सिस्टिक फाइब्रोसिस एक आनुवांशिक रोग है। यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है। इन अंगों में दिल, पाचक ग्रंथि (पेंक्रियाज), मूत्राशय के अंग, जननांग और पसीने की ग्रंथियां आदि शामिल हैं। इन अंगों में पायी जाने वाली कुछ विशिष्ट कोशिकायें प्रायः लार और जलीय स्राव उत्पन्न करती हैं, परन्तु सिस्टिक फाइब्रोसिस होने पर ये कोशिकाएं सामान्य से गाढ़ा स्राव उत्पन्न करने लगती हैं।
सिस्टिक फाइब्रोसिस होने पर शरीर में पानी का संतुलन बिगड़ जाता है। इस कारण कई समस्यायें हो सकती हैं। इसका सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है और इस स्थिति में फेफड़ों में ये गाढ़े स्राव कीटाणुओं को समाहित कर लेते हैं, जिससे बार-बार फेफड़ों में संक्रमण होता हैं। पैंक्रियाज में सामान्य प्रवाह अवरुद्ध होने के कारण शरीर में फैट और फैट में मौजूद घुलनशील विटामिनों को पचाना और अवशोषित करना अधिक जटिल हो जाता है। इससे मुख्य रूप से शिशुओं में पोषण सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं।
सिस्टिक फाइब्रोसिस से संबंधित अन्य समस्याओं में नेजल पोलिप्स, इसाफ्गाईटस, पैनक्रिएटाइटस, लीवर सिरोह्सिस, रेक्टल प्रोलैप्स, डायबिटीज और इनफर्टिलिटी जैसी समस्यायें हो सकती हैं। लंग ट्रांस्प्लांट से इसका इलाज संभव है। आइए हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
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लंग ट्रांसप्लांट से सिस्टिक फाइब्रोसिस की चिकित्सा -
सिस्टिक फाइब्रोसिस में सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है जिसके कारण इस बीमारी में चिकित्सक सर्जरी के द्वारा फेफड़े प्रत्यारोपित करने की सलाह देते हैं। स्वास्थ्य वेबसाइट मायो क्लीनिक के अनुसार, हालांकि फेफड़ों के प्रत्यारोपित होने के बाद सामान्य स्वास्थ्य रहे ऐसा निश्चित नही है। लंग ट्रांसप्लांटेशन के बाद मरीज की हालत में सुधार होता है लेकिन वह पूरी तरह से स्वस्थ नही रहता।
लंग ट्रांसप्लांटेशन के दौरान मरीज को जिस व्यक्ति के फेफड़े लगाये जाते हैं, उसकी पूरी तरह से जांच होती हैं। इस जांच में यह पता लगाया जाता है कि उस व्यक्ति के जीन में ऐसी समस्या तो नही थी, यदि फेफड़ा देने वाले के जीन में यह समस्या हो तो फेफड़ों के प्रत्यारोपण के बाद मरीज की हालत पहले जैसी हो सकती है।
फेफड़े ट्रांसप्लांट के बाद भी मरीज के अंदर संक्रमण होने की संभावना होती है। शरीर में पहले से मौजूद जीवाणु इस संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं जो प्रत्यारोपित हुए फेफड़ों को संक्रमित करते हैं। इस संक्रमण को रोकने के लिए चिकित्सक मरीज को इम्यूनसप्रेसिव दवायें (हालांकि ये दवायें फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती हैं) लेने की सलाह देते हैं।
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सिस्टिक फाइब्रोसिस में फेफड़े प्रत्यारोपण के बाद
2007 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे एक शोध के अनुसार, सिस्टिक फाइब्रोसिस के मरीज लंग ट्रांसप्लांट के बाद पूरी तरह से स्वस्थ नही हो पाते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए यूटा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सिस्टिक फाइब्रोसिस ग्रस्त 514 बच्चों पर एक शोध किया, इन बच्चों में फेफड़े प्रत्यारोपित किया गया।
इस प्रक्रिया के बाद यह देखा गया कि इन बच्चों में से केवल 1 प्रतिशत बच्चों को ही फायदा हुआ है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद भी आधे से बच्चों की मौत हो गई। इस बात की कोई पुष्टि नही हो पाई कि सिस्टिक फाइब्रोसिस से ग्रस्त मरीज फेफड़ा प्रत्यारोपित होने के बाद ज्यादा दिनों तक जीवित रह सकते हैं। फेफडे प्रत्यारोपण के बाद औसत उत्तरजीविता (सरवाइवल टाइम) लगभग 3.4 साल आंकी गई और मात्र 40 प्रतिशत बच्चे ही 5 साल तक जीवित रह पाये।
सिस्टिक फाइब्रोसिस से ग्रस्त लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर किशोरावस्था में होता है और इस दौरान उनके फेफड़े पूरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं।
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