सांस की तकलीफों को दूर करने के लिए गाना काफी मददगार साबित हो सकता है। बिटेन में इस पर काम भी हो रहा है, और डॉक्टरों को उम्मीद है कि इससे रोगियों को काफी फायदा पहुंच सकता है।
लंदन के रॉयल ब्रॉम्पटन हॉस्पिटल ने अपने शोध में पाया कि गाने गाते समय जिस प्रकार से सांस ली जाती है, वह फेफड़ों के मरीजों के लिए भी मददगार होती है। इस साप्ताहिक ग्रुप का नेतृत्व विशेषज्ञ संगीतकार करते हैं और इससे अस्थमा, एम्फीसेमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रकटिव पलमोनेरी डिस्ऑर्डर (सीओपीडी) अथवा सीओपीडी जैसी सांस की बीमारियों से पीडि़त रोगियों की सहायता की जाती है।
जानकारों का तर्क है कि कई लोगों को गाना पसंद होता है। और इसी से उन्हें लोगों में सांस संबंधित बीमारियों के इलाज का विचार आया। उनका कहना है कि यह तरीका इलाज के सामान्य तरीकों की अपेक्षा अधिक खुशनुमा और सकारात्मक है। लंदन हॉस्पिटल में छाती रोग के प्रमुख डॉक्टर निकोलस हॉपकिंस का कहना है कि यह संयोग की ही बात है कि ऐसे लोगों को गीत गाते समय अपनी सांसों के बारे में नयी बातें जानने को मिलीं।
सीओपीडी
सीओपीडी से प्रभावित लोगों के फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इससे उनकी सांस के जरिये हवा निकालने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। कुछ लोग काफी तेजी से सांस लेने लग जाते हैं, जिससे यह समस्या और बढ़ जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे लोग काफी तेज और छोटे सांस लेने लगते हैं, जिससे उनकी समस्या और बढ़ जाती है। डॉक्टर हॉपकिंस कहते हैं कि गाने से मरीजों को सही पॉश्चर मिलता है और इससे वे बेहतर तरीके से सांस ले पाते हैं।
हॉपकिंस और उनके सहयोगियों द्वारा करवाये गए सिंगिंग थेरेपी के दो प्रयोगों के बाद भी मरीजों की स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं देखा गया है। इस पर हॉपकिंस का कहना है कि फेफड़ों की कार्यक्षमता नहीं बढ़ी क्योंकि मरीज जिस बीमारी से गुजर रहे हैं उसमें कोई बदलाव नहीं आया। हॉपकिंस का कहना है कि एक शोध में हमने लोगों को दो समूहों में बांटा। पहले समूह को सिंगिंग क्लास और दूसरे को चर्चा के लिए भेजा गया। सिंगिंग क्लास में गए मरीजों ने शारीरिक रूप से बेहतर महसूस करने की बात कही, भले ही वे इसका सही आंकलन न कर पा रहे हों।
कई जानकारों का मानना है कि सिंगिंग थेरेपी एक नयी सोच है, लेकिन इसे आजमाना चाहिए। इसमें साउंड साइकोलॉजिकल रेशनल शामिल हैं। अमेरिकन लंग एसोसिएशन के मुख्य चिकित्सा अधिकारी नॉर्मन एडलमैन का कहना है कि गाने के जरिये सांसों को नियंत्रित करने की कला सीखी जा सकती है। उनकी नजर में यह बेहद जरूरी है क्योंकि सीओपीडी से पीडि़त मरीजों को सीढ़ी चढ़ते हुए या कोई अन्य काम करते हुए अपनी गहरी और धीमी सांसों को लयबद्ध करने की जरूतर होती है।
कुछ जानकारों का मानना है कि सिंगिंग बहुत कम लोगों को ही फायदा पहुंचा सकती है और यह परंपरागत इलाज पद्धति का विकल्प नहीं बन सकती। कुछ जानकार मानते हैं कि हर कोई गाना नहीं चाहता, लेकिन हर कोई ऐसे व्यायाम जरूर कर सकता है जिससे उनकी सांस की समस्या दूर हो सके। ब्रिटेन के चार्टेड सोसायटी ऑफ फिजियोथेरेपी की प्रवक्ता जूलिया बॉट का कहना है कि योग और ताई ची जैसी ब्रीथिंग तकनीक भी इस मामले में लोगों की काफी मदद कर सकती है।
बॉट का यह भी कहना है कि सिंगिंग से केवल छोटी समस्याओं से पीडि़त लोगों को ही लाभ पहुंचने की आशा है। अगर आपकी बीमारी गंभीर स्तर पर है और आपकी आंवाज कांप रही है, तो आपको गाने में काफी परेशानी हो सकती है। बॉट का कहना है कि इसमें यह बात भी काफी मायने रखती है कि आप कौन सा गीत गा रहे हैं। जाहिर सी बात है कि सांस की बीमारी से पीडि़त मरीजों को ओपरा के लिए तो नहीं कहा जा सकता।
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