बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, किस उम्र के व्यक्ति को कैसे रखना चाहिए अपनी आंखों का ख्याल?

स्वस्थ आंखों के लिए जरूरी है कि बचपन से ही उनका ख्याल रखा जाए और शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न किया जाए।
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बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, किस उम्र के व्यक्ति को कैसे रखना चाहिए अपनी आंखों का ख्याल?

आंखें हमारे शरीर का सबसे जरूरी अंग हैं। लेकिन इन्हीं का ख्याल हम सबसे कम रख पाते हैं। यही वजह है कि आजकल आंखों की परेशानियां ज्यादा बढ़ गई हैं। पहले आंखों की ज्यादातर परेशानियां 40 की उम्र के बाद शुरू होती थीं, लेकिन अब छोटे बच्चों में भी ये दिक्कतें शुरू हो गई हैं। बढ़ती आंखों की परेशानियों के कई कारण हो सकते हैं। जिनमें बदलता लाइफस्टाइल बड़ा कारण है। पहले छोटे बच्चों के पास फोन या लैपटॉप नहीं होते थे। जिस वजह से उनकी आंखों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता था, लेकिन तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि बच्चा तीन साल की उम्र से ही समार्टफोन चलाना शुरू कर देता है। आंखों को उस उम्र में जो पोषक तत्त्व मिलने चाहिए थे वह उसे नहीं मिल पाने की वजह से बचपन से ही आंखों की परेशानियां शुरू हो जाती हैं। सेहतमंद आंखों के लिए जरूरी है कि इनकी समय-समय पर जांच हो और लोग हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं। कहते हैं जब जागो तभी सवेरा। तो अब भी देर नहीं हुई है। अगर आपको अपनी आंखें हर उम्र में स्वस्थ रखनी हैं तो इन तरीकों को अपनाया जा सकता है।

बचपन में आंखों का ख्याल

अक्सर आंखों की छोटी मोटी परेशानियां नजरअंदाज होते-होते कब कोई बड़ी पेरशानी बन जाती हैं, किसी को समझ ही नहीं आता है। इसलिए कहा जाता है कि डॉक्टर बच्चे के जन्म के बाद उसकी आंखों की जांच कर लें, ताकि आंखों में अगर कोई दिक्कत है तो वह तुरंत मालूम हो जाए। तो वहीं अगर कोई माता-पिता उस समय बच्चों की आंख की जांच नहीं करवाना चाहते हैं तो जब बच्चा बड़ा हो जाता है और स्कूल जाना शुरू करता है तब उसकी आंखों की जांच जरूर करवाएं। बच्चों को देखने में अगर दिक्कत हो रही है तो माता-पिता सही नेत्र विशेषज्ञ (Eye specialist) के पास ले जाएं। इसके अलावा आंखों में कोई और कमजोरी तो नहीं है, इसकी भी जांच करवाएं। बचपन में आंखें स्वस्थ रहें, उसके लिए नीचे दी गई बातों पर ध्यान दें।

1.ऐसा बच्चा जिसका जन्म समय से पहले (born premature) हो गया है या वजन कम है, उसकी आंखों का रेगुलर चेकअप कराएं। इन बच्चों को विटामिन-ए के सप्लीमेंट जरूर दें। अगर यह उपाय नहीं किए गए तो बच्चे को रतौंधी की शिकायत हो सकती है।

2.अगर बच्चे की आंखों में दर्द या सिर में दर्द शिकायत है तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

3.बच्चे को ज्यादा समय चेयर पर झुका कर न बैठाएं।

4.बच्चे की आंख से पानी आना, किसी तरह की सूजन होना आदि होने पर भी डॉक्टर को दिखाएं।

5.बच्चों को तेज लाइट से दूर रखें।

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युवावस्था में आंखों की देखभाल

आजकल युवाओं को दिन और रात का काफी समय कंप्यूटर पर बिताना पड़ता है। कभी नाइट शिफ्ट करना तो कभी दिन में एक्सट्रा वर्क। दिन का शायद ही कोई समय बचता होगा, जब हम कंप्यूटर या फोन की स्क्रीन न देख रहे हों, यही वजह है कि कंप्यूटर विजन सिड्रोम जैसी परेशानियां बढ़ रही हैं। तो वहीं आंखों में ड्राइनेस की परेशानी बढ़ रही है। युवावस्था में आंखों का कैसे ख्याल रख सकते हैं, उसके बारे में नीचे के बिंदुओं पर ध्यान दें।

1. कंप्यूटर पर काम करते समय थोड़ी-थोडी देर में आंखों को झपकाते (Blink) रहें। आंखों को बीच-बीच में रेस्ट देते रहें। फिर काम करना शुरू करें।

2.बहुत समय तक कंप्यूटर की स्क्रीन को बिना पलक झपकाए मत देखिए।

3.आंखों को प्रोटेक्ट करने के लिए चश्मा पहनें।

4.चलते समय या कम लाइट में न पढ़ें।

5.आंखों के नीचे डार्क सर्कल न हों, उससे बचने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।

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 बुढ़ापे में आंखों का ख्याल

ये समय आंख क्या पूरे शरीर के लिए बहुत कष्टकारी होता है। अक्सर कई परेशानियां बुढ़ापे में शुरू होती हैं। यों तो 40 की उम्र के बाद ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ने लग जाती हैं। तो ऐसे लोगों को हर साल आंखों का चेकअप कराना चाहिए। इसके अलावा सही लाइफस्टाइल को अपनाकर भी आंखों की पेरशानियां से बचा सकता है।

लोग अगर अपनी आंखों में होने वाली शुरूआती दिक्कतों को नजरअंदाज न करें तो आगे उन्हें बड़ी परेशानियां नहीं होंगी या बहुत कम होंगी। आंखों को स्वस्थ रखने का सबसे सरल उपाय है उबड़-खाबड़ लाइफस्टाइल को पटरी पर लाना। पहले छोटे बच्चों को आंखों की दिक्कतें नहीं होती थीं, लेकिन अब हो रही हैं। यह सबकुछ बिगड़े लाइफस्टाइल के कारण है। इसलिए उसे सुधारना जरूरी है।

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