‘अपने घुटने के दर्द को शुरुआत में ही नजरअंदाज न करती तो आज कैंसर की पेशेंट न कहलाती।’ यह कहना है उत्तर प्रदेश के अमेठी की रहने वाली अर्चना शुक्ला का। हड्डी के कैंसर से जंग जीतने वाली अर्चना शुक्ला ने ओन्ली माई हेल्थ से अपने रिकवर होने की कहानी बयां की। वे बताती हैं कि कैंसर के शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है। हम लड़कियों की आदत होती है अपने हल्के-फुल्क दर्द को नजरअंदाज करने की। मैंने भी यही किया।
अर्चना बताती हैं कि उन्हें करीब 2014 से घुटने में हल्का दर्द और सूजन शुरू हुई थी, पर वे उसे 1 साल तक नजरअंदाज करती रहीं, यह सोचकर कि यह किसी चोट का दर्द होगा। लेकिन जब 2015 आते-आते उनके घुटने में एक गांठ बन गई तब वे चिंतिंत हुईं और अस्पताल गईं। वहां डॉक्टरों ने एमआरआई किया तो पता चला कि 10 एमएम का ट्यूमर है। बाद में बायोप्सी हुई तो पता चला कि बोन कैंसर है।
क्या है बोन कैंसर?
बोन कैंसर यानी हड्डी के कैंसर को मेडिकल की भाषा में ऑस्टियोसार्कोमा (osteosarcoma) कहा जाता है। यह एक दुर्लभ कैंसर है। यह हड्डियों में होने वाला कैंसर है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलोजी इन्फोर्मेशन पर प्रकाशित एक शोध के मुताबिक बोन सार्कोमा (Bone sarcomas) दुर्लभ ट्युमर होते हैं। यह सभी कैंसर का लगभग 0.2 फीसद होते हैं। बोन कैंसर में कॉन्ड्रोसार्कोमा, इविंग सार्कोमा सबसे आम कैंसर हैं।
धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और नारायणा सुपरस्पेशलिस्टी हॉस्पटल, गुरुग्राम में ऑर्थोपेडिक ऑन्कोलोजी सार्कोमा स्पेशलिस्ट ( Orthopedic Oncology Sarcoma Specialist) डॉ. लोकेश गर्ग का कहना है कि शरीर में जब कोई कोशिका असामान्य तरीके से बढ़ती रहती हैं तब उसे कैंसर कहा जाता है। यह कोशिकाएं (Cells) स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित करती हैं। ग्रो होने के लिए उसको न्यूट्रीशन चाहिए होता है तो न्यूट्रीशन अपने नॉर्मल सेल से लेता रहता है। जिस वजह से बाकी बॉडी पार्ट्स पतले होने लगते हैं। लेकिन ट्यूमर बढ़ता रहता है। धीरे-धीरे ट्यूमर शरीर के दूसरे सैल में फैलने लग जाते हैं। दूसरे ऑर्गन को भी प्रभावित करने लगते हैं।। यह हड्डी, लिवर,आदि में पहुंचता है। बोन कैंसर बोन में होता है। इसका प्रमुख कारण जैनेटिक होता है। बाकी बोन के अंदर इसका कोई अन्य कारण अभी तक नहीं मिला है। ऑस्टियो सार्कोमा कैंसर आमतौर पर घुटनों के आसपास होता है। इसके अलावा यह कंधे और जांघ की हड्डियों पर भी हो सकता है।
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18 साल की उम्र में हुआ कैंसर : अर्चना शुक्ला
अर्चना कहती हैं कि जब मुझे कैंसर हुआ था तब मेरी उम्र 18 साल थी। इतनी कम उम्र में कैंसर हो जाना हम सब के ऊपर पहाड़ गिरने जैसा था। मेरे ग्रेजुएशन का फर्स्ट ईयर था। मैं घर में अकेली लड़की हूं, इसलिए सब और ज्यादा घबराए हुए थे। अर्चना का कहना है कि वे समझ गई थीं, इतनी बड़ी बीमारी है तो बिना विल पावर के तो इससे नहीं लड़ा जा सकता। हिम्मत बांधकर उन्होंने 1 साल तक इलाज करवाया। इसके बाद दवाएं चलीं। उनका ऑपरेशन टाटा अस्पताल, मुंबई में और मुंबई के ही अश्वनी अस्पताल से कीमोथैरेपी हुई। वे कहती हैं कि उनके पिता जी डिफेंस से रिटार्यड हैं,इसलिए उन्हें अच्छा इलाज मिल गया, लेकिन ऐसी कितनी लड़कियां हैं, जिन्हें इलाज तक नसीब नहीं होता।
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इस कैंसर की पहचान कैसे होती है?
