क्या सोशल मीडिया से प्रभावित हो रही है आपकी असल जिंदगी की खुशी? एक्सपर्ट से जानें इसके कुछ दुष्परिणाम

सोशल मीडिया पर वर्चुअल खुशी ढूंढने से बेहतर है कि आप असल जिंदगी में खुशी ढूंढें। इससे आप अवसाद, बेचैनी, चिचिड़ाहट से बच पाएंगे।

Meena Prajapati
Written by: Meena PrajapatiUpdated at: Feb 03, 2023 16:54 IST
क्या सोशल मीडिया से प्रभावित हो रही है आपकी असल जिंदगी की खुशी? एक्सपर्ट से जानें इसके कुछ दुष्परिणाम

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आज दुनिया सोशल मीडिया पर एक-दूसरे से जुड़ रही है। एक वर्जुअल परिवार बना रही है, लेकिन समझना यह है कि जितनी बड़ी आपकी फ्रैंडलिस्ट आपकी सोशल मीडिया पर होती है क्या असल जिंदगी में भी आपके पास उतने ही लोग हैं। जबसे हम साइंस और टेक्नोलोजी से जुडे हैं तबसे जिंदगी बहुत छोटी हो गई है। हम एक क्लिक पर सबकुछ पा लेते हैं। हमें जो चाहिए वो हमें तुरंत मिल जाता है। लेकिन इस सबके बाद भी हम अपनी असल जिंदगी से दूर होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर हम जितना लोगों के पास जा रहे हैं उतना ही खुद से दूरी बना रहे हैं। यही वजह है कि लोग अपनी खुशी नहीं ढूंढ पाते और हमेशा एक वर्चुअल खुशी में रहते हैं। लेकिन वह वर्चुअल खुशी संतुष्टि नहीं देती। इसी विषय पर हमने बात की टीएमएस माइंडफुल जीके 2 में क्लिनिकल साइकॉलोजिस्ट डॉ. प्रज्ञा मलिक से।

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डॉ. प्रज्ञा का कहना है कि सोशल मीडिया का जमाना ऐसा है कि अब हमारी खुशी या गम किसी के कमेंट से तय होता है। ऐसे टाइम में खुद का आत्मविश्वास घटता जा रहा है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सहानुभूति, राय, परसेप्शन पर हम ज्यादा चल रहे हैं। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि हमारे फोटो पर जितने लाइक और कमेंट्स आते हैं हम खुद को उतनी ही वैल्यु देना शुरू कर रहे हैं। साथ ही यह भी मान लेते हैं कि हमारी 100 या 200 लाइक्स की वैल्यु है। लेकिन इसके पीछे सेल्फ वैल्यु घट रही है। ऐसे में लोग खुद यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि दुनिया मेरे बारे में क्या सोचती है वह अलग चीज है और मैं खुद के बारे में क्या सोचता या सोचती हूं उस पर ध्यान देना है। उस सच्चाई से हम दूर जा रहे हैं। जिसकी वजह से मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। ऐसी सोच को न्यूरोटिक वर्ल्ड कहते हैं। 

सोशल मीडिया का मानसिक स्वास्थ्य पर असर

डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है कि न्यूरोटिक वर्ल्ड में रहने की वजह से लोगों में मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं। जैसे उदासी, अवसाद, बेचैनी, एंग्जाइटी, तुलना आदि दिक्कतें शुरू होने लगती हैं। कभी-कभी खुद से ही खुद की तुलना करते रहते हैं। जैसे कि एक ड्रेस में अच्छे कमेंट्स आ गए किसी दूसरी ड्रेस में अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला तो असंतुष्टि की भावना आने लगती है। खुद में अकेलापन आने लगता है। ऐसे में चिड़चिड़ापन बढ़ता है। रिश्तों में दिक्कत आने लगती है। इन सभी वजहों से हमारी जिंदगी तनावों से भर जाती है। ऐसे इंसान के बिहेवियर में चेंज आ जाता है।

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सोशल मीडिया और खुद की खुशी के बीच संतुलन कैसे बनाएं?

डॉक्टर प्रज्ञा का कहना है कि सोशल मीडिया की दिखावे की खुशी से महें असली खुशी नहीं मिल पाती और हम अकेलेपन में चले जाता हैं। खुद की खुशी बरकरार रखने के लिए आप डॉक्टर प्रज्ञा मलिक के ये टिप्स अपना सकते हैं-

सोशल मीडिया का समय

सोशल मीडिया से पूरी तरह से दूरी न बनाएं, लेकिन अपना टाइम तय करें कि आपको कितने समय तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना है। इससे आपके दूसरे काम भी ठीक हो जाते हैं और आप दुखी नहीं होते। 

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तुलना न करें

खुद की खुद से और दूसरों से तुलना करना बंद करें। आप सिर्फ लाइक्स के लिए नहीं जी रहे हैं। आपकी किस ड्रेस में आपको कितने लाइक्स मिले वह आपकी खुशी नहीं है। साइंस आपको खुशी देने के लिए बनाया गया था लेकिन जब आप खुद से तुलना शुरू करते हैं तो आप खुश नहीं रह पाते, तो टेक्नोलोजी का अतिरिक्त इस्तेमाल न करें ताकि आपकी असल जिंदगी की खुशियां भी चली जाएं। आप पहचानें कि आप क्यों उदास हैं और क्यों तुलना कर रहे हैं। ऐसे में आप सिर्फ निराश ही होते हैं।

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सोशल मीडिया का गणित समझें

लाइक और कमेंट पर फोकस पर न करके उसके पीछे की सच्चाई को समझें। सोशल मीडिया के एल्गोरिथ्म को समझें। आपके लाइक्स या कमेंट्स सब नियंत्रित हैं। जो इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को चला रहे हैं वे उनका कुछ कर सकते हैं। तो आपको उसके गणित को समझना होगा। सोशल मीडिया को अपना सबकुछ न समझ लें। 

बातचीत करें

अपने आसपास लोगों से बातचीत शुरू करें। प्रकृति के साथ समय बिताएं। लेकिन रियलिस्टिक एप्रोच को अपनाएं। यह सबकुछ आप किसी को दिखावे के लिए न करें बल्कि खुद के लिए करें। हमें यह तय करना होगा कि क्या हम सच में खुश हैं कि सिर्फ सोशल मीडिया पर खुश हैं। यह आपको खुद ही तय करना पड़ेगा। 

सोशल मीडिया पर वर्चुअल खुशी ढूंढने से बेहतर है कि आप असल जिंदगी में खुशी ढूंढें। इससे आप अवसाद, बेचैनी, चिचिड़ाहट से बच पाएंगे।  

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