
आपने अक्सर राह चलते कई लोगों को बड़बड़ाते (mumble) हुए देखा होगा। वे खुद से ही बात कर रहे होंगे या फिर कहीं अकेले में बैठे खुद से बात करते या हंसते हुए दिखाई देते हैं। ऐसा वो लोग क्यों करते हैं। क्या यह कोई बीमारी है या सामान्य स्थिति है? इन सवालों का जवाब लेने के लिए हमने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मनोचिकित्सक डॉ. राजेश सागर, भोपाल के बंसल अस्पताल में मोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी और अवेकनिंग रिहैब में मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा मलिक से बात की। तीनों ही डॉक्टरों की मिलीजुली राय है। उनका कहना है कि ऐसा नहीं है कि राह चलते बड़बड़ाना हेमशा एक बीमारी ही हो, यह हो सकता है कि किसी बीमारी के शुरूआती लक्षण हों। बड़बड़ाना पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह का हो सकता है।
एम्स में मोचिकित्सक डॉ. सागर का कहना है कि जब तक कम्युनिकेशन के इतने साधन विकसित नहीं हुए थे तब तक हम सिर्फ बड़बड़ाने को एक बीमारी कह सकते थे, लेकिन अब लोग ब्लू टुथ, इयरफोन से बात ज्यादा करते हैं, ऐसे में उन्हें बड़बड़ाने की आदत हो जाती है। तो वहीं, कई ऐसे पेशे हैं जिनमें व्यक्ति को हमेशा बोलना पड़ता है, ऐसे में भी उसे बड़बड़ाने की आदत पड़़ जाती है।
डॉ.सागर ने बताया कि राह चलते बड़बड़ाना जरूरी नहीं कि हमेशा एक बीमारी हो। जब तक इस लक्षण में बिना वजह हंसना, कुछ एक्शन करना (हैलुसलेटरी बिहेवियर), लोगों पर शक करना, अपने आप में अकेले रहना आदि, तब हम कह सकते हैं कि उस व्यक्ति को कोई मानसिक बीमारी है।
बड़बड़ाने के प्रकार
सकारात्मक बड़बड़ाना
इस कैटेगरी में सेल्फ टॉक को लाया जाात है। जिसमें व्यक्ति खुद में बदलाव लाने के लिए, खुद का मूल्यांकन करने के लिए खुद से बात करता है। ऐसा करने से उसकी पर्सनैलिटी में सकारात्मक बदलाव आता है।
नकारात्मक बड़बड़ाना
इस बड़बड़ाने में आदत की वजह से बड़बड़ाना शामिला है। ऐसे लोग सही डायरेक्शन में अपना गुस्सा नहीं निकाल पाते। इसलिए ये नकारात्मक हो जाता है।
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बड़बड़ाने के संभावित कारण
भोपाल के बंसल अस्पताल में मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी ने बड़बड़ाने के निम्न कारण बताए-
एंक्शियस पर्सनैलिटी ट्रेट्स (anxious personality traits)
जिन लोगों में यह एंक्शियस पर्सनैलिटी ट्रेट्स ज्यादा दिखाई देते हैं, उनमें यह परेशानी ज्यादा होती है। ऐसे लोगों को घबराहट ज्यादा होती है। कुछ लोग जरूरत से ज्यादा एंक्शियस होते हैं तो वे खुद से बातें रिपीट करते हैं। उनके हाथ पैर में कंपन होने लगती है। झुनझनी होना, लोगों के सामने जाने में दिक्कत होना उनके शरीर से ऐसे लक्षण दिखते हैं। यह डिसऑर्डर आनुवांशिक कारणों से भी होता है।
साइकोसिस
इसमें इंसान को आवाजें सुनाई देती हैं। इसे ऑडिटेरी हेलुसलेशन भी कहते हैं। ऐसे इंसानों को अलग-अलग आवाजें सुनाई देती हैं। कई लोगों को अकेले बात करना दूसरों को बड़बड़ाते हुए दिख सकता है, लेकिन वे लोग उन आवाजों को जवाब दे रहे होते हैं जिनसे वे बात कर रहे होते हैं। ऐसा वे एंग्जाइटी की वजह से करतें। इसमें इंसान को भ्रम होते हैं, जबकि वो सच नहीं होता। हमारे ब्रेन में डोपामीन नामक एक कैमिकल होता है उसके बढ़ जाने की वजह से व्यक्ति को भ्रम होना शुरू होता है। डोपामीन आनुवांशिक कारण से भी बढ़ सकता है या तनाव की वजह से खुलकर सामने आ जाता है।
