डायबिटीज के लिए स्‍टेम सेल के प्रयोग ने जगाई उम्‍मीद, आसान होगा उपचार: शोध

सेंट लुइस की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि जब उन्होंने बीटा सेल्स को ऐसे चूहे में डाला जो इंसुलिन नहीं बना सकता, तब नई कोशिकाओं ने कुछ ही दिनों में इंसुलिन छिपाना शुरू कर दिया और फिर उन्होंने महीनों तक जानवरों में ब्लड शुगर कंट्रोल करना जारी रखा।
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डायबिटीज के लिए स्‍टेम सेल के प्रयोग ने जगाई उम्‍मीद, आसान होगा उपचार: शोध


इंसुलिन को छिपाने वाली बीटा कोशिकाओं में ह्यूमन स्टेम सेल्स को समाहित करने के तरीके की खोज के बाद अब शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस तरीके को अपनाकर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को काबू में रखने में आसानी होगी। सेंट लुइस की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि जब उन्होंने बीटा सेल्स को ऐसे चूहे में डाला जो इंसुलिन नहीं बना सकता, तब नई कोशिकाओं ने कुछ ही दिनों में इंसुलिन छिपाना शुरू कर दिया और फिर उन्होंने महीनों तक जानवरों में ब्लड शुगर कंट्रोल करना जारी रखा।

 

वैज्ञानिकों का मत 

असिस्टेंट प्रोफेसर जेफ्री आर मिलमैन ने कहा, "हमने इन सेल्स की पहले की डेवलपमेंट के दौरान की एक बड़ी खामी से उबरने में सफलता हासिल कर ली है। नई इंसुलिन बनाने वाली सेल्स ग्लूकोज का सामना होने पर और तेजी से तथा और बेहतर तरीके से रिएक्ट करती हैं। ये कोशिकाएं कुछ इस तरह व्यवहार करती हैं, जैसे किसी ऐसे व्यक्ति में बीटा सेल्स डाली गई हों जिसे शुगर की बीमारी नहीं है।

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स्‍टेम सेल से बीटा सेल्‍स का निर्माण 

पत्रिका 'स्टेम सेल रिपोर्ट्स' में छपे शोध के निष्कर्ष के मुताबिक, टीम ने मनुष्य की स्टेम सेल से बीटा सेल्स का निर्माण किया है, लेकिन उन्होंने इंसुलिन बनाने वाली बीटा सेल्स को बनाने से पहले इसमें काफी बदलाव किए हैं। इस पूरी प्रक्रिया के बाद उन्होंने बीटा सेल्स को एक विशेष क्षमता वाले शुगर रोगी चूहे में डाला और इसके बाद आए नतीजों से वैज्ञानिक काफी उत्साहित हैं।

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चूहों पर प्रयोग रहा है सफल 

इन कोशिकाओं ने चूहे में इंसुलिन का निर्माण इस स्तर पर किया, जिससे चूहों की शुगर कुछ महीनों के लिए खत्म हो गई जो कि इस शोध में शामिल ज्यादातर चूहों का पूरा जीवनकाल था। हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि वह इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि ये कोशिकाएं कब तक मनुष्यों पर प्रयोग करने लायक हो जाएंगी, लेकिन उन्हें भरोसा है कि कम से कम दो ऐसे तरीके हैं, जिनके जरिए मनुष्यों पर इन कोशिकाओं का परीक्षण किया जा सकता है।

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