आमतौर पर गर्भवती महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या तीसरी तिमाही या फिर प्रसव के बाद होती है। कुछ महिलाओं की पहली गर्भावस्था में ही ये शिकायत होने लगती है लेकिन यह भी निश्चित नहीं होता कि यह समस्या गर्भावस्था के बाद भी रहेगी या नहीं। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान होने वाले पीठ दर्द, कम हाइट होने या किसी प्रकार के फ्रैक्चर से शुरू होती है। कई बार गर्भावस्था के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या बढ़ने का एक कारण महिलाओं का जागरूक न होना भी है। कई बार ऑस्टियोपोरोसिस से होने वाला हड्डियों के दर्द को सामान्य दर्द समझ महिलाएं लापरवाही बरतने लगती है।
क्यों होती है ये बीमारी
गर्भावस्था के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या कैल्शियम की कमी के कारण भी हो सकती है या फिर अधिक तनाव लेने से भी ये समस्या हो जाती है। कई बार यह समस्या आनुवांशिक होने के कारण भी हो सकती है।गर्भावस्था के दौरान अधिक वजन बढ़ने से भी ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम हो जाता है।
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शिशु पर भी पड़ता है असर
गर्भावस्था के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस होने पर महिला की हड्डियों पर बहुत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां लंबे समय तक प्रभावित हो सकती है। इसका असर होने वाले बच्चे पर भी पड़ता है। बच्चे की हड्डिया बहुत कमजोर होती है और गिरते ही फ्रैक्चर इत्यादि होने की आशंका रहती है। इतना ही नहीं बच्चे और महिला के जोड़ों में भी दर्द की शिकायत लंबे समय तक रहती है।
बचाव के भी हैं उपाय
डॉक्टर्स की मानें तो प्रसव के बाद स्तनपान के दौरान कई बार ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है और गर्भावस्था के दौरान हुई हड्डियों ही हानि भी ठीक हो जाती है क्योंकि कई बार ऑस्टियोपोरोसिस कुछ समय के लिए ही होता है। गर्भावस्था के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या के समाधान के लिए कैल्शियम और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। इससे हड्डियों में हुई कमजोरी को दूर किया जा सकता है।
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