
माइकल स्किनर, वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रजनन जीवविज्ञानी और एक अंतरराष्ट्रीय टीम के सहयोगियों ने खोजा कि बांझ पुरुषों में उनके शुक्राणु डीएनए से जुड़े एपिजेनेटिक अणु या बायोमार्कर के पहचानने योग्य पैटर्न हैं, जो प्रजननक्षम यानि फर्टिलिटी वाले पुरुषों में मौजूद नहीं हैं।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बांझपन यानि इंफर्टिलिटी से जूझ रहे पुरूषों के बीच एपिजेनेटिक बायोमार्कर की पहचान की। इसके अलावा जिन्होंने हार्मोन थेरेपी ली और जिन्होंने नहीं ली उनके बीच तुलना की गई। इस शोध से डॉक्टरों को बांझपन के लिए पुरुषों की जांच करने का एक विश्वसनीय तरीका प्रदान कर सकता है और यह पता लगा सकता है कि उनके रोगियों के लिए कौन सा उपचार का विकल्प सबसे अच्छा काम करेगा। इससे कई लोगों को मदद मिल सकती है, जहां आदमी स्वाभाविक रूप से बच्चे पैदा करने में असमर्थ है।
वर्तमान में, पुरुष बांझपन के इलाज के लिए प्राथमिक विधि शुक्राणु की मात्रा और गतिशीलता का आंकलन करना है, जो ऐतिहासिक रूप से बांझ पुरुषों से प्रजजनक्षम करने वाली सीमित सफलता रही है।
इसे भी पढें: अब आपकी सेहत पर नजर और स्वास्थ्य को बेहतर बनाएगा ये 'स्मार्ट टॉयलेट', कई बीमारियों का लग जाएगा पता
स्किनर और उनके सहयोगियों का यह नया नैदानिक दृष्टिकोण का अध्ययन, नेचर सांइटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ। जिसमें स्किनर ने कहा, "पुरुष बांझपन दुनिया भर में बढ़ रहा है और प्रजनन स्वास्थ्य की बीमारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।"
लगभग 20 प्रतिशत पुरुषों को बच्चे पैदा करने के लिए इनविट्रो फर्टिलाइजेशन की आवश्यकता होती है, जहां इंफर्टिलिटी की समस्या होती है, जहां इसका कारण अज्ञात है। इन पुरुषों को आमतौर पर आईवीएफ के लिए सलाह दिए जाने से पहले एक साल या उससे अधिक समय के लिए अपने साथी के साथ बच्चा पैदा करने की कोशिश करने के लिए एक नियम और परहेज पर रखा जाता है। (स्पर्म की संख्या बढ़ाने के लिए पुरुषों को खाने चाहिए ये 5 फूड्स, बढ़ती है फर्टिलिटी)
स्किनर और उनके सहयोगी यह देखना चाहते थे कि अनिश्चितता के इस दौर से छुटकारा पाने के लिए क्या वे निदान लेकर आ सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों को पिछले शोध से पता था कि शुक्राणु डीएनए से जुड़े मिथाइल अणुओं के समूहों में पुरुष बांझपन और परिवर्तन के बीच एक संभावित लिंक था जो कुछ जीनों को कैसे नियंत्रित करता है।
इसे भी पढें: बच्चों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है जलवायु परिवर्तन, लैंसेंट की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
उन्होंने यह देखने के लिए उन्नत आणविक विश्लेषण तकनीकों का इस्तेमाल किया कि क्या वे प्रजनन और बांझ दोनों के शुक्राणु डीएनए से जुड़े मिथाइल समूहों में इन परिवर्तनों, या बायोमार्करों की मज़बूती से पहचान कर सकते हैं। जो एक शोध अध्ययन में भाग लेने के लिए सहमत हुए। उन्होंने पाया कि अध्ययन में सभी बांझ पुरुषों के पास एक विशिष्ट बायोमार्कर था जो प्रजजन में सक्षम पुरुषों ने नहीं था।
इस तरह वैज्ञानिकों ने बांझपन की समस्या से परेशान पुरूषों के बीच एक और बायोमार्कर की पहचान की, जिसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि हार्मोन थेरेपी उपचार का उन पर कोई प्रभाव पड़ रहा है या नहीं।
Read More Article On Health News In Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version