कभी-कभी उदासी, बेचैनी या अकेलापन महसूस करना सामान्य बात है लेकिन जब बारह-पंद्रह दिनों के बाद भी व्यक्ति की ऐसी मनोदशा में कोई बदलाव न आए तो यह डिप्रेशन का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में उसे बिना देर किए किसी क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए। यह समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। यहां तक कि तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण आजकल स्कूली बच्चों में भी इसके लक्षण नज़र आने लगे हैं। डिप्रेशन को अकसर गहरी उदासी से जोड़कर देखा जाता है पर कई बार नाराज़गी, तनाव और क्रोध जैसी कुछ नकारात्मक भावनाएं भी इसके लिए जि़म्मेदार होती हैं।
प्रमुख अवस्थाएं
मरीज की गंभीरता के आधार पर इसकी प्रमुख तीन अवस्थाएं बताई जाती हैं :
न्यूरोटिक डिप्रेशन : इस अवस्था में मरीज़ दूसरों को अपनी समस्या के बारे में बता सकता है और उसे दूर करने की कोशिश भी करता है।
यूनिपोलर/बाइपोलर डिप्रेशन : यूनिपोलर डिप्रेशन होने पर मरीज़ में बार-बार एक ही जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। बाइपोलर डिप्रेशन को मैनिक डिप्रेसिव साइकोसिस भी कहा जाता है। इसमें मरीज़ में बारी-बारी से परस्पर विरोधी लक्षण नज़र आते हैं। मसलन, कभी वह सुस्त तो कभी अति उत्साही हो जाता है।
साइकोटिक डिप्रेशन : ऐसी गंभीर अवस्था में मरीज़ रोज़मर्रा के छोटे-छोटे कार्य भी खुद नहीं कर पाता, उसके मन में भ्रम की स्थिति बनी रहती है और बार-बार आत्महत्या के बारे में सोचता है।
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प्रमुख लक्षण
अनिद्रा, तेज़ी से वज़न घटना या बढऩा, खानपान की आदतों में बदलाव, मसलन भोजन में अरुचि या ओवर ईटिंग, शरीर में बेवजह दर्द, चिड़चिड़ापन, गुमसुम रहना, हर बात पर रोना, कभी-कभी दूसरों से बेवजह बहस करना, हमेशा नाखुश रहना, अकेले रहने के बहाने ढूंढना और मन में आत्महत्या का $खयाल आना। अगर किसी भी व्यक्ति में पंद्रह दिनों से जयादा समय तक ऐसे लक्षण नज़र आएं तो बिना देर किए मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
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क्यों होता है ऐसा
कोई ऐसी बात, जिससे व्यक्ति के मन में हताशा हो। मसलन, लंबी बीमारी या दुर्घटना, आर्थिक नुकसान, कोई कानूनी उलझन, करियर से जुड़ी परेशानी, दांपत्य जीवन में तनाव आदि वजहों से भी व्यक्ति को डिप्रेशन हो सकता है। इसके अलावा हॉर्मोन संबंधी असंतुलन के कारण कुछ स्त्रियों में डिलिवरी और मेनोपॉज़ के बाद भी डिप्रेशन के लक्षण नज़र आ सकते हैं। कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले लोग प्रतिकूल स्थितियों में जल्दी घबरा जाते हैं, जिससे उन्हें डिप्रेशन हो सकता है।
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जांच एवं उपचार
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा जब इस समस्या की पहचान हो जाती है तो तुरंत ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है। उपचार में दवाओं के साथ साइको थेरेपी और कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरेपी की मदद ली जाती है। गंभीर स्थिति में कुछ मरीज़ आत्महत्या करने की भी कोशिश करते हैं, ऐसे में एक्सपर्ट क्राइसिस इंटरवेंशन नामक विशेष प्रोफेशनल तकनीक की भी मदद लेते हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति को बहुत कम अवधि में कुछ इस तरह काउंसलिंग दी जाती है कि वह अपना इरादा बदल लेता है।
परिवार के सदस्यों की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे एक्सपर्ट के सभी सुझावों पर अमल करें, मरीज़ को अकेला न छोड़ें, उसके साथ बहुत ज्य़ादा रोक-टोक न करें और उसे स्वस्थ होने में हर तरह से सहयोग दें।
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