बच्चों का शरारती होना स्वाभाविक है, पर जरूरत से ज्यादा उछल-कूद मचाना और कुछ मिनटों के लिए भी ध्यान केंद्रित न पाना एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसॉर्डर का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति मेें सही समय पर उपचार बेहद जरूरी है। हम अपने बच्चों की शारीरिक सेहत का तो पूरा ध्यान रखते हैं। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को भूल जाते हैं। या ये कह सकते हैं कि जब तक कोई बड़ी समस्या न हो इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाता। एडीएचडी एक ऐसी ही समस्या है, जिसके शुरुआती लक्षणों को ज्यादातर पेरेंट्स पहचान नहीं पाते।
समस्या की जड़ें
एडीएचडी के संभावित कारणों को लेकर अभी तक वैज्ञानिक किसी निश्चित नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं, फिर भी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आनुवंशिकता इसकी प्रमुख वजह है। गर्भावस्था में सिगरेट या एल्कोहॉल का सेवन करने वाली स्त्रियों के बच्चों में एडीएचडी की आशंका अधिक होती है। अगर लगातार मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाए तो उसमें मौजूद लेड की वजह से भी यह समस्या हो सकती है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में मौजूद प्रिजर्वेटिव भी इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। ब्रेन में मौजूद केमिकल्स में असंतुलन होने पर भी बच्चों में एडीएचडी के लक्षण नजर आते हैं।
अगर मस्तिष्क में एकाग्रता को नियंत्रित करने वाले हिस्से की सक्रियता में कमी हो तब भी बच्चों को यह समस्या होती है। सिर के सामने वाले हिस्से को फ्रंटल लोब कहा जाता है। अगर इस हिस्से में अंदरूनी चोट लग जाए तब भी भावनाओं को नियंत्रित करने में समस्या आती है। प्रीमच्योर और बहुत कम वजन के साथ पैदा होने वाले बच्चों को भी यह समस्या हो सकती है।
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प्रमुख लक्षण
-ऐसे बच्चों को देखकर ऐसा लगता है कि इनके भीतर कभी न रुकने वाली कोई डिवाइस फिट कर दी हो। ये पल भर के लिए भी स्थिर नहीं बैठ पाते।
-बिना रुके लगातार व अधिक बोलना।
-बेवजह उछल-कूद, अपनी जगह से उठकर इधर-उधर घूमना।
-बहुत जल्दी ध्यान भटकना, एक काम को बीच में छोड़कर दूसरा शुरू कर देना, भूृलना, किसी भी कार्य को सही ढंग से न कर पाना।
-मनपसंद कार्यों को भी कुछ ही मिनटों में अधूरा छोड़ देना।
-ज्यादा अधीर होना, पूरा सवाल सुने बिना ही जवाब देना, दूसरों की बातचीत के बीच में बोल पडऩा।
-हर बात पर चिल्लाना, झगडऩा, रोना या बेवजह हंसना।
उपचार एवं बचाव
-बच्चे की दिनचर्या निर्धारित करें और उसे उसका पालन करने के लिए प्रेरित करें।
-कोई भी अच्छा काम करने पर उसकी प्रशंसा करें।
-स्कूल में अच्छे प्रदर्शन के लिए उस पर दबाव न बनाएं।
-क्लास टीचर से बच्चे के बारे में खुलकर बात करें। उनसे अनुरोध करें कि क्लास रूम में वे बच्चे को खिड़की के पास न बिठाएं।
-अगर उससे कोई गलती हो जाए तो सबके सामने डांटने के बजाय उसे अलग से समझाएं।
-अगर ऐसे बच्चों को सही समय पर उपचार मिले तो बड़े होने के बाद ये सफल और सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।
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