एग्जाइटी डिसऑर्डर
यह डिसऑर्डर आनुवांशिक भी हो सकता है। दूसरा यह एग्जाइटी डिसऑर्डर सिरोटोनिन न्यूरो ट्रांसमीटर के असंतुलित होने के कारण होता है। एंग्जाइटी होने पर भी इंसान बड़बड़ाता है।
याद रखने की आदत
कुछ लोगों को बातें याद रखने की कोशिश करनी पड़ती है। ऐसे में वे जो बातें उन्हें याद रखनी हैं उन्हें बड़बड़ाते रहते हैं।
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बड़बड़ाने का इलाज
मनोचिकित्सक प्रज्ञा मलिक ने इस परेशानी के निम्न इलाज बताए हैं-
मरीज की हिस्ट्री लेना
मनोचिकित्सक के पास जब ऐसे मरीज आते हैं तब वे पहले उस मरीज की हिस्ट्री लेते हैं। फिर मरीज को परेशानी क्या है। उसकी गंभीरता कितनी है, यह सब देखा जाता है। तब उसका इलाज शुरू किया जाता है।
अपनी बाउंड्रीज को देखना
हिंसा या फ्रस्टेशन की वजह से जब कोई बड़बड़ाता है तब उसे पहले यह सोचना चाहिए कि उसके बड़बड़ाने का परिणाम क्या होगा। इसलिए अपनी परिस्थितियों को पहले देखें फिर उस पर रिएक्ट करें। कुछ परिस्थितियां आपसे बाहर होती हैं, उन्हें उन पर ही छोड़ दें।
थेरेपी से इलाज
मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा का कहना कि जब बड़बड़ाने की सिवेयरिटी बढ़ जाती है तब वह एंग्जाइटी या डिप्रेशन का रूप ले लेती है। ऐसे में मनोचिकित्सक उनकी सिवेयरिटी को समझते हैं। और थेरेपी से इलाज करते हैं। निम्न थेरेपी मरीज की सिवेयरीटी देखकर की जाती हैं।
1. कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी (सीवीटी)
इस थेरेपी में मनोचिकित्सक देखते हैं कि मरीज के पास जब कोई परेशानी आती है वह कैसे डील करता है। परेशानी से जुझता है या भाग जाता है, उस लिहाज से इलाज किया जाता है।
2. डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी (डीवीटी)
इसमें मरीज के इमोशन को चैलेंज किया जाता है। इसमें सबसे पहले मरीज की अवेयरनेस को स्टैबलिश कराते हैं। फिर उसके इमोशन पर काम करते हैं।
3. रिलेक्सेशन और ब्रिदिंग एक्सरसाइज
रिलेक्सेशन में पीड़ित व्यक्ति को कोई ऐसा विश्वासी व्यक्ति ढूंढ़ना चाहिए जिससे वे अपने मन की बात कह सकें।
साइकोसिस का इलाज
साइकोसिस की परिस्थिति तक आने पर मरीज को दवाएं देनी पड़ती हैं।
बड़बड़ाना पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह का हो सकता है। जब तक आप खुद में सुधार के लिए बड़बड़ा रहे हैं तब तक आप सही डायरेक्शन में जा रहे हैं। लेकिन जैसे ही आपके बड़बड़ाने से आपके सामाजिक परिवेश पर असर पड़ने लग जाए तब वह दिक्कत करने लगता है। बहुत से लोग खुद से बात करते हैं ताकि वे खुद में सुधार कर सकें, इसके अलावा वे ऐसा करके खुद में परिपूर्ण महसूस करते हैं। तो वहीं जैसाकि हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि सिर्फ बड़बड़ाना कोई मानसिक बीमारी नहीं है जब तक कि उसमें बाकी कारण भी जुड़े हुए न हों।
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