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आयुर्वेद के अनुसार प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही है वात का काल, इन 5 बातों का रखें ध्यान

आयुर्वेदिक डॉक्टर और महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा का कहना है कि प्रेग्नेंसी की तीसरी वात का काल होती है। इस समय गर्भवती महिला को विशेष देखभाल और संतुलन की आवश्यकता होती है।
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आयुर्वेद के अनुसार प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही है वात का काल, इन 5 बातों का रखें ध्यान

आयुर्वेद में प्रेग्नेंसी को महिला के लिए नाजुक दौर बताया गया है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं जो कुछ भी खाती हैं, करती हैं और अंदर से महसूस करती हैं, उसका सीधा असर गर्भ में पलने वाले शिशु पर पड़ता है। आयुर्वेद में प्रेग्नेंसी के नौ महीने तीन मुख्य दोषों कफ, पित्त और वात के प्रभाव में बांटा गया है। दिल्ली के राजौरी गार्डन स्थित अपने क्लीनिक पर प्रैक्टिस कर रहीं आयुर्वेदिक डॉक्टर और महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा का कहना है कि प्रेग्नेंसी की तीसरी वात का काल होती है।

इस समय गर्भवती महिला को विशेष देखभाल और संतुलन की आवश्यकता होती है। यदि इस समय वात दोष असंतुलित हो जाए, तो यह गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। आज इस लेख में हम इसी विषय पर बात करने वाले हैं।

1. हल्का और आसानी से पचने वाला खाना खाएं

डॉ. चंचल शर्मा का कहना है कि, प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में पाचन अग्नि कमजोर हो सकती है और यह वात दोष को प्रभावित कर सकती है। इस दौरान मां और शिशु दोनों स्वस्थ रहे, इसके लिए महिलाओं को हल्का और आसानी से पचने वाला खाना खाने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को खिचड़ी, मूंग दाल, सूप, घी लगी हुई रोटी खानी चाहिए और तली-भुनी चीजें, मसालेदार भोजन से दूरी बनानी चाहिए।

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2. पर्याप्त नींद लें

गर्भस्थ शिशु के विकास के कारण प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में अक्सर महिलाओं को शरीर भारी महसूस होता है और थकान भी बढ़ जाती है। ऐसे में गर्भवती महिला को पर्याप्त नींद और आराम करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए बाईं करवट होकर ही सोएं। सोने से पहले पैरों की हल्की मालिश करें। पैरों की मालिश करने से शरीर की थकान दूर होती है और नींद में आने वाली परेशानियां दूर रहती हैं।

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3. तनाव से बचें

वात दोष को संतुलित रखने के लिए मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना अहम होता है। तनाव से बचने के लिए नियमित रूप से प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट का कहना है कि प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम करें। अपने आसपास के माहौल को भी सकारात्मक बनाए रखें।

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4. मालिश करें

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में वात दोष को संतुलित करने के लिए तेल मालिश को आयुर्वेद में बहुत फायदेमंद माना गया है। इस दौरान प्रेग्नेंट महिलाएं नियमित रूप से तिल के तेल या नारियल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करें। मालिश करने से शरीर की त्वचा की नमी बनी रहती है और वात दोष को कम करने में मदद मिलती है।

5. हल्का व्यायाम और योग करें

तीसरी तिमाही में हल्का व्यायाम और योग करने से डिलीवरी की प्रक्रिया आसान होती है। डॉ. चंचल शर्मा का कहना है कि प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को तितली आसान, चाइल्ड पोज और कैट-काऊ पोज जैसे योगासन करने चाहिए। इन योगासनों को करने से यूट्रस का मुंह खोलने में आसानी होती है, जिससे नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ती है।

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निष्कर्ष

आयुर्वेद के इन सुझावों का पालन करने से प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही को स्वस्थ्य बनाया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि प्रेग्नेंसी कि तीसरी तिमाही में महिलाओं को किसी भी प्रकार की जड़ी-बूटी का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

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