
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि महिलाओं पर ज्यादा अत्याचार होते हैं, जबकि कई मामलों में पुरूष भी घरेलू हिंसा कि शिकार होते हैं और महिलाएं पुरुषों पर अत्याचार करती हैं। 'पत्नी सताए तो हमें बताएं' जैसे विज्ञापनों को एक समय अतिरंजना के तौर पर देखा जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय के आंकड़ों ने इस धारणा को बदल दिया है कि सिर्फ महिलाएं ही घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं। अब सिक्के का दूसरा पहलू सामने आया है, जिसमें पुरुषों को भी घर या समाज में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।
बढ़ रहे मामले
पिछले कुछ दिनों से ऐसे मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है, जिसमें पुरुषों को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है और पुरुषों को इस बात को लेकर मलाल है कि उनकी इन शिकायतों का न तो कहीं निपटारा हो रहा है और न ही समाज उनकी इन शिकायतों को स्वीकार कर रहा है। घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरुषों के लिए काम करने वाली संस्था 'सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन' जैसी संस्थायें पुरुषों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ही बनी हैं। 
आत्महत्या भी करते हैं
इस सबसे परेशान होकर कई बार पुरुष बेबसी में आत्महत्या जैसा कदम उठाने को भी मजबूर हो जाते हैं। महिलाओं के पास कानून का कवच है, जिसका खुलकर दुरुपयोग हो रहा है। इस बात को अब स्वीकार भी किया जा रहा है, लेकिन स्थिति यथावत है। शीर्षाधिकारियों के पास जानकारी है, इसलिए वे मान जाते हैं, लेकिन छोटे शहरों में घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों को अपनी शिकायत रखने के लिए कोई मंच नहीं मिलता है।
पुरुषों की बात कोई नहीं सुनता
ज्यादातर मामलों की मानें तो पुरुषों की बात कोई सुनता ही नहीं, हर जगह महिला की बात को ही माना जाता है। समाज भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि पुरुषों के साथ महिलाएं हिंसा करती हैं। दहेज के झूठे मामलों की तो छोड़िए, वे तो सबके सामने आ गए हैं। पुरुष तो चारदीवारी के भीतर मारपीट और पैसे छीने जाने के मामलों के भी शिकार हो रहे हैं, समाज में क्या इन बातों को कोई स्वीकार करेगा? 
कानून में बदलाव की सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट नेएक मामले की सुनवाई के दौरान घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की स्थिति को समझते हुए कहा कि महिलाएं दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग कर रही हैं और सरकार को इस कानून पर एक बार फिर नजर डालने की जरूरत है। धारा 498 [ए] के दुरुपयोग की बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर यह बात की गई थी। इसमें यह भी निर्देश दिया गया कि पुरुषों की प्राथमिकी भी दर्ज की जाये। 
एक फाउंडेशन द्वारा कराये गये सर्वे के अनुसार एक लाख पुरुषों में से 98 फीसदी पुरुष किसी न किसी तौर पर घरेलू हिंसा का शिकार हर साल बनते हैं। इसमें आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और यौन संबंधों के दौरान जाने वाली हिंसा के मामले शामिल थे।
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