न्यूट्रोपेनिया एक प्रकार से खून की समस्या है जो शरीर में न्युट्रोफिल की कमी होने के कारण होती है। शरीर में पर्याप्त न्युट्रोफिल से कोई भी शख्स किसी भी तरह के बैक्टीरिया से लड़ने में मददगार होते हैं। इसके बिना हमारा शरीर बैक्टीरिया से लड़ नहीं सकता है। न्यूट्रोपेनिया समस्या होने के कारण कई प्रकार के संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। हमारे शरीर में न्यूट्रोफिल एक सामान्य प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं होती है, जो खासकर संक्रमण से लड़ने के लिए बहुत जरूरी होते हैं। इसकी कमी होने के कारण ही न्यूट्रोपेनिया होता है।
शरीर में न्युट्रोफिल की कमी के कारण ऐसा कहना गलत नही होगा कि न्यूट्रोपेनिया एक ऐसी बीमारी है जो असामान्य रूप से न्यूट्रोफिल की कम संख्या होने के कारण मनुष्य में होती हैं और इसके कारण हम किसी भी इंफेक्शन की चपेट में काफी आसानी से आ जाते हैं। बच्चों में कोशिकाओं की कमी के कारण उन्हें न्यूट्रोपेनिया की शिकायत हो सकती है लेकिन ये उनकी उम्र के साथ-साथ बढ़ने में सक्षम होती है। अपने शरीर में इसकी पहचान कर पाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है, लेकिन अगर आप ध्यान से इसके लक्षणों को देख सकें तो शायद आप इसे पहचान सकते हैं। आइए इस लेख के जरिए आपको न्यूट्रोपेनिया की पूरी जानकारी बताते हैं।
न्यूट्रोपेनिया के कारण क्या है?
- कैंसर के लिए की गई कीमोथेरेपी।
- गंभीर संक्रमण।
- कुछ दवाओं के कारण।
- ऑटोम्यून्यून विकारों के कारण।
- कई चिकित्सीय स्थितियों के कारण।
- अनियमित खानपान।
- पोषक तत्वों की कमी
- वहीं कुछ लोगों में, न्युट्रोपेनिया एंटीबायोटिक्स, ब्लड प्रेशर या मानसिक बीमारियों के लिये ली जाने वाली दवाइयां के प्रयोग के कारण भी हो सकती है।
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लक्षण
- लंबे समय तक बुखार का होना।
- निमोनिया।
- साइनस संक्रमण।
- कान का संक्रमण।
- मसूड़े में सूजन होना।
- मुंह में घाव पैदा होना।
- त्वचा का खराब होना।
- दस्त की समस्या होना।
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उपचार
न्यूट्रोपेनिया का उपचार इसकी स्थिति पर निर्भर करता है। इसकी कई स्थिति होती है कई मामलों में ये आसानी से इलाज के बाद ठीक हो सकती है और कई मामलों में ये काफी गंभीर होती नजर आती है। इसलिए बीमारी की गंभीरता और रूप के आधार पर, डॉक्टर निर्णय लेता है कि न्यूट्रोपेनिया का इलाज कैसे करना चाहिए। इसके इलाज में सबसे ज्यादा जोर इम्यून सिस्टम मजबूत करने पर दिया जाता है। ऐसे में मरीज को एंटीबायोटिक्स, विटामिन, दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं। वहीं, मरीज के शरीर के (सीबीसी) न्युट्रोफिल की गणना की जा सकती है जिसमें आंतरायिक सीबीसी परीक्षण छह सप्ताह तक प्रति सप्ताह तीन बार न्युट्रोफिल गिनती में बदलाव के लिए किया जाता है।
इसलिए न्यूट्रोपेनिया एक ऐसी स्थिति हो जाती है जिसमें शरीर में न्युट्रोफिल के स्तर में कमी होने के कारण सफेद कोशिकाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे कारण आपके शरीर में संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है और आप किसी भी संक्रमण या वायरस की चपेट में बड़ी आसानी से आ जाते हैं। इसके बाद आपको इससे लड़ने में ज्यादा समय भी लग सकता है।
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