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कम वजन के साथ जन्मे शिशुओं को रहता है कई बीमारियों का खतरा, जानें कितना होना चाहिए जन्म के समय बच्चे का वजन

कम वजन के साथ जन्मे शिशु का सही तरीके से शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हाे पाता है। ऐसे में उसके लिए सही न्यूट्रीशन बहुत जरूरी है। जानें जन्म के समय कितना हाेना चाहिए शिशु का वजन-
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कम वजन के साथ जन्मे शिशुओं को रहता है कई बीमारियों का खतरा, जानें कितना होना चाहिए जन्म के समय बच्चे का वजन

कम वजन के साथ जन्मे बच्चे काे लेकर अकसर उसके माता-पिता चिंतित रहते हैं। एक शिशु का वजन कितना हाेना चाहिए? उसके लिए जरूरी पाेषक तत्व क्या है? कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चे काे क्या समस्या हाे सकती है?  अकसर ही उनके दिमाग में ये सवाल घूमते रहते हैं। अगर आपका बच्चा भी कम वजन के साथ पैदा हुआ है, ताे  आपके इन सभी सवालाें के जवाबाें काे जानने के लिए हमने लैक्टेशन कंसल्टेंट डॉक्टर गीतिका गंगवानी से बातचीत की-

डॉक्टर गीतिका बताती हैं कि दुनियाभर में 80 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत कम वजन के कारण हाेता है। यानी अधिकतर नवजात शिशुओं की मौत तभी हाेती है, जब उनका वजन आइडियल वेट या 2.5 से कम हाेता है। इतना ही नहीं लाे बर्थ वेट के साथ जन्मे 40 प्रतिशत बच्चाें काे आगे चलकर कुपाेषण का भी शिकार हाेना पड़ता है। साथ ही वे किसी भी संक्रमण की चपेट में अन्य बच्चाें की तुलना में अधिक आते हैं। 

low birth baby

लाे बर्थ वेट वाले बच्चे या ताे प्रीमैच्याेर हाेते हैं या फिर वे जल्दी-जल्दी बीमार पड़ जाते हैं और कमजाेर रहते हैं। डॉ. गीतिका गंगवानी बताती हैं कि भारत में लगभग 25-35 प्रतिशत नवजात शिशु कम वजन के साथ ही पैदा हाेते हैं। आमतौर पर जाे महिलाएं हाइपरटेंशन, डायबिटीज जैसी समस्याओं से जूझती हैं, उस स्थिति में शिशु का वजन कम हाेने की संभावना अधिक रहती है। वे शारीरिक और मानसिक रूप से भी कमजाेर रह जाते हैं। जिन बच्चाें का जन्म समय से पूर्व हाेता है, उनमें अकसर यह समस्या देखने काे मिलती है। ऐसे बच्चाें का विकास मां के शरीर में पूर्ण रूप से नहीं हाे पाता है। प्रीमैच्याेर बच्चाें की देखभाल करने के लिए उन्हें अच्छा न्यूट्रीशन मिलना बहुत जरूरी हाेता है। 

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जन्म के समय कितना हाेना चाहिए शिशु का वजन

जन्म के समय शिशुओं का वजन 2.5 से अधिक हाेना चाहिए। क्याेंकि जन्म के समय जिन शिशुओं का वजन 2.5 किलाेग्राम से कम हाेता है, उन शिशुओं काे कम वजन वाले शिशु यानी लाे बर्थ वेट बेबी कहा जाता है। इन शिशुओं काे कम वजन के साथ जन्मे बच्चाें की श्रेणी में रखा जाता है। वही जब शिशु का वजन 1.5 किलाे ग्राम से कम हाेता है, ताे इसे बहुत कम वजन वाला शिशु कहा जाता है। इस स्थिति में शिशु का जन्म समय से पूर्व हाे जाता है।

breastfeeding

मां का दूध या ब्रेस्ट मिल्क है सबसे बेहतर न्यूट्रीशन

लैक्टेशन कंसल्टेंट डॉक्टर गीतिका गंगवानी बताती हैं कि नवजात बच्चाें का शारीरिक और मानसिक विकास करने या उनका संपूर्ण विकास करने के लिए मां का दूध सबसे जरूरी हाेता है। ब्रेस्ट मिल्क शिशु काे पूर्ण विकास के लिए सबसे आवश्यक हाेता है। डॉक्टर गीतिका बताती हैं कि डिलीवरी के 1 घंटे के अंदर शिशु काे मां का दूध पिलाना अमृत के समान हाेता है। मां का दूध कम वजन के साथ पैदा हाेने वाले बच्चाें के पेट, आंताें और शरीर के लिए जरूरी भाेजन हाेता है। इसलिए अगर आपके शिशु का जन्म कम वजन के साथ हुआ है, ताे आप अपनी डाइट का खास ध्यान रखें जिससे शिशु काे प्राेपर ब्रेस्ट मिल्क मिल सके। 

कम वजन के साथ जन्मे शिशुओं काे हाे सकती हैं ये बीमारियां

1. एनईसी संक्रमण 

समय से पूर्व या कम वजन के साथ जन्में बच्चाें का शरीर बहुत कमजाेर हाेता है। वे अकसर बीमार रहते हैं। कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चाें में अकसर एनईसी संक्रमण यानी नेक्राेटाइसिंग एंटेराेकाेलाइटिस (NEC) देखने काे मिलता है। यह एक बहुत ही गंभीर आंत विकार है,  ऐसा तब हाेता है जब आंत में ऊतर समाप्त हाे जाते हैं। यह संक्रमण अधिकतर उन्हीं बच्चाें काे हाेता है, जाे कमजाेर हाेते हैं। यह शिशुओं के लिए जानलेवा भी हाे सकता है। एनईसी बच्चाें में तब हाेता है, जब आंताें के ऊतक मर जाते हैं। ऐसे में शिशु के लिए ब्रेस्ट मिल्क बहुत जरूरी हाेता है।

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2. एनीमिया

कम वजन के साथ जन्मे शिशुओं काे भविष्य में एनीमिया की समस्या हाेने का खतरा अधिक रहता है। एनीमिया शरीर में खून की कमी से हाेने वाली एक समस्या है। इसमें शरीर में आयरन की कमी हाे जाती है। 

3. डायबिटीज

वैसे ताे डायबिटीज काे एक लाइफस्टाइल डिसीज कहा जाता है। लेकिन जिन शिशुओं का वजन जन्म के समय कम हाेता है, उन्हें बड़े हाेकर डायबिटीज का खतरा बहुत अधिक रहता है।

4. हृदय राेग

कम वजन के साथ पैदा हाेने वाले बच्चाें काे हृदय राेग हाेने का खतरा अधिक रहता है। यह बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अन्य बच्चाें की तुलना में इतने स्वस्थ नहीं रह पाते हैं। इसलिए जरूरी है शिशुओं काे मां समय-समय पर अपना दूध पिलाएं।

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