90% मां-बाप नहीं पहचान पाते हैं बच्चों में डिप्रेशन के संकेत, जानें कैसे कर सकते हैं पहचान

किशोर बच्चों में अवसाद को पहचानना लगभग 90 प्रतिशत मां-बाप के लिए एक मुश्किल काम है। ऐसे में तीन-चौथाई माता-पिता अपने बच्चों के स्कूल में ही सभी छात्रों को अवसाद के लिए स्क्रीनिंग करने की मांग कर रहे हैं। मां-बाप का कहना है कि ये स्क्रीनिंग 6 वीं कक्षा से ही शुरू होनी चाहिए।
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90% मां-बाप नहीं पहचान पाते हैं बच्चों में डिप्रेशन के संकेत, जानें कैसे कर सकते हैं पहचान

अवसाद को पहचानना और उसे बाकी मानसिक बीमारियों से अलग कर के देखना, हर किसी के लिए आसान नहीं होता। अवसाद यानी कि डिप्रेशन आज एक महामारी की तरह फैल रही है। इतना कि मां-बाप अपने किशोर होते बच्चों के मूड स्विंग्स और अवसाद के बीच फर्क नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल हाल ही में आया एक अध्ययन इस ओर इशारा कर रहा है कि आज किशोर बच्चे बड़ी तेजी से अवसाद के शिकार हो रहे हैं। पर इसमें सबसे परेशानी कि बात ये है कि इन बच्चों में अवसाद की पहचान नहीं हो रही है, जिसके कारण ये बीमारी और गंभीर रूप धारण कर रही है। इस अध्ययन में कहा गया है कि किशोरों के सामान्य उतार-चढ़ाव या मूड स्विंग्स के बीच के अंतर को बताना, युवाओं के बीच अवसाद की पहचान करते हुए माता-पिता की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

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इस अध्ययन में सी.एस मॉट चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के द्वारा किए गए एक पोल 'नेशनल पोल ऑफ़ चिल्ड्रन्स हेल्थ', 819 माता-पिता के राष्ट्रीय स्तर पर शोध के नमूनों के रूप में लिया गया, जिनके मिडिल स्कूल, जूनियर हाई या हाई स्कूल में कम से कम एक बच्चा पढ़ता था। फिर इन मां-बाप से उनके बच्चों के व्यवहार को लेकक कई सवाल जवाब किए गए। अंत में नतीचे के तौर पर ये मालूम हुआ कि 40 प्रतिशत माता-पिता सामान्य मिजाज और अवसाद के संकेतों के बीच अंतर करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जबकि 30 प्रतिशत को धोखा हुआ कि उनका बच्चा अवसाद से पीड़ित है।

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वहीं अमेरिका में एक नए राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार पता चला है कि किशोर उम्र के ज्यादातर बच्चे अपने मां-बाप से अपनी भावनाओं को छिपाते हैं। ऐसे में जब किशोरावस्था में अवसाद को पहचानने की बात आती है, तो यह परिवारों के लिए दो वास्तविकताओं की एक कहानी हो जाती है कि बच्चा सच में अवसाद में है या नहीं है। इस अध्ययन में लगभग 90% माता-पिता ने माना कि वे लगभग इस बात को जानते थे कि उनका बच्चा बहुत उदास है पर समझ नहीं पा रहे थे कि ये बस छोटी सी बात है या अवसाद के शुरुआती लक्षण। लेकिन दो-तिहाई माता-पिता ने स्वीकार किया कि मानसिक बीमारी को पहचानने में वास्तविक चुनौतियां हैं, जिसमें सबसे कठिन ये बताना है कि किशोर सामान्य मिजाज का है या अवसाद का सामना कर रहा है।

अध्ययन के बाद माता-पिता ने इस बात को समझाने की मांग कि उन्हें अवसाद को लेकर शिक्षित किया जाए। रिपोर्ट में जून में अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के बारे में भी बताया गया है, जिसमें साल 2000 के बाद से युवाओं में आत्महत्या की दर बढ़ रही है। जिसमें 15-19 वर्ष के किशोरों में आत्महत्या मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। अवसाद पर अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ सूइकॉलॉजी के अध्यक्ष, जोनाथन सिंगर कहते हैं कि आज किशोर बच्चे सबसे ज्यादा तनावग्रस्त हैं। हर चार में से एक माता-पिता इस बात को मान रहा है कि उनका बेटा या बेटी अवसाद से ग्रस्त लगते हैं, पर वो इसे लेकर भरोसे से कुछ नहीं कह सकते। वहीं 10% किशोर बच्चों से पता चलता है कि उनका कोई न कोई सहपाठी आत्महत्या से मर गया है। जो कि एक बहुत खतरनाक बात है।

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हालांकि अवसाद के लक्षण हर बच्चे में भिन्न हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे सामान्य लक्षण है, जिनके बारे में हर माता-पिता को पता होना चाहिए:

  • बच्चे में कई चीजों और गतिविधियों को लेकर रुचि का अभाव  
  • व्यवहार में कोई बदलाव, जिसमें भूख, ऊर्जा स्तर, नींद पैटर्न और शैक्षणिक प्रदर्शन शामिल हो सकते हैं।
  • दुखी या चिड़चिड़ा रहना।
  • थके होने या पेट में दर्द होने की शिकायत (छोटे बच्चों में आम)।
  • उदास या तनावग्रस्त जैसे शब्दों का उपयोग करने के बजाय उदास शब्द का बार-बार इस्तेमाल करना।
  • आत्महत्या के बारे में सोचना और बात करना
  • सामान देकर चले जाना और कुछ रिएक्ट न करना।

अध्ययन में माता-पिता को ये भी सुझाव दिया कि वे बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं और बाहर घुमने और खेलने जाएं। कोशिश करें कि उनके दोस्त बने और हर छोटी व बड़ी बात समझें। अपने रिश्ते में डर और औपचारिकता को खत्म करते हुए बच्चे से आमने-सामने बैठ कर ज्यादा से ज्यादा बातचीत करने की कोशिश करें।

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