हमारे अशांत मन और निराशा का एक मुख्य कारण होता है अपने आप की दूसरों से तुलना। हम अक्सर अपनी तुलना दूसरे लोगों के साथ करने लगते हैं। यह बात हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। लगातार इस तरह की बातें सोचने से लोगों को तनाव तक की स्थिति का सामना करना पड़ता है। वो हमेशा ये सोचकर दुखी रहते हैं कि उनके पास क्या नहीं है।
तुलनाओं से पैदा होती है निराशा
आपने कई बार कुछ लोगों को इस तरह की बातें करते सुना होगा, "मुझे अपनी ज़िंदगी में इंसाफ नहीं मिला। मेरे साथ भेदभाव हुआ है।", "मेरे आस पास ऐसे लोग हैं जिन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। कई लोगों को अपने जीवन में बिल्कुल भी दुख का सामना नहीं करना पड़ा।", "वह कोई खास काम भी नहीं करता, फिर भी उसे मुझसे ज्यादा तारीफ मिलती है।" इस तरह की तुलना करते हुए हमारा सारा ध्यान जो नहीं हो पा रहा उसमें होता है। हम अपना कीमती समय, ऊर्जा और भावनाएं इसी में लगा देते हैं। बजाय कि कुछ रचनात्मक करने के हम ऐसी नकारात्मक बातें सोचते और करते हैं। और फिर धीरे-धीरे निराशा हमारे मन में घर कर लेती है।
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अन्यायपूर्ण तुलना
ऐसी तुलनाएं हमेशा अन्यायपूर्ण व अनुचित होती हैं। आमतौर पर हम अपनी सबसे खराब बात की तुलना दूसरों के बारे में सोची गई सबसे अच्छी बात से करते हैं। इस तुलना के लिए बहुत गहरा विश्लेषण भी जरूरी नहीं समझा जाता। हम बस ऊपरी ऊपरी चीज़ों की तुलना कर लेते हैं। जैसे कि उसकी लंबाई ज्यादा है, मेरी लंबाई कम है। लंबाई के लिए आनुवांशिक कारण मुख्य होते हैं। लेकिन असल में आपको उसके माता-पिता से अपने माता-पिता ज्यादा बेहतर लगते हैं। किन्तु, ये बातें आप तभी सोच पाएंगे जब आप गहराई से विश्लेषण करके तुलना करेंगे। तुलना करते हुए तथ्यों को न भूलें।
तुलना से समय और ऊर्जा की बर्बादी
जब हम किसी से अपनी बेबुनियाद तुलना करने लगते हैं तो हम भूल जाते हैं कि हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। समय एक ऐसी चीज़ है जो लौटकर नहीं आता और न ही किसी का इंतजार करता है। हम इस बात पर ध्यान नहीं देते कि हम इस दौरान अपना कितना समय बर्बाद कर रहे हैं। इसके साथ ही, ऊर्जा भी नष्ट होती है। इस समय और ऊर्जा को अगर हम अपनी बेहतरी के लिए किए जाने वाले काम में लगाएंगे तो हमारा ही विकास होगा। हम बेहतर इंसान बन पाएंगे और फिर हम इस तरह से किसी से अपनी तुलना करके निराश नहीं होंगे।
स्वस्थ तुलना करें
तुलना करना गलत नहीं है, यदि वह स्वस्थ तुलना है। हम किसी को हराने के इरादे से नहीं, अपनी कमियों पर जीत पाने के लिए तुलना करते हैं। लेकिन हम सकारात्मक तुलना कम करते हैं। जो हमारे पास है, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं और वह सब कुछ पाना चाहते हैं जो दूसरों के पास है। पद, प्रतिष्ठा, संपत्ति या कुछ और जिससे हम समझते हैं कि हमें खुशी मिल सकती है। दूसरों से अपनी तुलना हममें ईर्ष्या और असुरक्षा ही पैदा करती है। अगर हम दूसरों से तुलना करते, अपने आप में बेहतर बदलाव लाने की कोशिश करें, तो वह स्वस्थ तुलना होगी।
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