Third Trimester Screening Tests : प्रेगनेंसी का एहसास हर महिला के लिए खास होता है। इस समय महिला एक तरह के लक्षणों को महसूस करती हैं। साथ ही इस समय महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव तेजी से होते हैं। ऐसे में महिलाओं को कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ता है। प्रेगनेंसी के हर माह में महिला को खुद का और बच्चे का पूरा ध्यान रखना होता है। ऐसे में उन्हें डॉक्टर कुछ टेस्ट करने की सलाह देते हैं। प्रेगनेंसी के दौरान किये जाने वाले टेस्ट को अवश्य कराना चाहिए। क्योंकि इससे महिला को गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास के साथ ही उसे होने वाले अन्य रोगों के संभावित लक्षणों को भी पता लग जाता है। ऐसे में इलाज कराना आसान होता है। इस समय होने वाली जांच व टेस्ट से बच्चे को जन्म के समय होने वाली समस्याओं से भी बचाया जा सकता है। आगे जानते हैं प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को क्या टेस्ट कराने चाहिए?
तीसरी तिमाही में किये जाने वाले टेस्ट - Third Trimester Screening
तीसरी तिमाही में गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास को जानने के लिए कुछ टेस्ट किये जाते हैं। इसमें स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रेगनेंट महिला के रक्त व पेशाब की जांच करती हैं। इस जांच से वह आगे बताई गई चीजों पर गौर करती हैं।
- गर्भवती महिला के शरीर में खून की कमी,
- प्रेगनेंट महिला के रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या,
- साथ ही महिला के रक्त का आरएच कारक। यदि महिला के रक्त में आरएच फैक्टर निगेटिव और उसके पति का पॉजिटिव हो, तो ऐसे एंटीबॉडी बनने की संभावना बढ़ जाती है जिससे बच्चे को खतरा हो सकता है।
- हेपेटाइटिस बी और एचआईवी का पता लगाना,
- जर्मन खसरा (रूबेला) और चिकनपॉक्स (वैरीसेला) के प्रति प्रतिरोधकता,
- इस जांच में गर्भावधि मधुमेह और प्रीक्लेम्पसिया (खतरनाक रूप से उच्च रक्तचाप) जैसी स्थितियों की पहचान की जाती है।
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ब्लड टेस्ट के अलावा तीसरी तिमाही में कौन से टेस्ट किये जाते हैं
महिलाओं को उम्र, सेहत, व पारिवारिक चिकित्सिय समस्याओं के आधार पर डॉक्टर आपको अन्य टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। जिनमें आगे बताए गए टेस्ट को शामिल किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और दर्द रहित परीक्षण होता है। इसमें तरंगों के द्वारा बच्चे के आकार और गर्भाशय की स्थिति की दर्शाया जाता है। तीसरी तिमाही के अल्ट्रासाउंड में प्लेसेंटा की जांच की जाती है, और कभी-कभी बायोफिजिकल प्रोफाइल (बीपीपी) भी कराया जाता है, इससे बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल पाने की स्थिति की जांच की जाती है। अधिक जोखिम वाली महिलाओं के तीसरी तिमाही में कई अल्ट्रासाउंड हो सकते हैं।
ग्लूकोज स्क्रीनिंग
यह टेस्ट गर्भावस्था में मधुमेह की जांच करता है। मधुमेह का एक अल्पकालिक रूप जो गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाओं को होता है और बच्चे के लिए स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। खासकर अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है।
ग्रुप बी स्ट्रेप टेस्ट
गर्भावस्था के 35वें और 37वें सप्ताह के बीच, डॉक्टर महिला को ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (जीबीएस) संक्रमण के लिए जांच करते हैं। जीबीएस बैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से कई महिलाओं की योनि में पाए जाते हैं, लेकिन ये नवजात शिशुओं में गंभीर संक्रमण पैदा कर सकते हैं। इस परीक्षण में योनि और मलाशय की सफाई शामिल है। यदि महिला का टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो उसे लेबर पेन शुरू होते ही अस्पताल जाना चाहिए ताकि बच्चे को संक्रमित होने से बचाने में मदद करने के लिए इंटराविनस (नसों से दी जाने वाली दवा) एंटीबायोटिक्स शुरू की जा सकें।
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नॉनस्ट्रेस टेस्ट
एक नॉनस्ट्रेस टेस्ट (एनएसटी) आमतौर पर तब किया जाता है जब महिला हेल्थ केयर प्रोवाइडर के साथ डॉक्टर के पास जांच के लिए आती है। इसमें जांच की जाती है कि बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं।
कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट
यह परीक्षण भ्रूण की हृदय गति पर संकुचन (कॉन्ट्रैक्शन) के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। इसमें पिटोसिन व ऑक्सीटोसिन के सिंथेटिक रूप को साथ में प्रयोग किया जाता है। टेस्ट में किसी तरह की समस्या का संकेत महसूस होने पर बच्चे की हृदय गति की जांच के लिए ये टेस्ट किया जाता है।
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