हाल में हुए एक अध्ययन के अनुसार, डिप्रेशन और एंग्जाइटी भारत में सबसे आम मेंटल डिसऑर्डर हैं। इनकी व्यापकता विश्वभर में धीरे-धीरे बढ़ रही है, दक्षिण राज्यों और महिलाओं में यह विकार अपेक्षाकृत अधिक है। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 7 में से 1 व्यक्ति तनाव, डिप्रेशन या एंग्जाइटी की समस्या से पीडि़त है। 197 मिलियन लोग, पिछले वर्षों यानि 2017 में बदलती गंभीरता के मानसिक विकारों से पीड़ित थे। इनमें से, 45.7 मिलियन में डिप्रेशन और 44.9 मिलियन में एंग्जाइटी की समस्या थी।
लैंसेट साइकिएट्री बाय द् इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनिशिएटिव द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ये 1990 से भारत के हर राज्य में मानसिक विकारों और उनके रुझानों के कारण रोग के बोझ के पहले व्यापक अनुमानों के कुछ निष्कर्ष हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे डिसऑर्डर भारत में सबसे आम मानसिक विकार हैं। उनकी व्यापकता बढ़ रही है और 2017 में, 7.6 मिलियन लोगों बाइपोलर डिसआर्डर था, जिसमें कि व्यक्ति कई हफ्तों या महीनों के लिए उदास या फिर बहुत खुशी में होता है, जिसके चलते उत्तेजना या ऊँची ऊँची बाते करने का दौरा आता है। इसमें सबसे अधिक गोवा, केरल, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश प्रचलित थे। इसके अलावा, लगभग 3.5 मिलियन में सिज़ोफ्रेनिया था और इसके सबसे अधिक मामले गोवा, केरल, तमिलनाडु और दिल्ली में देखा गया था। अध्ययन में यह भी देखा गया कि मानसिक विकारों के मामले 1990 में 2.5 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 4.7 प्रतिशत हो गये हैं।
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एम्स नई दिल्ली और अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर राजेश सागर ने कहा, “मानसिक बीमारियाँ भारत में अन्य बीमारियों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, जैसा कि इस अध्ययन द्वारा बताया गया है। मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने, सामान्य स्वास्थ्य सेवा के साथ उन्हें एकीकृत करने और उपचार की पहुंच जैसी बाधाओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है। एक दिलचस्प खोज जिसमें कि बच्चों के मानसिक विकारों जैसे विकास संबंधी बौद्धिक विकलांगता और कम विकसित राज्यों में विकार में धीमा सुधार है, जिसकी जांच की जानी चाहिए। ”
भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और महानिदेशक, आईसीएमआर प्रो. बलराम भार्गव ने कहा, मानसिक विकारों का योगदान 1990 से 2017 तक भारत में दोगुना हो गया है, इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी रणनीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।
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वहीं इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के निदेशक, प्रो क्रिस्टोफर जेएल मुर्रे ने कहा, "इससे पहले कि राज्य सरकारें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश कर सकें, यह जरूरी है कि स्वास्थ्य अधिकारियों को डिप्रेशन, चिंता और अन्य मानसिक विकारों को कैसे वितरित किया जाए, इसका सटीक लेखा-जोखा है। देश भर में यह अध्ययन राज्य-दर-राज्य की आवश्यकता का निर्धारण करने में एक महत्वपूर्ण पहला कदम प्रदान करता है। ”
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