसका फैसला डॉक्टर उम्र और इलाज के आदार पर करते हैं। बता दें कि एक बार में एक से लेकर तीन एम्ब्रियो तक यूट्रेस में भेजे जा सकते हैं। इससे प्रग्रेंसी का चांस भी बढ़ सकें।
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Embryo Freezing एम्ब्रयो फ्रीजिंग की पुरानी प्रक्रिया
आईवीएफ की शुरुआत से ही एम्ब्रयो फ्रीजिंग चर्चा में रही है। बता दें कि शुरुआत में इस चिकित्सक तकनीक को स्लो फ्रीजिंग के नाम से जाना जाता था। इस तकनीक में मौजूद डिवाइस स्लो फ्रीजर (Slow Freezer) के माध्यम से एम्ब्ररो के तापमान को कम किया जाता था। ये तापमान -190 डिग्री तक ले जाया जा सकता था। एक बार एम्ब्रयोज़ को फ्रीज करने के बाद उन्हें लिक्विड नाइट्रोजन में प्रीजर्व करके रख दिया जाता था। स्लो फ्रीजिंग के दिनों में जब इन एम्ब्ररोज़ को रूम टेंपरेचर यानि नॉर्मल टेंपरेचर में लाते थे तो सर्वाइव एम्ब्ररोज़ 60 से 70 प्रतिशत ही होते थे। वहीं प्रेग्नेंसी के चांस लगभग 20 से 30 प्रतिशत हुआ करते थे। पर अब इस प्रक्रिया में बदलाव आया है।
एम्ब्रयो फ्रीजिंग के लिए तैयारी
- ब्लड टेस्ट स्क्रीनिंग एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगता है।
- अंडो की गुणवत्ता और संख्या पता लगाने के लिए ओवेरियन रिज़र्व टेस्टिंग कराई जाती है।
- FSH (follicle-stimulating hormone) के परिक्षण से महिला के अंडे की गुणवत्ता और संख्या का पता चलता है।
- Infection disease Syndrome की भी जांच की जाती है।
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साइड इफेक्ट्स ऑफ़ एम्ब्र्यो फ्रीजिंग
- एम्ब्र्यो फ्रीजिंग के समय सेवन की जाने वाली दवाइया के साइड इफेक्ट्स हो सकते है।
- इस प्रक्रिया के दौरान महिलाओं को ओवेरियन हाइपर स्टिमुलेशन सिंड्रोम हो सकता है।
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