जीवन में उद्देश्य होना डिमेंशिया व एल्जाइमर जैसी समस्याओं को हराने में मदद करता है और बुढ़ापे में मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है। एक नए शोध के अनुसार जो लोग व्यस्थ जीवन जीने जैसे स्वयं सेवा, नई चीजें सीखना और समुदाय का हिस्सा होने का आनंद लेते हैं, उन्हें डिमेंशिया आदि मानसिक रोगों से बचने में मदद मिलती है।
डिमेंशिया क्या है
डिमेंशिया अर्थात मनोभ्रंश किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि कई लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से सम्बंधित होते हैं। यह एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति की याददाशत कमजोर होने लगती है और उसे कुछ याद रखने में परेशानी होने लगती है। यहां तक कि कोई ताजा बात याद करने में भी उसे दिमाग पर काफी जोर डालना पड़ता है। यह रोग तब और गंभीर रूप ले लेता है जब रोगी की याददाश्त बिल्कुल खत्म हो जाती है।
टॉप स्टोरीज़
डॉ पेट्रीसिया बॉयल का शोध
शोधकर्ताओं का मानना है कि खुद को व्यस्थ रखने वाले लोग न केवल खुद को डिमेंशिया से बचाते हैं, बल्कि वृद्ध लोगों में होने वाली चलने-फरने संबंधी समस्याओं से भीउनका बचाव होता है।
शिकागो स्थित रश अल्झाइमर’स डिजीज सेंटर के बिहेवियरल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पेट्रीसिया बॉयल के अनुसार एक सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण आपके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। स्ट्रोक नामक पत्रिका में प्रकाशित डॉ बॉयल ने अपने शोध में पाया कि जीवन के अर्थपूर्ण व उद्देश्यमय होने की मजबूत भावना और दिशा, रक्त प्रवाह में रुकावट की वजह से होने वाली मस्तिष्क की क्षति की संभावना को कम कर सकते हैं।
जब रुकावट उत्पन्न होती है, तो यह मस्तिष्क के ऊतकों को क्षति पहुंचाती है और स्ट्रोक को ट्रिगर कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऊतक क्षति, दौरों, मनोभ्रंश, गतिशीलता संबंधी समस्याओं, विकलांगता और मृत्यु तक के लिए योगदान कर सकती है।
उम्र भी लम्बी होती है
लंबी उम्र पाना चाहते हैं तो अपने जीवन का कोई लक्ष्य ज़रूर बनाएं। क्योंकि शोध बताते हैं कि व्यस्त जीवन बिताने में लंबी उम्र का रहस्य नीहित है। कनाडा स्थित एक यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा किये गये एक नये शोध से पता चलता है कि वे लोग जो उद्देश्यपूर्ण जीवन बिताते हैं और व्यस्थ रहते हैं, लंबे तथा बेतर जीवन का आनंद ले पाते हैं। विशेषज्ञों के 14 वर्षीय इस शोध के परिणाम बताते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद बुढ़ापे में वे लोग तनाव का अधिक शिकार होते हैं जिनके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता है। ऐसे लोग जल्दी मौत की ओर बढ़ते हैं। वहीं जवानी में ही अपने बुढापे की व्यस्तता का निर्धारण करने वाले लोग लम्बा और संतोषजनक जीवन व्यतीत करते हैं और मानसिक रोगों से भी बचे रहते हैं।
Read More Articles On Mental Health In Hindi.
अनुसार जो लोग व्यस्थ जीवन जीने जैसे स्वयं सेवा, नई चीजें सीखना और समुदाय का हिस्सा होने का आनंद लेते हैं, उन्हें डिमेंशिया आदि मानसिक रोगों
से बचने में मदद मिलती है।
डिमेंशिया क्या है
डिमेंशिया अर्थात मनोभ्रंश किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि कई लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से सम्बंधित होते हैं। यह एक
ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति की याददाशत कमजोर होने लगती है और उसे कुछ याद रखने में परेशानी होने लगती है। यहां तक कि कोई ताजा बात याद
करने में भी उसे दिमाग पर काफी जोर डालना पड़ता है। यह रोग तब और गंभीर रूप ले लेता है जब रोगी की याददाश्त बिल्कुल खत्म हो जाती है।
डॉ पेट्रीसिया बॉयल का शोध
शोधकर्ताओं का मानना है कि खुद को व्यस्थ रखने वाले लोग न केवल खुद को डिमेंशिया से बचाते हैं, बल्कि वृद्ध लोगों में होने वाली चलने-फरने संबंधी
समस्याओं से भी उनका बचाव होता है।
शिकागो स्थित रश अल्झाइमर’स डिजीज सेंटर के बिहेवियरल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पेट्रीसिया बॉयल के अनुसार एक सकारात्मक मानसिक
दृष्टिकोण आपके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। स्ट्रोक नामक पत्रिका में प्रकाशित डॉ बॉयल ने अपने शोध में पाया कि जीवन के अर्थपूर्ण व
उद्देश्यमय होने की मजबूत भावना और दिशा, रक्त प्रवाह में रुकावट की वजह से होने वाली मस्तिष्क की क्षति की संभावना को कम कर सकते हैं।
जब रुकावट उत्पन्न होती है, तो यह मस्तिष्क के ऊतकों को क्षति पहुंचाती है और स्ट्रोक को ट्रिगर कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऊतक क्षति,
दौरों, मनोभ्रंश, गतिशीलता संबंधी समस्याओं, विकलांगता और मृत्यु तक के लिए योगदान कर सकती है।
उम्र भी लम्बी होती है
लंबी उम्र पाना चाहते हैं तो अपने जीवन का कोई लक्ष्य ज़रूर बनाएं। क्योंकि शोध बताते हैं कि व्यस्त जीवन बिताने में लंबी उम्र का रहस्य नीहित है।
कनाडा स्थित एक यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा किये गये एक नये शोध से पता चलता है कि वे लोग जो उद्देश्यपूर्ण जीवन बिताते हैं और व्यस्थ रहते हैं,
लंबे तथा बेतर जीवन का आनंद ले पाते हैं। विशेषज्ञों के 14 वर्षीय इस शोध के परिणाम बताते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद बुढ़ापे में वे लोग तनाव का
अधिक शिकार होते हैं जिनके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता है। ऐसे लोग जल्दी मौत की ओर बढ़ते हैं। वहीं जवानी में ही अपने बुढापे की व्यस्तता का
निर्धारण करने वाले लोग लम्बा और संतोषजनक जीवन व्यतीत करते हैं और मानसिक रोगों से भी बचे रहते हैं।
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