बच्चों की नींद संबंधी विकार उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है

स्लीप डिसॉर्डर से पिड़ित चार साल उम्र वाले बच्चों को मानसिक समस्याओं होने की अधिक आशंका होती है। एक नए शोध में बच्चों में सोने की समस्याओं और मनोरोगों के बीच एक स्पष्ट संबंध का खुलासा हुआ है।
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बच्चों की नींद संबंधी विकार उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है

एक नए शोध में बच्चों में सोने की समस्याओं और मनोरोगों के बीच एक स्पष्ट संबंध का खुलासा हुआ है। शोध से पता चला कि छोटे बच्चों में नींद से जुड़ी समस्याओं के गंभीर और लंबी अवधि तक होने वाले परिणाम हो सकते हैं।


नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर व साइकोलोजिस्ट सिल्जे स्टेंस्बेक के अनुसार, शोध में पाया गया कि जो बच्चे स्लीप डिसॉर्डर से पीड़ित हैं उनकी पहचान होनी चाहिये, ताकि सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें। गलत तरीके से या बहुत कम सोने वाले बच्चों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज प्रभावित होते हैं। लेकिन शोध से पता चलता है कि इसके दीर्घकालिक नतीजे भी होते हैं।

 

Sleep Disorder of Child in Hindi

 

नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने शोध में भाग लेने वाले बच्चों के माता-पिता के साथ नैदानिक साक्षात्कार कर उसका गहन अध्ययन भी किया। यह साक्षात्कार DSM-IV डायग्नोस्टिक मेनुअल पर आधारित था, जोकि मानसिक विकारों के लिए सरकारी नैदानिक मानदंड होते हैं।


1000 से अधिक चार साल की आयु वाले बच्चों ने इस अध्ययन में भाग लिया तथा इन बच्चों के लगभग 800 माता-पिता का दो साल बाद फिर से साक्षात्कार किया गया। दरअसल वे बच्चे जिनमें चिंता या व्यवहार विकार के लक्षण दिखाई देते हैं, वे आसानी से एक मानसिक समस्याओं के साइकिल में प्रवेश कर करते हैं, जहां वयस्कों के साथ संघर्ष चिंता को ट्रिगर करता है और फिर सोने में लगातर परेशानी होने लगती है।

 

Sleep Disorder of Child in Hindi

 

आज बहुत सारे बच्चे अनिद्रा से पीड़ित हैं और यह एक चिंताजनक बात है। ऐसे में जरूरत है कि इस तरह के बच्चों की पूरी तरह से पहचान हो और अच्छा इलाज उपलब्ध कराया जाए। विशेषज्ञ बताते हैं, जैसा कि मनोवैज्ञानिक लक्षणों के विकास से अनिद्रा का खतरा बढ़ता है, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का जल्दी इलाज से भी नींद से जुड़ी समस्याओं के विकास को रोका जा सकता है।



Read More Article On Mental Health In Hindi.

एक नए शोध में बच्चों में सोने की समस्याओं और मनोरोगों के बीच एक स्पष्ट संबंध का खुलासा हुआ है। शोध से पता चला कि छोटे बच्चों में नींद से

जुड़ी समस्याओं के गंभीर और लंबी अवधि तक होने वाले परिणाम हो सकते हैं।


नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर व साइकोलोजिस्ट सिल्जे स्टेंस्बेक के अनुसार, शोध में पाया गया कि जो बच्चे

स्लीप डिसॉर्डर से पीड़ित हैं उनकी पहचान होनी चाहिये, ताकि सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें। गलत तरीके से या बहुत कम सोने वाले बच्चों के

दिन-प्रतिदिन के कामकाज प्रभावित होते हैं। लेकिन शोध से पता चलता है कि इसके दीर्घकालिक नतीजे भी होते हैं।


नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने शोध में भाग लेने वाले बच्चों के माता-पिता के साथ नैदानिक साक्षात्कार कर उसका

गहन अध्ययन भी किया। यह साक्षात्कार DSM-IV डायग्नोस्टिक मेनुअल पर आधारित था, जोकि मानसिक विकारों के लिए सरकारी नैदानिक मानदंड

होते हैं।


1000 से अधिक चार साल की आयु वाले बच्चों ने इस अध्ययन में भाग लिया तथा इन बच्चों के लगभग 800 माता-पिता का दो साल बाद फिर से

साक्षात्कार किया गया। दरअसल वे बच्चे जिनमें चिंता या व्यवहार विकार के लक्षण दिखाई देते हैं, वे आसानी से एक मानसिक समस्याओं के साइकिल में

प्रवेश कर करते हैं, जहां वयस्कों के साथ संघर्ष चिंता को ट्रिगर करता है और फिर सोने में लगातर परेशानी होने लगती है।


आज बहुत सारे बच्चे अनिद्रा से पीड़ित हैं और यह एक चिंताजनक बात है। ऐसे में जरूरत है कि इस तरह के बच्चों की पूरी तरह से पहचान हो और

अच्छा इलाज उपलब्ध कराया जाए। विशेषज्ञ बताते हैं, जैसा कि मनोवैज्ञानिक लक्षणों के विकास से अनिद्रा का खतरा बढ़ता है, मानसिक स्वास्थ्य

समस्याओं का जल्दी इलाज से भी नींद से जुड़ी समस्याओं के विकास को रोका जा सकता है।



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