
सिक्स्थ सेंस को हिन्दी में छठी इंद्रिय कहते हैं। कहते हैं इंसान की पांच इंद्रियां होती हैं- नेत्र, नाक, जीभ, कान और यौन। इसी को दृश्य, सुगंध, स्वाद, श्रवण और स्पर्श कहा जाता है। लेकिन एक और छठी इंद्री भी होती है जो दिखाई नहीं देती, लेकिन उसका अस्तित्व महसूस होता है। वह मन का केंद्रबिंदु भी हो सकता है या भृकुटी के मध्य स्थित आज्ञा चक्र जहां सुषुन्मा नाड़ी स्थित है।
सिक्स्थ सेंस का अहसास
यदि हमें इस बात का आभास होता है कि हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, तो यह क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।
छठी इंद्रिय की शक्ति सभी में रहती है। त्वरित निर्णय लेने वाले कई लोग, आग बुझाने वाले दल के सदस्य, इमरजेंसी मेडिकल स्टाफ, खिलाड़ियों, सैनिकों और जीवन-मृत्यु की परिस्थितियों में तत्काल निर्णय लेने वाले कई व्यक्तियों में छटी इंद्री आम लोगों की अपेक्षा ज्यादा जाग्रत रहती है। कोई उड़ता हुआ पक्षी अचानक यदि आपकी आंखों में घुसने लगे तो आप तुरंत ही बगैर सोचे ही अपनी आंखों को बचाने लग जाते हैं यह कार्य भी छटी इंद्री से ही होता है।
ऐसा कई बार देखा गया है कि कई लोगों ने अंतिम समय में अपनी बस, ट्रेन अथवा हवाई यात्रा को कैंसिल कर दिया और वे चमत्कारिक रूप से किसी दुर्घटना का शिकार होने से बच गए। जो लोग अपनी इस आत्मा की आवाज को नहीं सुना पाते वह पछताते हैं।
सुप्तावस्था में होती है सिक्स्थ सेंस
यह छठी इंद्री या सिक्स्थ सेंस सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियां बताई गई हैं। उनमें से किसी भी एक को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं। अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहां फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता।
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