इस सवाल के जवाब में डॉ. लोकेश गर्ग ने बताया कि यह कैंसर शुरुआत में किसी एक बोन से होता है। उस बोन में दर्द, फिर गांठ दिखेगी। वो हड्डी कमजोर हो जाती है। हो सकता है कि मरीज को वजन डालने पर दर्द होता हो। कुछ अन्य लक्षणों में बुखार, भूख कम होना, वजन कम होना आदि भी देखे जाते हैं। हड्डी में अचानक दर्द होना भी बोन कैंसर का संकेत है। गांठ बनना, अचानक हड्डी टूट जाना आदि परेशानियां मरीज को देखने को मिलती हैं। यह कैंसर ज्यादातर 5-35 साल तक के लोगों में होता है।
क्या है इलाज?
24 साल की अर्चना बताती हैं कि उन्हें 1 साल तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अर्चना को जब कैंसर डिटैक्ट हुआ तब उनकी उम्र कम थी, इसलिए कीमोथैरेपी का डोज बहुत हाई दिया जा रहा था। अर्चना बताती हैं कि मेरी उम्र और वजन के अनुसार मुझे कीमोथैरेपी दी जा रही थी ताकि यह कैंसर वापस न आए। मेरा टोटल नी रिप्लेसमेंट हुआ है।
अर्चना कहती हैं कि जब आप पर कोई ऐसी बड़ी बीमारी आती है तब आपके अपने लोग भी साथ नहीं देते। बस आपकी मां और आपका परिवार साथ रहता है। अर्चना कहती हैं कि कीमोथैरेपी के बाद भी उन्हें दर्द व अन्य कई परेशानियां होती हैं, उन्हें देखकर घर वाले परेशान हो जाते थे। मां रोने लग जाती थीं। ऐसे वक्त में हमारे जीजा जी ने हमारा साथ दिया।
डॉ. लोकेश का कहना है कि बोन कैंसर के टाइप के अनुसार इलाज किया जाा है। इविंग और ऑस्टियो सार्कोमा, कॉन्ड्रो सार्कोमा में सर्जरी की जाती है। कॉन्ड्रो सार्कोमा में आमतौर पर सर्जरी होती है।
डॉक्टर का कहना है कि कैंसर के इलाज में समय बहुत मायने रखता है। एक डॉक्टर जो मरीज का इलाज करता है उसे यह मालूम होना चाहिए कि कब मरीज को कीमो देना है और कब सर्जरी करनी है। कब सर्जरी के बाद कीमो थेरैपी शुरू हो जानी चाहिए। कीमोथैरेपी की सही डोज देना जरूरी है।
हड्डी के कैंसर में सर्जरी बहुत मायने रखती है। इसमें मरीज से बचने की संभावना ज्यादा होती है। बोन कैंसर के सैल्स शरीर में फैल जाते हैं। उन्हें ठीक करने में कीमोथैरी की जीता है। सर्जरी और कीमोथैरेपी दोनों ही उपाय हैं, इससे बचने के।
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इलाज के बाद भी लोगों की नजर में मैं बीमार हूं : अर्चना
अर्चना का कहना है कि मैं कैंसर से ठीक हो गई हूं, लेकिन समाज ने कैंसर को छूआछूत की बीमारी बना रखा है। मैं घर आई तो रिश्तेदारों को डर था कि कहीं मेरे साथ खाना खाने से उन्हें भी कैंसर न हो जाए। अर्चना कहती हैं कि ऐसी कंडीशन में मैंने शादी का प्लान बदल दिया है। शादी करने का मेरा कोई प्लान नहीं है। अर्चना बताती हैं कि शादी के लिए जब रिश्ते आते हैं कि कैंसर से ठीक हुई लड़की से शादी करना ठीक नहीं। वे कहती हैं कि एक लड़की में कोई दिक्कत न हो तब भी लोग शादी के लिए तमाम गलतियां लड़की में निकालते हैं और मुझे तो कैंसर हुआ था। अर्चना कहती हैं कि अगर आपने सही समय पर लक्षणों को पहचान लिया तो कैंसर से बचा जा सकता है। साथ ही आप में विल पावर होना जरूरी है, तभी आप कैंसर से बच सकते हैं।
कैंसर एक ऐसी गंभीर बीमारी है कि जिस घर में हो जाए उस घर की सारी खुशियों पर ग्रहण लग जाता है। लेकिन अर्चना ने विल पावर से खुद को कभी हारने नहीं दिया और कैंसर को मात दे दी। इसी तरह आप भी कैंसर को मात दे सकते हैं।
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