अकसर मां न बनने का दोष महिलाओं को ही झेलना पड़ता है, लेकिन कई मामलों में पुरुषों के स्पर्म काउंट या उसकी क्वालिटी खराब होना भी कंसीव न करने की वजह बनता है। ऐसे केस में अकसर दंपति नेचुरली कंसीव करने के घरेलू उपाय से लेकर तमाम तरह के नुस्खे अपनाते हैं। लेकिन इस बीच वो ये भूल जाते हैं कि इस तरह के उपायों से उनका समय भी निकल रहा है। जैसे-जैसे महिला और पुरुष की उम्र बढ़ती है, उनके एग और स्पर्म की क्वालिटी भी खराब होती जाती है। इसके साथ बच्चा न होने का मेंटल टेंशन दोनों की फर्टिलिटी को और ज्यादा प्रभावित करता है।
ऐसे में अगर समय पर आईवीएफ तकनीक की मदद ली जाए, तो इसके परिणाम काफी अच्छे रहते हैं। आईवीएफ तकनीक में पत्नी के अंडे और पति के स्पर्म को लैब में निषेचित किया जाता है। इसके बाद एम्ब्रयो को महिला के गर्भाश्य में रखा जाता है। इसके बाद महिला के गर्भवती होने से लेकर डिलिवरी तक की प्रक्रिया वही रहती है, जो नेचुरली कंसीव महिला की होती है। आज 25 जुलाई के दिन वर्ल्ड आईवीएफ डे (World IVF Day) के मौके पर हम ऐसी ही सच्ची कहानी लेकर आएं हैं, जिसमें दोनों पति-पत्नी (अर्पिता और दिनेश कोठारी) के एग और स्पर्म में समस्या थी लेकिन नोएडा के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ होस्पिटल्स के फर्टिलटी विभाग की डायरेक्टर डॉ. पारूल अग्रवाल ने आईवीएफ की मदद से दोनों की जिंदगी में एक प्यारे से बच्चे की एंट्री करवा दी।
अर्पिता-दिनेश की परेशानी
अर्पिता और दिनेश की शादी के बाद बच्चे की चाहत में कई सालों तक नेचुरली कंसीव करने की कोशिश करते रहे लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लग रही थी। इस समय को याद करते हुए अर्पिता कहती है कि दोनों कई स्त्रीरोग विशेषज्ञों से मिले लेकिन सभी ने यही आश्वासन दिया कि आप कंसीव कर लेंगे क्योंकि जांच करने पर कोई समस्या नहीं आ रही थी। जब भी वह अपने कलीग या आसपास लोगों के बच्चों को देखती थी, तो उनके मन में बच्चे की चाहत बढ़ती जा रही थी। हालांकि उन्हें इस बात का भी पूरा यकीन था कि वह एक न एक दिन मां जरूर बनेंगी। इसी पॉजिटिव सोच के साथ वह लगातार प्रयास कर रहे थे।
अर्पिता कहती है कि इस दौरान सबसे अच्छी बात ये थी कि उन्हें अपने पति और परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा था। बच्चे के लिए वह रोज प्रार्थना करती थी और शायद ये उनकी प्रार्थना का ही असर था कि उन्हें आईवीएफ की एक राह मिली।
एग्स और स्पर्म क्वालिटी में थी दिक्कत
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जा रही थी, अर्पिता और दिनेश के एग्स और स्पर्म क्वालिटी भी प्रभावित हो रही थी। अगर एग्स की क्वालिटी खराब हो तो निषेचन और सेहतमंद भ्रूण बनने में दिक्कत आती है। इसी तरह से अगर पुरुष के स्पर्म क्वालिटी में भी दिक्कत हो, तो महिला के एग्स के साथ निषेचन करना मुश्किल हो जाता है। एग्स और स्पर्म की क्वालिटी में खराबी आने की वजह उम्र, जेनेटिक समस्याएं या फिर जीवनशैली और पर्यावरण हो सकती है। इस केस में अर्पिता और दिनेश दोनों ही समस्या थी, जिसके चलते उन्हें कंसीव करना मुश्किल हो रहा था। ऐसे कपल्स के लिए आईवीएफ तकनीक काफी कारगर रहती है। कई सालों तक कंसीव न कर पाने के बाद अर्पिता और दिनेश ने भी आईवीएफ की मदद लेने की सोची।
आईवीएफ की ली मदद
अर्पिता और दिनेश नोएडा के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ होस्पिटल्स के फर्टिलटी विभाग की डायरेक्टर डॉ. पारूल अग्रवाल से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई। अर्पिता बताती है कि डॉ. पारुल ने हमें आईवीएफ से जुड़े हर पहलू की जानकारी दी और हमारे सभी सवालों के जवाब शांति से समझाएं। हमें तो बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि ये तकनीक हमारे लिए वरदान साबित होगी।
इस केस के बारे में बात करते हुए डॉ. पारुल ने कहा कि मैंने उन्हें असल अपेक्षाएं रखने की ही हिदायत दी। लेकिन साथ ही साथ उनकी घबराहट और चिंता को देखते हुए वातावरण को काफी हल्का और चिंतामुक्त रखने की पूरी कोशिश की। उन्हें आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान बस यही समझाया कि उम्मीद रखें और स्ट्रेस बिल्कुल न लें।
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क्या कहती है डॉ.पारुल?
डॉ. पारुल कहती है, “अर्पिता के मामले में सबसे अच्छी बात ये रही कि पहले ही एम्ब्रयो ट्रांसफर से कंसीव हो गई। उन्होंने हमारे सभी निर्देशों और बातों को अच्छे से फॉलो किया और हम पर विश्वास बनाए रखा। इसका परिणाम ये निकला कि उन्होंने एक सेहतमंद बच्चे को डिलीवर किया। इसलिए मैं हमेशा कहती हूं कि सही समय पर आईवीएफ इलाज कराना बहुत महत्वपूर्ण है।”
घर आई खुशी
आखिरकार 9 महीने की मेहनत और विश्वास रंग लाया। अर्पिता और दिनेश को जब उनका बच्चा हाथ में मिला, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जिसका इंतजार वे दोनों पिछले 8 साल से कर रहे थे, वो नन्ही सी जान उनके हाथ में थी। अर्पिता कहती है कि उन्हें कुछ पल के लिए तो यकीन ही नहीं हुआ कि वह मां बन गई है। वह अब वह सब सपने पूरे करना चाहती है, जो उन्होंने पिछले आठ साल से देखे थे।