
शहरी मध्यम वर्ग में हाईपरटेंशन की व्यापकता पुरुषों में लगभग 32 प्रतिशत और महिलाओं में 30 प्रतिशत तक है। डॉक्टरों का कहना है कि 40 वर्ष की उम्र के बाद यह बीमारी बढ़ती है। जानकार मानते हैं कि शहरों में 15 साल तक के 3 से 6 प्रतिशत बच्चों हाईपरटेंशन की चपेट में हैं और इनकी तादात में लगातार इजाफा होता जा रहा है। तेजी से बढ़ रही इस बीमारी की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए शहरी मध्यम वर्ग में हाईपरटेंशन की व्यापकता पर हमने एक्सपर्ट की राय और कुछ अन्य पहलुओं पर बात की। तो चलिए इस पर एक सरसरी निगाह डालते हैं।
हाईपरटेंशन और एक्सपर्ट की राय
हाईपरटेंशन आमतौर पर निवारणीय समस्या है और इसका स्वास्थ्यप्रद आहार, नियमित क्रियाशीलता, व्यायाम, धुम्रपान एवं अत्याधिक मद्य को बंद कर आसनी से निवारण किया जा सकता है। इसकी व्यापकता और निवारण के बरे में मुंबई एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के डॉ. संतोष कुमार डोरा, कंसल्टैट कार्डियोलॉजी बता रहे हैं।
हाईपरटेंशन को 140 मिमी एचजी से अधिक या बराबर के सिस्टोलिक रक्तचाप और 90 मिमी एचजी से अधिक या बराबर के डायस्टोलिक रक्तचाप के रूप में परिभाषित किया गया हैं। प्री हाईपरटेंशन, हाईपरटेंशन से पहले की अवस्था कहा जाता है, और इसे 120 से 139 मिमी एचजी के बीच सिस्टोलिक रक्तचाप और 80 से 89 मिमी एचजी के बीच डायस्टोलिक रक्तचाप के रूप में परिभाषित किया जाता है।

भारत में हाईपरटेंशन कुछ सालों में तेजी से बढ़ रहा है। 1960 में हाईपरटेंशन की मौजूदगी 5 प्रतिशत और 1990 में लगभग 12 से 15 प्रतिशत थी। जबकी सन 2000 के बाद के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में हाईपरटेंशन की व्यापकता 25 प्रतिशत और ग्रामीण भारत में लगभग 10 प्रतिशत हो गई। वर्तमान रिपोर्ट दर्शाती है कि शहरी मध्यम वर्ग में हाईपरटेंशन की व्यापकता पुरुषों में 40 प्रतिशत और महिलाओं में 30 प्रतिशत है। ये आंकड़े बताते हैं कि केवल 30 से 40 प्रतिशत व्यस्क लोगों का ही रक्तचाप सामान्य है, जो कि सिस्टोलिक रक्तचाप के लिए 120 मिमी एचजी से कम और डायस्टोलिक रक्तचाप के लिए 80 मिमी एचजी से कम हैं।
निश्चित कारण न होने पर सिस्टेमिक हाईपरटेंशन प्राइमरी तथा निश्चित कारण होने पर सेकंडरी हो सकता है। इसका उपचार कर वापस रक्तचाप सामान्य हो सकता है। 95 प्रतिशत मामलों में हायपरटेंशन प्राइमरी ही होता है। आयु बढना और आनुवंशिक कारण आदि हाईपरटेंशन के कुछ ऐसे कारण हैं जिनको बदलना मुश्किल होता है। कुछ अन्य कारण जैसे धुम्रपान, मोटापा, शारीरिक सक्रियता की कमी, तनाव, अधिक नशा आदि इसके जिम्मेदार होते हैं।
हाई बीपी यानी कि हाईपरटेंशन की समस्या से हार्ट, किडनी, ब्रेन और आंखें सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। गौरतलब है कि स्ट्रोक से हुई मृत्युों में 57 प्रतिशत मामले हाई बीपी के होते हैं।

हाईपरटेंशन से जुड़ी अन्य जरूरी बातें
डॉक्टर बताते हैं कि प्री-हाईपरटेंशन के मरीज भी ज्यादा हैं। अस्पतालों में 30 से 35 साल की उम्र में प्री-हाईपरटेंशन के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं। 30 से 40 साल की उम्र के महिलाओं व पुरुषों में बड़ी संख्या में यह बीमारी देखी जा रही है। जो पहले 50 के बाद पुरुषों और 40 के बाद महिलाओं में देखी जाती थी।
जीवनशैली में हो रहे तेज बदलाव के कारण लोग हाईपरटेंशन के शिकार हो रहे हैं। हाईपरटेंशन से शरीर में अन्य बीमारियां भी घर करती हैं। वहीं डायबीटीज के मरीज, अधिक शराब पीने से, तनाव में रहने आदि कारणों से भी लोग इस बीमारी का जल्दी शिकार बन जाते हैं। फास्ट फूड का अधिक सेवन व मोटापा बढ़ने के कारण भी लोग हाईपरटेंशन के शिकार हो सकते हैं। इस बीमारी से बचने के लिए जीवनशैली को नियमित बनाएं और चिंता से मुक्त रहें।
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