
स्तन कैंसर के चलते भारत ही नहीं पश्चिमी देशों में भी बड़ी संख्या में महिलायें अपनी जान गंवाती हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि महिलाओं में इस बीमारी के लक्षणों को लेकर जागरुकता का अभाव होता है। वे इसके खतरे को मानने से ही इनकार कर देती हैं। इसके चलते उनके निदान और इलाज में देरी होती है, जो मौत का एक बड़ा कारण होती है।
एन अर्बर स्थित मिशिगन यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार पांच में से एक महिला ने स्तन कैंसर के खतरे को मानने से इनकार कर दिया।
यूनिवर्सिटी के शोध में महिलाओं से उनके और उनके परिवार के चिकित्सीय इतिहास के बारे में सवाल पूछे गए। शोध की लेखिका एंजला फगेरलिन ने यूनिवर्सिटी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि 'जो महिलायें यह मानती हैं कि उन्हें स्तन कैंसर का कोई खतरा नहीं है उनके लिए खतरा काफी अधिक होता है क्योंकि वे बचाव की अवस्था से आगे निकल सकती हैं। यह वह स्थिति होती है, जब बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। और साथ ही वे महिलायें जो यह सोचती हैं कि उन्हें बीमारी होने का खतरा काफी अधिक है, उनके ऐसे इलाज से गुजरने की आशंका होती है जो चिकित्सीय रूप से इतने उपयोगी न हों। इसके चलते उन्हें दीर्घकालिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
पेशेंट एजुकेशन एंड काउंसलिंग में प्रकाशित इस स्टडी में 690 महिलाओं को शामिल किया गया था। इन महिलाओं की आयु स्तन कैंसर होने की औसत उम्र से अधिक थी। उन्हें इंनटरनेट पर एक प्रश्नावली भरे जाने को कहा गया जिसमें उनसे उनकी उम्र, जातीयता, स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास आदि संबंधित प्रश्न पूछे गए। इसके बाद महिलाओं को आगामी पांच वर्षों में उन्हें स्तन कैंसर होने के संभावित खतरे के प्रति आगाह किया गया। इसके बाद महिलाओं को आगामी पांच बरसों में स्तन कैंसर के लक्षणों को याद करने के लिए कहा गया। अगर उन महिलाओं ने सही जवाब नहीं दिया, तो उनसे पूछा गया कि आखिर वे इन लक्षणों को क्यों भूल गयीं।
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