शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है उसकी लय को बरकरार रखना। इस लय का बिगड़ना छोटी मुसीबतों की शुरुआत हो सकता है जो आगे जाकर बड़ी बन सकती हैं। पीयूष ग्रंथि यानी पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर भी ऐसी ही एक तकलीफ है जिसके कारण शरीर के कई हिस्सों पर बुरा असर पड़ सकता है।
छोटी सी ग्रंथि बड़ी मुसीबतें
शरीर में स्थित मटर के दाने के आकार की पिट्यूटरी ग्लैंड 'मास्टर कंट्रोल ग्लैंड' के नाम से भी पहचानी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस ग्रंथि से उत्पन्न् होने वाले हॉर्मोन्स, शरीर के वृद्धि-विकास के साथ ही शरीर में मौजूद अन्य ग्रंथियों की कार्यप्रणाली पर भी प्रभाव डालते हैं। पिट्यूटरी डिसऑर्डर के होने का मतलब है हॉर्मोन्स के उत्पादन का बहुत अधिक या बहुत कम हो जाना।
यूं इस डिसऑर्डर के पीछे किसी प्रकार की चोट, कोई विशेष दवाई, अंदरूनी रक्तस्राव या अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन इसका सबसे आम कारण है पिट्यूटरी ट्यूमर, जो कि वयस्कों में बहुत पाया जाता है और ज्यादातर केसेस में यह बिनाइन यानी कैंसर युक्त नहीं होता। इन ट्यूमर्स को दो प्रकारों में बांटा जाता है-सिक्रेटरी, यानी वे ट्यूमर जो कि बहुत अधिक हॉर्मोन्स का उत्पादन करने लगते हैं नॉन-सिक्रेटरी, जो कि बहुत कम उत्पादन करते हैं इन दोनों प्रकारों के मामले में इनके आकार के बढ़ने और पीयूष ग्रंथि तथा दिमाग के आस-पास स्थित अवयवों की कार्यप्रणाली में बाधा पड़ने से कई सारी समस्याएं पैदा होने लगती हैं।
ये हो सकती हैं समस्याएं
इस डिसऑर्डर के कारण पैदा होने वाली समस्याओं में शामिल हैं-
- एक्रोमैगली कुशिंग्स सिंड्रोम
- हाइपोथायरॉइडिज्म
- डायबिटीज इन्सिपिड्स
- ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजुरी
- हायपरप्रोलैक्टिनेमिया, आदि
ये हो सकते हैं लक्षण
इस डिसऑर्डरर या इस ग्रंथि से संबंधित समस्याओं के कारण शरीर के कई सारे अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके लक्षणों में विभिन्न् हॉर्मोन्स की उथल-पुथल के अलावा कुछ और तकलीफें भी शामिल हो सकती हैं। जैसे-
- सिरदर्द, डिप्रेशन
- उल्टी या नॉशिया
- कमजोरी
- ठंड लगना
- जोड़ों में दर्द
- एक्ने या स्ट्रेच मार्क्स
- मासिकस्राव में अनियमितता
- पेशाब की मात्रा का बढ़ जाना
- हड्डियों का कमजोर होना
- हाई ब्लड प्रेशर और शुगर का
- बढ़ना तथा हार्ट प्रॉब्लम्स का होना
- आंखों की रोशनी का खत्म होना
- हॉर्मोन्स का जरूरत से ज्यादा उत्पादन
- चेहरे, हाथ या पैरों का अजीब तरीके से आकार लेना
- बहुत ज्यादा पसीना आना
- वजन का बहुत बढ़ना या बहुत घट जाना, आदि
- शरीर पर बहुत अधिक बालों का उगना
- दांतों का उबड़-खाबड़ होना
उपचार और प्रबंधन
इस समस्या के संदर्भ में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कई बार लक्षण इतने कमजोर या छुपे होते हैं कि सामने नहीं आते। ऐसे में नियमित जांच सबसे ज्यादा फायदेमंद हो सकती है। खासतौर पर यदि किसी के पारिवारिक इतिहास में हॉर्मोन्स की अनियमितता संबंधी कोई दिक्कत रही है तो। ऐसे में समय-समय पर जांच करवाना लाभ दे सकता है। समय पर सही इलाज तकलीफ को दूर कर सकता है।
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