सोशल मीडिया से दोस्ती और सामाजिक जीवन से दूरी कितनी है सही? जानें साइकोथेरेपिस्ट से

सामाजिक जीवन पर ठहराव के कारण लोगों की सक्रियता सोशल मीडिया पर बढ़ गई है। ऐसे में उसका सही ढंग से प्रयोग करना जरूरी है।
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सोशल मीडिया से दोस्ती और सामाजिक जीवन से दूरी कितनी है सही? जानें साइकोथेरेपिस्ट से


कोरोना (Covid-19) के इस दौर में जहां सब सेहत को सुरक्षित रखने के लिए घर पर रह रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ उनकी नजदीकियां सोशल मीडिया की तरफ और बढ़ गई हैं। सामाजिक जीवन का ठहरना और सोशल मीडिया पर सक्रियता कितनी सुरक्षित है, इस बात से भी ज्यादा जरूरी यह जानना है कि सोशल मीडिया का सही ढंग से इस्तेमाल ना करने पर समाज को क्या नुकसान हो सकते हैं? आज का ये लेख इसी विषय पर है। सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि लोग सोशल मीडिया का अनजाने में गलत इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं? और इसके क्या बचाव हैं? इसके लिए हमने गेटवे ऑफ हीलिंग साइकोथेरेपिस्ट डॉ. चांदनी (Dr. Chandni Tugnait, M.D (A.M.) Psychotherapist, Lifestyle Coach & Healer) से भी बात कर सकते है। पढ़ते हैं आगे...

सोशल लाइफ और सोशल मीडिया

कोरोना से पहले लोग दोस्तों के साथ बाहर घूमने, उनके साथ अपनी परेशानियों को साझा करने, नई नई जगहों को एक्सप्लोर करने के अलावा नए-नए एक्सपेरिमेंट करना आदि करते थे। वहीं जब कोरोनाकाल शुरू हुआ तो दोस्तों से मिलना जरूर बंद हुआ लेकिन फोन के माध्यम से उनसे बातें लगातार होती रही। लोगों ने बाहर घूमना बंद कर दिया लेकिन उनकी उंगलियां फोन पर घूमनी शुरू हो गईं। नई जगह पर जाना बंद हुआ लोकिन नेट पर मौजूद जानकारी से खुद को अपडेट करना बंद नहीं हुआ। तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट भले ही वे बाहर जाकर न कर पाए लेकिन घर पर रहकर भी उन्होंने नए तरीकों को अपनाना जैसे- कुकिंग सीखना, आर्ट, योगा, वीडियोस बनाना आदि शुरू कर दिया। ऐसे में हम कह सकते हैं कि सोशल लाइफ और सोशल मीडिया लाइफ एक दूसरे के इर्द-गिर्द ही रही। 

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गलत ढंग से सोशल मीडिया का प्रयोग

इस बात में कोई शक नहीं कि सोशल मीडिया का प्रयोग लोगों को रचनात्मक बना रहा है। वहीं इसका गलत ढंग से उपयोग कुछ समस्याओं का सामना भी करवा सकता है-

1 - बिना सोचे समझे किसी भी पोस्ट को शेयर करना।

2 - हिंसक भावना को बढ़ावा देने वाले पोस्ट को शेयर करना।

3 - अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले पोस्ट को लाइक और शेयर करना।

4 - किसी गलत होम रेमेडी को बढ़ावा देना।

5 - किसी की निजी जीवन से जुड़ी जानकारी को शेयर करना।

ये कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर लोग बिना सोचे समझे अपनी रोजमर्रा के जीवन में करते हैं और वह यह भूल जाते हैं कि इसका नकारात्मक असर उनके समाज पर या उनके आसपास के माहौल पर पड़ सकता है। इस विषय पर साइकोथैरेपिस्ट चांदनी कहती हैं कि हमारी भावनाएं डिजिटल रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं। क्योंकि उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिल चुका है जहां वे अपने उस व्यक्तित्व को दर्शाते हैं जो वह चाहते हैं कि लोग उन्हें पसंद करें। सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाइक उस व्यक्ति के आत्मविश्वास को और बढ़ाते हैं। जब भी कोई व्यक्ति उनकी प्रशंसा करता है या कमेंट के रूप में उनकी तारीफ करता है तो उनके दिमाग में डोपामिन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर स्तर बढ़ने लगता है, जिसके कारण वे अच्छा महसूस करते हैं। यही कारण है कि आज के समय में सोशल मीडिया की सक्रियता बढ़ गई है। इसके अलावा नेट पर पाई जाने वाली जानकारी और खुद उस जगह पर जाकर मिलने वाली जानकारी में फर्क होता है। ऐसे में किसी भी चीज पर भरोसा करने से पहले एक बार जांच करनी जरूरी है। 

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इन आदतों से दूरी है जरूरी

  • अगर आपको किसी सूचना की विश्वसनीयता पर संदेह हो रहा है उदहारण के तौर पर घरेलू उपचार से संबंधित कोई वीडियो या कोरोना से संबंधित सूचना तो उसे शेयर करने से बचें। सबसे पहले उसकी प्रमाणिकता की जांच करें उसके बाद ही उसे शेयर करें।
  • नकारात्मक संदेश देने वाली चीजों को सांझा न करें।
  • जो सूचना बीमारी से संबंधित है और वह नकारात्मक सोच पैदा कर रही है तो उस मैसेज को फॉरवर्ड ना करें क्योंकि ऐसा करने से लोगों के मन में नेगेटिविटी उत्पन्न होती है।
  • वर्क फ्रॉम होम करने वाले को भी मैसेज या सूचना फॉरवर्ड कर के डिस्टर्ब ना करें।
  • बच्चों की पढ़ाई अगर ऑनलाइन है तो उन्हें सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का टाइम निश्चित करें।

नोट - ऊपर बताएगा बिंदुओं से पता चलता है की सोशल मीडिया पर सक्रियता सही है लेकिन उसका सही ढंग से इस्तेमाल करना जरूरी है। सामाजिक जीवन पर रोक का मतलब यह नहीं कि हम रचनात्मक ना बनें। ऐसे में तरह-तरह के प्रयोग घर पर रहकर भी कर सकते हैं। बस थोड़ी सावधानी जरूरी है।

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