'बच्‍चों की पीठ में भारी बस्‍ते नहीं, हाथों में ट्रॉली दें'

आज के प्रतिस्पर्धा भरे समय में अगर किसी के उपर सबसे ज्यादा दबाव है तो वो हैं स्कूली बच्चे।
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'बच्‍चों की पीठ में भारी बस्‍ते नहीं,  हाथों में ट्रॉली दें'

आज के प्रतिस्पर्धा भरे समय में अगर किसी के उपर सबसे ज्यादा दबाव है तो वो हैं स्कूली बच्चे। ऐसा इसलिए क्योंकि युवाओं तो अपने प्रेशन को झेल लेते हैं। साथ ही सबसे बड़ी चीज ये है कि कॉलेज या अन्य तरह की पढ़ाई करने वाले पाठकों के पास स्कूली बच्चों के बराबर बैग का भारी भर्कम लोड भी नहीं होता है। भारी बैग के चलते बच्चे ठीक तरह से पढ़ नहीं पाते हैं। साथ ही इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। एक रिसर्च के अनुसार स्कूली बच्चों की पीठ पर भारी बैग का दबाव नहीं बल्कि हाथों में ट्रॉली होनी चाहिए।

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यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रनाडा (यूजीआर), स्पेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने ऐसे बच्चों पर अपनी रिसर्च की है जो भारी वजन का बैग लेकर स्कूल जाते हैं। रिसर्च में ये बात की साफ हुई है कि भारी बैग पीठ पर रखकर स्कूल जाने वाले बच्चों को कई तरह के स्वास्थ्य दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। रिसर्च के परिणामस्वरूप यह माना गया था कि बच्चों के बैग का वजन उसके वजन का 10-15 प्रतिशत होना चाहिए। रिसर्च के चलते इस बात पर भी जोर दिया गया कि बच्चों के लिए बैग पैक के बजाय ट्रॉली का प्रयोग करना अधिक अच्छा हो सकता है।

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हालांकि इस तरह के रिसर्च पहले भी हो चुके हैं। इससे पहले वर्ष 2010 में छोटे पैमाने पर 34 जर्मन बच्चों पर जिनकी उम्र 6 से 8 वर्ष थी, पर एक रिसर्च की गई थी। इस अध्ययन में ये बात निकल कर सामने आई थी कि अगर बच्चे भारी बैग की जगह ट्रॉली का प्रयोग करेंगे तो उनकी रीढ़ की हड्डी पर अपेक्षाकृत ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा। अत: यदि बैग पैक का वज़न बताई गई सीमा के अन्दर हो तो बच्चों को बैग का ही उपयोग करना चाहिए। ऐसी स्थिति में बैग में भी कोई दिक्कत नहीं है।

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