
Newborn Skin Peeling Causes in Hindi : शिशु की त्वचा पर जन्म के बाद कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। अधिकतर शिशुओं की त्वचा की ऊपरी पर्त निकलने लगती है। ऐसे में अभिभावक घबरा जाते हैं। उनको लगता है कि यह किसी तरह की गंभीर समस्या हो सकती है। हालांकि, यह एक आम समस्या है, जो शिशुओं मे देखने को मिलती है। इस समस्या में अभिभावकों को तुंरत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। इस विषय पर सीके बिरला अस्पाल की डॉ. निविदिता कॉल ने बताया कि शिशुओं की त्वचा की ऊपरी पर्त निकलने के क्या कारण होते हैं और इसका इलाज कैसे किया जाता है।
शिशुओं की ऊपरी पर्त निकलने के कारण - Causes Of Newborn Skin Peeling In Hindi
वैर्नेक्स कासिओसा (Vernix Caseosa)
शिशुओं की त्वचा से पपड़ी निकलने का कारण वैर्नेक्स कासिओसा हो सकता है। वैर्नेक्स कासिओसा वैक्स की तरह होता है, जो गर्भ में बच्चे को कवर करके रखता है। यह अधिक होता है, जो एमिन्योटिक फ्लूयड से बच्चे की रक्षा करता है। इसके अलावा वैर्नेक्स कासिओसा बच्चे की स्किन को मॉइस्चर करता है।
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एक्जिमा
एक्जिमा होने पर शिशु के चेहरे, कोहनी और घुटनों पर सूखे दाने से हो सकते हैं। यह एक तरह त्वचा की एलर्जी होती है। इसमें खुजली और त्वचा में पपड़ी बनने लगती है। चार से छह माह के शिशुओं में यह समस्या हो सकती है।
एमनियोटिक द्रव
गर्भावस्था के दौरान, बच्चा एमनियोटिक द्रव से घिरा होता है। इस तरल पदार्थ के संपर्क में आने से नवजात शिशुओं की त्वचा प्रभावित होती है। यह काफी हद तक उसके गर्भ में रहने की स्थिति पर भी निर्भर करता है। एमनियोटिक द्रव बच्चे की त्वचा के प्राकृतिक तेलों को सूखाने के लिए जिम्मेदार होता है।
इचथ्योसिस वल्गारिस (Ichthyosis vulgaris)
इचथ्योसिस वल्गारिस एक ऐसी स्थिति है जो त्वचा में रूखेपने और पपड़ी बनने का कारण मानी जा सकती है। यह एक त्वचा विकार है, जिसमें शिशु की त्वचा मोटी हो सकती है। इसमें डेड सेल्स एकत्रित होकर सूख जाते हैं।
फुल टर्म बर्थ
जन्म के समय बच्चे की गर्भकालीन आयु के अनुसार उनको त्वचा से पपड़ी निकलने की समस्या हो सकती है। जिन शिशुओं का जन्म 40 सप्ताह से पहले होता है, उनको 40 सप्ताह के बाद पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में ऊपरी त्वचा की पर्त निकलने की समस्या कम होती है।
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शिशुओं की ऊपरी पर्त निकलने का इलाज कैसे होता है? - How to Treat Newborn Skin Peeling in Hindi
डॉक्टर के अनुसार शिशु की समस्या के आधार पर उसको क्रीम आदि लगाकर इलाज किया जाता है। इसके अलावा, कुछ घरेलू सावधानी बरतने से भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। इस समय शिशु को ज्यादा देर तक नहलाना नहीं चाहिए। साथ ही, नहलाते समय शिशु की त्वचा पर साबुन का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा, उन्हें कॉटन के कपड़े पहनाएं और जिस कमरे में शिशु ज्यादा समय रहता हो, वहां पर ह्यूमीडिफायर लगाएं। इससे उस कमरे में नमी बनी रहती है।
शिशु को होने वाली किसी भी समस्या को अनदेखा नहीं करना चाहिए। बच्चा अपनी परेशानी को बताने में असमर्थ होता है। अगर, उसे कोई समस्या है, तो उसको तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।