रोज़ाना ट्रैफिक जाम और प्रदूषण झेलते हुए सुबह सही समय पर ऑफिस पहुंचने का तनाव, बच्चों की पढ़ाई और करियर से जुड़ी चिंता, अति व्यस्त जीवनशैली, अनियमित दिनचर्या और खानपान की गलत आदतों के कारण आज की युवा पीढ़ी कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रही है। क्यों होती हैं ऐसी समस्याएं और क्या है इसका समाधान, बता रही हैं मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम की इंटरनल मेडिसिन विभाग की एचओडी डॉ. सुशीला कटारिया।
ओबेसिटी या मोटापा
यह आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी एक ऐसी समस्या है, जिससे अधिकतर शहरी युवा परेशान रहते हैं। चिंताजनक बात यह है कि वे इसे केवल मामूली मोटापा समझते हैं और समस्या की गंभीरता को समझ नहीं पाते। जबकि हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी गंभीर समस्याओं का मूल कारण यही है।
क्या है वजह : अति आरामदायक जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियों और एक्सरसाइज़ की कमी, जंक फूड, घी-तेल और चीनी, सॉफ्ट ड्रिंक्स और एल्कोहॉल का अधिक मात्रा में सेवन, अनियमित दिनचर्या आदि। कुल मिला कर लोग जिस मात्रा में कैलरी लेते हैं, उस अनुपात में खर्च नहीं करते। इसी वजह से शरीर में फैट का संग्रह होने लगता है और लोगों का वज़न बढ़ जाता है।
कैसे करें बचाव : मैदा, घी-तेल, जंक फूड, मिठाइयों, चॉकलेट, केक-पेस्ट्री, सॉफ्ट ड्रिंक्स और एल्कोहॉल से दूर रहें। रोज़ाना के खानपान में भी चीनी का सीमित मात्रा में इस्तेमाल करें। लिफ्ट के बजाय सीढिय़ों का इस्तेमाल करें, छोटी दूरी के लिए पैदल जाना बेहतर विकल्प है। सुबह-शाम वॉक और एक्सरसाइज़ के लिए समय ज़रूर निकालें। आजकल कई ऐसे ऐप और रिस्ट बैंड भी उपलब्ध हैं, जो निरंतर व्यक्ति को उसकी शारीरिक गतिविधियों का विवरण बता रहे होते हैं। ऐसे साधनों का उपयोग भी वज़न घटाने में मददगार होता है।
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कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि
कोलेस्ट्रॉल ब्लड वेसेल्स की भीतरी दीवारों में मौज़ूद एक चिपचिपा पदार्थ होता है। आमतौर पर यह दो तरह का होता है-एचडीएल (हाई डेंसिटी लिपिड प्रोफाइल कोलेस्ट्रॉल) यानी गुड और एलडीएल (लो डेंसिटी लिपिड प्रोफाइल कोलेस्ट्रॉल) यानी बैड कोलेस्ट्रॉल। गुड कोलेस्ट्रॉल प्रोटीन से भरपूर होता है, जो दिल की सेहत के लिए फायदेमंद होता है, जबकि बैड कोलेस्ट्रॉल में प्रोटीन के बजाय फैट की मात्रा अधिक होती है। यही फैट ब्लड वेसेल्स में जमा होने लगता है। इससे हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। सुस्ती, आंखों के आसपास भूरे धब्बे, सीढिय़ां चढऩे के दौरान सांस फूलना आदि, इसके प्रमुख लक्षण हैं।
क्या है वजह : भोजन में ट्रांस और सैचुरेटेड फैट से युक्त चीज़ों जैसे घी, तेल, मक्खन, एल्कोहॉल और रेड मीट का अधिक मात्रा में सेवन।
बचाव एवं उपचार : अपने भोजन में दालों, स्प्राउट्स, बींस और दलिया जैसी फाइबर युक्त चीज़ों को प्रमुखता से शामिल करें। अंडे की ज़र्दी में अधिक मात्रा में बैड कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है, इसलिए केवल उसके सफेद हिस्से का सेवन करें। बादाम, अखरोट और मछली खाना भी फायदेमंद होता है। अगर कोई भी लक्षण नज़र आए तो डॉक्टर से सलाह लें।
हाई ब्लडप्रेशर
जब हार्ट की ब्लड वेसेल्स सख़्त हो जाती हैं तो ब्लड की पंपिंग करने के लिए उसे बहुत ज्य़ादा मेहनत करनी पड़ती है। इससे दिल पर रक्त का दबाव बढ़ जाता है। इस शारीरिक दशा को हाई ब्लडप्रेशर कहा जाता है। घबराहट, बेचैनी, दिल की धड़कन तेज़ होना और आंखों के आगे अंधेरा छाना आदि, इसके प्रमुख लक्षण हैं।
क्या है वजह : तनाव, एक्सरसाइज़ और शारीरिक गतिविधियों की कमी, जंक फूड का अधिक मात्रा में सेवन आदि।
बचाव एवं उपचार : जंक और स्ट्रीट फूड से दूर रहें, नमक का सीमित मात्रा में इस्तेमाल करें। क्रोध से बचें, नियमित एक्सरसाइज़ और मॉर्निंग वॉक करें। योग और मेडिटेशन को भी दिनचर्या में शामिल करें। नियमित रूप से बीपी की जांच करवाएं। किसी स्वस्थ व्यक्ति का बीपी 130/85 से अधिक नहीं होना चाहिए। इस निर्धारित सीमा से अधिक ब्लडप्रेशर होने पर डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवाएं लें।
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डायबिटीज़ टाइप-2
यह बीमारी शहरी युवाओं को तेज़ी से अपना शिकार बना रही है। दरअसल पैनक्रियाज़ इंसुलिन नामक हॉर्मोन का सिक्रिशन करता है, जो भोजन में मौज़ूद ग्लूकोज़ को एनर्जी में बदल कर पाचन क्रिया को आसान बनाता है। कई बार खानपान की गलत आदतों और अन्य वजहों से पैनक्रियाज़ पर अधिक मात्रा में इंसुलिन बनाने का दबाव बढऩे लगता है, जिससे वह अपना काम सही ढंग से नहीं कर पाता। इसी वजह से ब्लड में ग्लूकोज़ की मात्रा बढऩे लगती है। ऐसी शारीरिक दशा को ही डायबिटीज़ टाइप-2 कहा जाता है।
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स्त्रियों की सेहत
पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम वैसे तो मिडिलएज ग्रुप की स्त्रियों से जुड़ी समस्या है पर आजकल खानपान की गलत आदतों के कारण टीनएजर लड़कियों में भी तेज़ी से ओबेसिटी बढ़ रही है, जिससे उनमें भी इस बीमारी के लक्षण नज़र आने लगे हैं। यह समस्या हॉर्मोन की गड़बड़ी के कारण होती है। ऐसी स्थिति में युवतियों के गर्भाशय में प्राकृतिक रूप से एग्स विकसित नहीं हो पाते और मेंस्ट्रुएशन में अनियमितता आने लगती है। कई बार यह समस्या इंफर्टिलिटी की भी वजह बन जाती है।
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